वाट फो (Wat Pho): थाइलैंड के सबसे बड़े लेटे हुए महात्मा बुद्ध का घर

बैंकाक शहर का नाम सुनते या सोचते ही मन में एक तस्वीर बनती है—ऊंची, लम्बी इमारतें, खाने के बाज़ार, गाड़ियां तथा रौनक वाले व्यापारिक शहर का अक्स मन में आता है, परन्तु सिर्फ इसके अतिरिक्त बैंकाक शहर आकर्षण एवं ज्ञान की अन्य भी बहुत-सी वस्तुएं अपने भीतर समाये बैठा है।
आज हम आपको बैंकाक की एक ऐसे अलग यादगारी स्थान पर लेकर चलते हैं जो सिर्फ अपनी सुन्दर, अलग भवन निर्माण कला के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है अपितु इसे यूनेस्को की ओर से सांस्कृतिक विरासत (Unesco Cultural Heritage) का गौरव भी प्राप्त हुआ है। बात कर रहे हैं वाट फो (Wat Pho) की। वाट फो थाइलैंड का सबसे प्राचीन एवं बैंकाक का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर समूह है। यह फरा नाखोन ज़िले में स्थित है जोकि रतानोकोसिन द्वीप पर स्थित है।
वाट फो, ग्रैंड पैलेस जोकि थाइलैंड के राजाओं का 1782 से रहना वाला घर है, के बिल्कुल साथ स्थित है। कहा जाता है कि कला के तजुर्बेकार कारीगरों और भिक्षुओं ने स्वयं को पूरी तरह मठ बनाने के कार्य में लगा दिया था, ताकि राजा के सपने अनुसार वाट फो कला तथा ज्ञान के केन्द्र के रूप में विकसित हो सके।
यूनानी तथा रोमन मंदिरों, जोकि आम तौर पर अकेली इमारत के रूप में होते हैं, वाट फो इनसे अलग है क्योंकि यह अकेली इमारत नहीं, इसमें एक समूह है, जिसमें इमारतें, यादगारें तथा भवन एवं ब़ाग आदि हैं।
यह मंदिर बैंकाक शहर से भी पुराना है। 17वीं शताब्दी में राजा रामा-ढ्ढ जो सियाम (थाइलैंड का पुरातन नाम) के छापरी शाही घराने के पहले सम्राट थे, के समय इसका निर्माण हुआ।
19वीं शताब्दी के मध्य राजा रामा-III जोकि सियाम के तीसरे राजा थे, ने वाट फो में पहली यूनिवर्सिटी ऑफ टीचिंग बनाई। एक मसाज स्कूल खोला गया ताकि वाट फो थाई की आधुनिक दवाइयों की सम्भाल का केन्द्र बन सके। यहां महात्मा बुद्ध की एक विशाल लेटे हुए रूप वाली प्रतिमा (Reclining buddha)  बनाई गई है (जिसके संबंध में हम आगे पढ़ेंगे)।
वाट फो क्योंकि एकमात्र पर्यटक केन्द्र ही नहीं, यहां बौद्धियों द्वारा बुद्ध धर्म अपनाने का धार्मिक केन्द्र भी है, इसलिए पर्यटकों को पहरावे संबंधी कुछ निर्देशों का पालना भी करना पड़ता है, तभी भीतर जा सकते हैं।
इस काम्पलैक्स में जाने वाले ज्यादातर पर्यटक के मन में उस विशाल लेटे हुए बुद्धा (Reclining buddha) को देखने का उत्साह होता है, परन्तु जब इस बड़े काम्पलैक्स में पांव रखते हैं तो शेष मनमोहक इमारतें, हर चीज़ की भवन निर्माण कला को देख कर मन गद् गद् हो जाता है।
प्रांगण में बहुत-सी चीनी प्रतिमाएं हैं जोकि पहले पानी वाले जहाज़ों में इस्तेमाल किए जाते थे। एक बहुत विशाल बौद्ध वृक्ष है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वास्तविक वृक्ष जिसके नीचे महात्मा बुद्ध अन्तर-ध्यान, चिन्तन के समय बैठते थे, उस वृक्ष से उपजा है।
फरा विहारा टिस (Phra Vihara tis)
केन्द्रीय मंदिर के आस-पास छतों का एक घेरा है, जिसके साथ प्रत्येक दिशा से चार छोटे जुड़े हैं। इसको फरा विहारा टिस (Phra Vihara tis)  का नाम दिया गया है, जिसमें महात्मा बुद्ध की अन्य प्रतिमाएं हैं। अलग-अलग अंदाज़ वाली ये प्रतिमाएं महात्मा बुद्ध के जीवन के अलग-अलग पड़ाव (enlightment) को दर्शाते हैं, निर्वाण हासिल करने तक। थाइलैंड में सबसे अधिक लगभग 800 महात्मा बुद्ध की प्रतिमाएं वाट फो में हैं।
स्तम्भ एवं छेदी
पूरे समूह में हर तरफ बहुत सुन्दर स्तम्भ (Stupas) एवं छेदी (Chedis) दिखाई देते हैं। चार छेदी जो सबसे बड़े हैं, जो 42 मीटर के हैं तथा चीनी शिल्पकारी से सजाए हैं। ये चार छेदी वाट फो में बहुत आकर्षक हैं, 71 छोटे स्तम्भ भी अपनी सुन्दरता में अद्भुत हैं तथा कहा जाता है कि इनमें राज परिवार की अस्थियां हैं।
फरा उबोसाट 
(Phra ubosat)
भारी जनसमूह वाला हाल जो भिक्षु परम्पराएं निभाने के लिए राजा रामा-I की ओर से बनाया गया तथा रामा-III  के समय बड़ा किया गया।
शिला लेख वाट फो के (Inscription of Wat Pho)
वाट फो में विरासत और आध्यात्मिकता का बड़ा विचित्र भण्डार है। यहां पत्थर के 440 शिला लेख हैं जो कि थाई भाषा में हैं। 1831-1841 तक के समय की अलग-अलग धार्मिक विषयों और धर्म निर्पेक्षता के साथ संबंधित जानकारी इन शिलालेखों पर है।
यह राजा रामा-ढ्ढढ्ढढ्ढ और थाई विद्वानों की मेहनत थी कि इनकी देखभाल की जाए ताकि लोग उनके सांस्कृतिक और विरासत की विभिन्नता से अवगत हो सकें।
ब़ाग
छोटे-छोटे चीनी तरीके के पत्थरों के ब़ाग और पहाड़ियां जो कि हरियाली, छांव और सजावट के साथ भरपूर हैं। 
ग्रेनाइट की प्रतिमा
दर्जनों ही दानव और प्रतिमाएं जो ग्रेनाइट के साथ बनाए गये हैं, वाट फो की शान बढ़ाते हैं।
लेटे हुए बुद्ध 
(Reclining buddha)
अंतत: जिस बुद्धा की प्रतीकात्मक मूर्ति के दर्शनों का इंतज़ार था, वह घड़ी आ गई थी। महात्मा बुद्ध की यह विशाल प्रतिमा जो राजा रामा-III द्वारा 1832 में बनाई गई थी, 46 मीटर (151 फुट लम्बी) और 15 मीटर (49 फुट) ऊंचे बुद्धा की प्रतिमा के पहले मुख के दर्शन होते हैं (Sihasaiyas Posture)  में यानि महात्मा बुद्ध एक तरफ लेटे हुए हैं और एक हाथ से सिर को सहारा दिया है, जो बुद्धा की निर्वाण स्थिति को दर्शाता है और जो शांत हाव-भाव मूंह के बनाए गये हैं, वे काबिले-तारीफ हैं। मुख को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि आप स्वयं शांत अवस्था में चले गये हों, और मन को एक सुकून सा मिलता है।
काले रंग की आंखें और शानदार मुस्कुराहट को देखकर वहां से जाने का मन नहीं करता, लेकिन लोगों की भीड़ में से अपना रास्ता बना कर, पूरी प्रतिमा को देख कर मानो मन तरोताज़ा हो जाता है और दिल करता है कि बस, इस विशाल प्रतिमा को देखते रहो। ऐसा नज़ारा देख कर आंखों को यकीन नहीं होता। इस पर सोने का पानी चढ़ाया गया था।
बुद्धा के पैर 5 फुट लम्बे हैं और पैरों को मदर ऑफ पर्ल (एक किस्म का मोती) (Characters) के साथ सजाया गया है।
महात्मा बुद्ध की प्रतिमा के पिछली तरफ रिवायती तरीके के साथ शुभकामनाओं के लिए कटोरियों की एक कतार है, जिसमें खरीद कर सिक्के डाले जाते हैं। लोगों का मानना है कि इससे काम अच्छे होते हैं और महात्मा बुद्ध का आशीर्वाद मिलता है।
वाट फो के छोटे-छोटे पुराने रीति-रिवाज़ों और इतिहास के बारे में बहुत जानकारी मिलती है। हर तरफ शांति, अंतरध्यान वाला माहौल है। सबसे अहम और उत्तम है, सब की अलग-अलग, छोटी-छोटी मूर्तियां जो महात्मा बुद्ध की ज़िंदगी के अलग-अलग चरण बताने के साथ-साथ एक खास आध्यात्मिकता का संदेश देती हैं। यह संदेश मन में बसा कर वाट फो का सफर खत्म हो जाता है।