उत्तराखंड की वादियों में स्थित औली का नज़ारा
औली उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और ऋषिकेश से लगभग 250 किमी के फासले पर है। इस छोटे किन्तु पोस्टकार्ड जैसी सुंदरता वाले हिल स्टेशन में अधिकतर पर्यटक नवम्बर से फरवरी तक अधिक आते हैं क्योंकि तब औली बर्फ से ढका होता है और विंटर स्पोर्ट्स के लिए विख्यात इस जगह पर एडवेंचर का मज़ा कुछ और ही होता है, विशेषकर इसलिए कि औली के निकट कुछ ट्रेक्स भी हैं, उन लोगों के लिए जिन्हें बर्फ में ट्रैकिंग करना पसंद है। सबसे मशहूर गुर्सन बुग्याल ट्रेक है जो औली से 3 किमी की दूरी पर है। इस ट्रेक का सबसे शानदार पहलू यह है कि ट्रैकिंग के दौरान ऐसा प्रतीत होता है जैसे नंदा देवी, कामेट, माना पर्वत और डूनागिरी सब साथ चल रहे हों। हिमालय का जो खूबसूरत नज़ारा इस ट्रेक पर मिलता है वह दूसरे ट्रेकों पर नहीं मिलता, कम से कम मेरा अनुभव तो यही कहता है।
हालांकि जाड़ों में विंटर स्पोर्ट्स का आनंद लेने के लिए मैं अनेक बार औली गया हूं, लेकिन कभी गर्मियों में जाने का अवसर नहीं मिला था, जबकि मार्च से जून तक औली का मौसम बहुत सुहावना व दिलकश होता है। बहरहाल, इस जून के पहले सप्ताह में जैसे ही मुझे यह सूचना मिली कि इस बार लेडीज स्लिपर आर्किड (देवी का चप्पलनुमा फूल) खिला है तो मैंने औली जाने के लिए अपना बैग पैक कर लिया। ऋषिकेश से जोशीमठ के लिए गिनती की ही बसें हैं। इसलिए मैंने बस चलने का समय पहले से ही मालूम कर लिया था। खैर, 5 जून की सुबह जोशीमठ पहुंचने के बाद मुझे औली जाना था, जोकि वहां से लगभग 12 किमी के फासले पर है। यात्रा करने के लिए मेरे पास दो विकल्प थे- सड़क या रोपवे। मैंने रोपवे का चयन किया क्योंकि यह एक अलग ही अनुभव है, जिसका आनंद मैं पहले भी ले चुका हूं, लेकिन अच्छी चीज़ को कुछ अंतराल के बाद दोहराने का मज़ा ही कुछ और है। यह रोपवे भारत में सबसे ऊंचा व लम्बा (4 किमी) है। वेटिंग लिस्ट अक्सर लम्बी रहती है, इसलिए मैंने पहले ही बुकिंग करा दी थी। रोपवे का टिकट बस से महंगा पड़ता, लेकिन तीन दिन तक वैध रहता है।
रोपवे के केबिन से नज़ारा गजब का था, जिसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है, विशेषकर इसलिए कि जैसे जैसे आप ऊपर चढ़ते हैं नज़ारा बदलता रहता है। छोटे कस्बों से देवदार के जंगल और फिर दूर तक बर्फ फैली हुई... देखकर आनंद ही आ गया। बहरहाल, रोपवे टावर से उतरने के बाद मुझे दूर तक पैदल चलना पड़ा नंदा देवी इको रिसोर्ट (जीएमवीएन) पहुंचने के लिए, जो एक बहुत ही सुंदर जगह पर स्थित और जहां रहने के लिए मैंने पहले से ही ऑनलाइन बुकिंग करायी हुई थी। यह रिसोर्ट छोटा सा लकड़ी का घर है, लेकिन वहां से औली की दिलकश वादियों और गढ़वाल पर्वत श्रृंखला का अति सुंदर नज़ारा देखने को मिल रहा था, जिसने थकन के बावजूद मेरे दिल को बाग बाग कर दिया। औली मैं पहले घूम चुका हूं, यह यात्रा जैसा कि मैंने बताया, विशेष कारण से थी, इसलिए रिसोर्ट में कुछ देर सुस्ताने व थकन दूर करने और हल्का सा जलपान करने के बाद मैं अपनी मंज़िल की ओर निकल पड़ा।
मैं टहलता हुआ औली की सीमा पर जो जंगल है वहां पहुंच गया। जंगल में यूं तो तरह तरह के पेड़, पौधे हैं व फूल भी खिले हुए हैं, लेकिन मेरी नज़रें तो लेडीज स्लिपर आर्किड को तलाश रही थीं, जिसे मैंने पहले सिर्फ तस्वीरों में देखा था। यह आर्किड अपने विशिष्ट खिलने के लिए विख्यात है। यह वनों की ओपेनिंग्स, छाया भरे क्षेत्रों, अल्पाइन घास के मैदानों में 2,500 से 3,800 मी. की ऊंचाई पर खिलता है। लेकिन इसके प्राकृतिक वास के विध्वंस और अत्यधिक चराई के कारण यह आर्किड लुप्त होने की कगार पर पहुंच गया है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफनेचर (आईयूसीएन) ने इसे पौधों की उस सूची में शामिल किया हुआ है जिन पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। चूंकि मुझे जानकारी थी कि यह आर्किड किन विशिष्ट परिस्थितियों में खिलता है, इसलिए मैं छांव भरे घास के मैदानों में उसकी तलाश कर रहा था। कुछ देर तो लगी, लेकिन वाव, मेरे सामने लेडीज स्लिपर आर्किड थे, सिंडरेला के सुंदर स्लिपर्स की तरह। मैं कुछ देर उन्हें निहारता रहा और फिर उन्हें बच्चों की तरह गिनने लगा- आर्किड की संख्या कुल 50 थी।
इससे अंदाज़ा लगा लीजिये कि यह कितना दुर्लभ आर्किड है और मैं कितना खुशकिस्मत कि मुझे इसे देखने का अवसर मिला। यह जीवन में एक बार का ही अनुभव हो सकता है क्योंकि इसकी गारंटी नहीं है कि फिर कभी मुझे यह देखने को मिले। गौरतलब है कि इस आर्किड की एक अन्य पापुलेशन 2012 में चकराता क्षेत्र के नाग टिब्बा में पायी गई थी। तब से यह लुप्त होने की कगार पर ही है, चराई के दबाव के कारण। वन गुर्जर अपनी भेड़ बकरियों को खुले में छोड़ देते हैं, जो आर्किड को नष्ट कर देती हैं। बहरहाल, ताज़े घटनाक्रम में औली में जो आर्किड की प्रमुख साइट मिली है, वह इसके संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। अगर इस लुप्तप्राय प्रजाति को बचाये रखना है तो इस साइट की सुरक्षा आवश्यक है। इन दोनों साइट्स के अतिरिक्त आर्किड की पापुलेशन गाहे-बगाहे इतनी ही ऊंचाई पर पिथौरागढ़ व नैनीताल में भी देखने को मिली है। इस आर्किड की उपस्थिति विशिष्ट हिमालय लैंडस्केप तक सीमित है और यह हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, पाकिस्तान, नेपाल व तिब्बत में भी देखा गया है। औली में जहां आर्किड खिले हैं, वह क्षेत्र सड़क के निकट है, जिससे उन पर खतरा अधिक मंडरा रहा है, विशेषकर लापरवाह पर्यटकों व स्थानीय लोगों से। वन विभाग के अधिकारी इस साइट को सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर