मानसून में मनोहारी केरल की  सर्प नौका दौड़

भगवान के अपने देश केरल में मानसून के आते ही जो मनोहारी सर्प नौका दौड़ शुरू होती है, उसका आगाज गुजरे 22 जून, 2024 से हो चुका है और अब यह सितम्बर 2024 तक पूरे केरल में अनेक जगहों में दिल को बांध लेने वाली भव्यता के साथ संपन्न होंगी। इन्हें देखने के लिए इस दौरान यहां देश-विदेश के लाखों पर्यटक पहुंचते हैं। ‘चुंडनवल्लम’ या ‘स्नेक बोट’ वास्तव में फुंफकारते सांप सी दिखने वाली एक लंबी पारंपरिक डोंगी शैली की नाव होती है, जो अमूमन 100 से 120 फीट तक लम्बी होती है और इसमें 4 नाविक, 25 गायक से लेकर 100 नाविक 125 गायक तक भी हो सकते हैं, जो नदी या बैक वाटर में बहुत तेज़ नाव भगाते हुए केरल के पारंपरिक वाद्ययंत्रों की संगत में ‘वंचिपटटू’ यानी सामूहिक लय वाला नौका गीत गाते हैं। 
यह गायन नाविकों का उत्साह बढ़ाने के लिए होता है और गायक या नाविक अक्सर एक ही होते हैं, इसलिए कोई नाविक नाव चलाते (खेते हुए) हुए अगर महसूस करता है कि उसकी तरफ का संगीत कमजोर हो रहा है, तो वह कोई वाद्य बजाने लग सकता है या कोई गाना या बजाना छोड़कर चप्पू भी थाम सकता है ताकि प्रतिद्वंदी नाव से उसकी नाव पीछे न रहे। वैसे तो जुलाई की शुरुआत से लेकर सितंबर तक पूरे केरल में जगह-जगह स्थानीय सर्प नौका दौड़ें होती हैं, लेकिन जिन सर्प नौका दौड़ों को केरल सहित पूरी दुनिया में बहुत उत्सुकता से देखा और इंतजार किया जाता है, केरल में ऐसी चार नौका दौड़ें होती हैं। लेकिन इनके बारे में हम विस्तार से जानें इससे पहले इस सदियों पुरानी परंपरा के बारे में कुछ जान लेते हैं। 
लहराते ताड़ के पेड़ों, नदियों, झीलों, आवासीय परिसरों के पीछे शांत बैक वार्ट्स और इस तरह की विविध जलराशियां जो पूरे केरल में हर ओर बिखरी हुई हैं, उन सबमें मानसून के आते ही सर्प नौका दौड़ की रौनक और उत्साह नज़र आने लगता है। केरल का हर गांव इस मौके पर अपनी ताकत और परंपरा पर मजबूत पकड़ साबित करने के लिए अपनी-अपनी नावों के साथ इस सर्प नौका दौड़ में शामिल होते हैं और इससे बहुत गर्व महसूस करते हैं। मानसून के आते ही पूरे केरल में स्नैक बोट रेस की मस्ती और धूम छा जाती है। पिछले कुछ दशकों से इस मस्ती और उत्सव का हिस्सा बनने के लिए देश के विभिन्न कोने सहित विदेश से भी लाखों पर्यटक पहुंचते हैं।
मगर सवाल है केरल की यह परंपरा शुरु कैसे हुई? कोई 400 सालों से केरल में स्नैक बोट रेस की परंपरा है। इसके पीछे एक प्रसिद्ध किंवदंति यह है कि प्राचीनकाल में एलेप्पी (अलप्पुझा) और उसके आसपास के इलाकों के जलमार्गों का यहां की विभिन्न रियासतों के राजा आपस में एक दूसरे के विरूद्ध लड़ने के लिए इस्तेमाल करते थे। इन जलयुद्धों के दौरान वे दूसरों पर भारी पड़ने के लिए सटीक हल्की और पानी को तीव्रता से काटने वाली डोंगीनुमा नावों का विकास किया करते थे, जिनका अगला सिरा फुंफकारते सांप के फन जैसा बनाया जाता था और इसे खूंखार दर्शाने के लिए इसे लाल, काले और गेरूए रंग से रंगते थे। 
धीरे-धीरे इतिहास के ये जलयुद्ध तो खत्म हो गए, लेकिन बेहतरीन नाव वास्तुकारों के द्वारा बनायी गई स्नैक बोट बची रहीं, जिनके चलते यह आधुनिक स्नैक बोट रेस विकसित हुई। नतीजा यह हुआ कि जलयुद्धों का कौशल अब सर्प नौका दौड़ों में दिखने लगा। इसके जरिये लोग सालों में विकसित हुई इस कुशलता को भी बरकरार रखा और रेस के जरिये हार जीत का रोमांच भी महसूस किया। धीरे धीरे हर साल मानसून के मौके में जून के अंतिम या जुलाई के पहले सप्ताह से लेकर सितंबर तक सर्प नौका दौड़ों और बेहतरीन सर्प नौका संगीत के आयोजन की परंपरा शुरु हो गई। आज पूरे केरल में इस सर्प नौका दौड़ का चलन है और इसे केरल ने अपनी विशिश्ट पर्यटन यूएसपी के रूप में पेश किया है। यही वजह है कि आजकल पूरे केरल में कम से कम चार ऐसी सर्प नौका दौड़ें हैं, जिनके बारे में पूरी दुनिया मानसून आने के पहले से ही खोज खबर करने लगती है कि किन किन तारीखों पर सम्पन्न होंगी।
देश विदेश को आकर्षित करने वाली केरल की ये चार प्रसिद्ध सर्प नौका दौड़े हैं। चंपाकुलम सर्प नौका दौड़, नेहरू ट्राफी स्नैक बोट रेस, अरनमुला स्नैक बोट रेस और पयिप्पड़ जलोत्सवम। चंपाकुलम दौड़ सबसे पहले शुरु होती है। इस साल यह 22 जून 2024 को आयोजित हुई। यह सबसे प्राचीन और लोकप्रिय स्नैक बोट रेस है। इस स्नैक बोट रेस में, अंबलप्पुषा के श्रीकृष्ण मंदिर में भगवान की मूर्ति की स्थापना का जश्न मनाया जाता है। इस जश्न के दौरान 25 किलोमीटर की यह सर्प नौका दौड़ भी होती है, जो एलेप्पी से शुरु होकर चंपक्कुलम नदी में चंगनास्सेरी तक जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटकों, रंगीन छतरियों आदि का नौका रेस में उमड़ना है।
इसके अलावा नेहरू ट्राफी स्नैक बोट रेस का चलन 1952 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पुन्नमदा झील पर आयोजित इस रेस को देखने आने से हुआ। तभी से यह नेहरू ट्राफी स्नैक बोट रेस है। तीसरी मशहूर स्नैक बोट रेस अरनमुला की है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की दो दिवसीय धार्मिक उत्सव की परंपरा शामिल है। यह त्रिवेंद्रम से 116 किलोमीटर दूर आयोजित होती है। अंतिम और चौथी स्नैक बोट रेस पयिप्पड़ जलोत्सवम है। यह भी एलेप्पी से 35 किलोमीटर दूर सम्पन्न होता है। इस तरह मानसून में केरल स्नैक बोट रेस के चारो तरफ रोमांच से भरपूर रहता है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर