दरवाज़ों का शहर दिल्ली

विशाल देश भारत की राजधानी नई दिल्ली, संसार के पुरातन नगरों में से एक है। हजारों साल पहले यमुना तट पर पांडवों ने इंद्रप्रस्थ नाम से अपनी राजधानी स्थापित की थी। ऐसी ऐतिहासिक मान्यता है कि राजधानी के रूप में दिल्ली सात बार उजड़ी और बसायी गई। भारतीय इतिहास के मध्यकाल में इसे क्र मश: किलाराय पिठौरा, महरौली, शिरी, तुगलकाबाद जहांपनाह, दीनपनाह, शेरगढ़ और शाहजहानाबाद के नाम से पुकारा जाता रहा था। दिल्ली को आधुनिक राजधानी का रूप देने का श्रेय ब्रिटिश शासन कर्ताओं को है।
भारत ही नहीं, दुनिया के अन्य देशों में भी राजधानी नगर के निर्माण में सुरक्षा के लिए ऊंची दीवारें बनायी जाती थीं। दीवारों के घेरे में प्रवेश के लिये कई विशाल द्वार बनाये जाते थे। राजधानी नगर दिल्ली में भी इसी परंपरा को पुराने समय से ही अपनाया जाता रहा है। आक्रमणकारियों से सुरक्षा के लिए पत्थर की दीवारें तथा ऊंचे प्रवेश द्वार बनाये गये। आवागमन के लिए जगह-जगह पर पत्थर से विशाल द्वार बनाये गये। आरंभ में इन द्वारों का नामकरण दिशाओं के अनुसार होता था यथा पूर्वी द्वार, पश्चिम द्वार आदि। बाद में इनके नाम बनाने वाले या रास्तों के अनुसार रखे गए हैं जैसे तुर्कमान गेट, शेरशाह सूरी दरवाजा। राजधानी दिल्ली के कलापूर्ण निर्माण में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान मुगल बादशाह शाहजहां का रहा है। उसे यमुना किनारे दिल्ली, आगरा के मुकाबले अधिक पसंद थी। इसी वजह से लालकिला और जामा मस्जिद के अलावा शाहजहां ने अनेक निर्माण कार्यों को अपने जीवनकाल में पूरा करवाया।किंवदतियों के अनुसार राजधानी नगर दिल्ली को अठारह दरवाजों का शहर माना जाता रहा है लेकिन ये सभी दरवाजे अब साबुत नहीं बचे हैं। शेष बचे उल्लेखनीय दरवाजे लालकिले में या उसके आस-पास हैं। कहा जाता है कि सम्राट शाहजहां ने लालकिले में तथा उसके आस-पास बारह दरवाजों का निर्माण करवाया था जिनमें अधिकतर टूट गये लेकिन शेष बचे मुख्य दरवाजों का परिचय इस प्रकार है :-
लाहोरी गेट : यह प्रसिद्ध द्वार वर्तमान में लालकिले का प्रवेश द्वार है। लालकिले में पश्चिम की ओर लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित है। पुराने समय में लाहौर, मुल्तान, पंजाब और पश्चिमी इलाकों से आने वाले लोगों के प्रवेश के लिए था। इसके ऊपर नौबतखाना भी है। इस द्वार के आगे मुस्लिम शासक कुतुबद्दीन एबक की कब्र है। बाद में इस द्वार के आगे लाल पत्थरों की ऊंची और चौड़ी दीवार बना दी गई है। इस द्वार के ऊपर राष्ट्र ध्वज तिरंगा लहराता रहता है। इसी स्थल पर स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के अवसर पर प्रधानमंत्री एक समारोह का उद्घाटन करते हुए राष्ट्र के नाम संदेश देते हैं। इस गेट के सामने एक लंबी सड़क पर चांदनी चौक का मशहूर बाज़ार स्थित है। 
कलकत्ता दरवाजा और राजघाट दरवाजा : ये दोनों दरवाजे लालकिले की पूर्वी दीवार में यमुना की ओर हैं जिन्हें अब बंद कर दिया गया है। पहले इस ओर यमुना नदी की धारा किले की दीवार के पास से बहती थी जो अब अलग कर दी गयी है।
कश्मीरी गेट : पुरानी दिल्ली में अंतर्राज्यीय बस अड्डे के निकट मुरम्मत किया हुआ यह दरवाजा स्थित है। लालकिले में रहने वाले बादशाह और शहजादों की शाही सवारियां इसी दरवाजे से कश्मीर तथा उत्तरी भारत के लिये कूच करती थीं। वर्ष 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय रणबांकुरों ने इसी द्वार के सहारे लालकिले तथा दिल्ली पर कुछ दिनों के लिए कब्जा कर लिया था। अब इसके चारों ओर बाजार तथा गाड़ियों की रेल-पेल है।
दिल्ली गेट : दरियागंज तथा रामलीला मैदान के संधि स्थल पर दरियागंज थाने के पास मुख्य सड़क पर खड़ा है यह दिल्ली गेट। दिल्ली में होते हुए भी इसका नाम दिल्ली दरवाजा क्यों? वजह है कि लालकिले के निर्माण के समय दिल्ली बस्ती वहां दरियागंज के इलाके से बाहर थी तो उधर के रास्ते पर बने द्वार का नाम दिल्ली दरवाजा रखा गया। 
तुर्कमान गेट : मशहूर संत हजरतशाह तुर्कमान के नाम पर इसका नाम रखा गया है जिसकी दरगाह भी वहीं पर है। इसकी स्थिति रामलीला मैदान के उत्तर में आसफअली रोड पर है।
अजमेरी गेट : पुरानी दिल्ली से अजमेर, राजस्थान तथा गुजरात की ओर जाने वाले पुराने मार्ग पर खड़ा है यह अजमेरी गेट। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तथा कमला मार्किट के व्यस्त बाजार के निकट इस अजमेरी गेट को सुरक्षा के लिये घेर दिया गया है।
निगमबोध घाट : यह गेट यमुना बाजार में रिंग रोड पर श्मशान घाट के पास है। ऐसी मान्यता है कि यहां परमपूज्य देवता ब्रह्मा ने स्नान किया और स्थान को पवित्र किया था। इसके पास ही हिन्दू जन अपने मृतकों का दाह संस्कार किया करते हैं।
इंडिया गेट : आधुनिक नगर राजधानी नई दिल्ली में सबसे प्रसिद्ध तथा दर्शनीय स्थल है राजपथ पर स्थित इंडिया गेट। मूल रूप से यह युद्ध का स्मारक है जिसे अंग्रेज इंजीनियर एडविन लुटिन ने डिजाइन किया था। यह भारत अफगान युद्ध में कुर्बान हुए सैनिकों की यादगार के रूप में ही स्थापित किया गया है। इंडिया गेट की दीवारों पर शहीद सैनिकों के नाम और रैंक लिखे हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी के दिन राजपथ पर राष्ट्रपति महोदय राष्ट्र ध्वज फहरा कर मंत्री, रक्षा मंत्री तथा सेनाध्यक्ष इंडिया गेट पर स्थित ‘अमर जवान ज्योति’ पर शहीदों की याद में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। इस राजधानी दिल्ली शहर में नये पुराने अनेक द्वार हैं जो दर्शकों का मन मोह लेते हैं। (उर्वशी)