शिक्षा, प्रशिक्षण व रोज़गार से वंचित है देश की बड़ी आबादी
यह जानकर आपको आश्चर्य हो सकता है कि भारत में 6-10 वर्ष की आयु के लगभग 10 प्रतिशत बच्चे स्कूलों से बाहर हैं जबकि शिक्षा मौलिक अधिकार है। भारतीय ग्रामीण परिवारों के लिए स्वास्थ्य सेवा पर किया जाने वाला व्यय उनकी जेब की क्षमता से बाहर है क्योंकि उन्हें अस्पताल में भर्ती होने पर सालाना 4,129 रुपये और मासिक 539 रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जिसे वह वहन नहीं कर सकते। जुलाई, 2022-जून, 2023 के दौरान आयोजित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 79वें दौर की रिपोर्ट में युवाओं में एनईईट (शिक्षा, रोज़गार और प्रशिक्षण में नहीं) की स्थिति और लोगों में ऋणग्रस्तता सहित कुछ अन्य चौंकाने वाले निष्कर्ष भी सामने आये हैं। प्राथमिक शिक्षा में बच्चों की संख्या मात्र 90.1 प्रतिशत है, शहरी क्षेत्रों में 89.2 प्रतिशत तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 90.5 प्रतिशत। लड़कियों का नामांकन 89.9 प्रतिशत है—शहरी क्षेत्रों में 88.7 प्रतिशत तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 90.3 प्रतिशत। लड़कों का नामांकन 90.3 प्रतिशत है—शहरी क्षेत्रों में 89.6 प्रतिशत तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 90.6 प्रतिशत।
सरकारी स्कूलों में ग्रामीण क्षेत्रों में 76.7 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्रों में 36.5 प्रतिशत नामांकन हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में 5.5 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्रों में 18.2 प्रतिशत नामांकन हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों में निजी स्कूलों में 16.6 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्रों में 43.8 प्रतिशत नामांकन हुआ। 6-18 वर्ष की आयु के उन बच्चों और किशोरों के कभी औपचारिक शिक्षा में नामांकन नहीं कराने के पीछे अनेक कारण हैं। वित्तीय समस्याओं के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में 14.9 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्रों में 23.6 प्रतिशत नामांकन नहीं हो पाया। ये आंकड़े पढ़ाई में रुचि नहीं रखने वालों में क्रमश: 25.1 और 19.9 प्रतिशत थे। ग्रामीण क्षेत्रों में 22.2 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 15.5 प्रतिशत ऐसे बच्चे थे जिनके माता-पिता या अभिभावक उन्हें स्कूल भेजने में रुचि नहीं रखते थे। खराब स्वास्थ्य या विकलांगता के कारण स्कूल नहीं जाने वालों की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में 12.6 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 15.1 प्रतिशत थी। अन्य कारणों से स्कूल न जाने वालों की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में 25.1 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 26 प्रतिशत थी। 15 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों में से 81.6 प्रतिशत लोग अपने दैनिक जीवन में छोटे-छोटे सरल कथनों को समझकर पढ़ और लिख सकते हैं। महिलाओं के लिए यह आंकड़ा मात्र 74.8 प्रतिशत और पुरुषों के लिए 88.3 प्रतिशत है। यह एक बड़ा लैंगिक अंतर दर्शाता है, लेकिन एक सकारात्मक पहलू भी उभरता हुआ दिखाई देता है। 15-24 आयु वर्ग में यह आंकड़ा पुरुषों के लिए 97.9 प्रतिशत और महिलाओं के लिए 96 प्रतिशत है।
देश में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लिए औपचारिक शिक्षा में स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष केवल 8.4 हैं। महिलाएं केवल 7.4 वर्ष और पुरुष 9.3 वर्ष ही स्कूलों में बिताते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में औसतवर्ष सभी के लिए 7.5 वर्ष है—महिलाओं के लिए 6.4 वर्ष और पुरुषों के लिए 8.5 वर्ष। शहरी क्षेत्रों में यह सभी के लिए 10.5 वर्ष है—महिलाओं के लिए 9.7 वर्ष और पुरुषों के लिए 11.2 वर्ष। यह आंकड़ा निराशाजनक है।
देश में 25 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में से 38.6 प्रतिशत लोगों को ही माध्यमिक शिक्षा प्राप्त है। शहरी क्षेत्रों में 56.6 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 30.4 प्रतिशत। राष्ट्रीय स्तर पर इस आयु वर्ग के केवल 46.2 प्रतिशत लोगों के पास माध्यमिक शिक्षा है जबकि महिलाओं का प्रतिशत केवल 31 है। शहरी क्षेत्रों में पुरुषों और महिलाओं के लिए यह आंकड़ा 63 और 50.1 प्रतिशत है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी खराब है, जहां केवल 38.4 प्रतिशत पुरुषों और 22.4 प्रतिशत महिलाओं के पास माध्यमिक शिक्षा है। देश में 15-29 आयु वर्ग के ऐसे युवा जो शिक्षा, रोज़गार और प्रशिक्षण से वंचित हैं, उनकी संख्या 25.6 प्रतिशत है, जिनमें से 44.6 प्रतिशत महिलाएं और केवल 8 प्रतिशत पुरुष हैं। पिछले एक वर्ष के दौरान प्रति परिवार अस्पताल में भर्ती होने का औसत चिकित्सा व्यय ग्रामीण क्षेत्रों में 4,496 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 6,877 रुपये था। प्रति व्यक्ति यह लागत क्रमश: 1,035 रुपये और 1,879 रुपये थी। अस्पताल में भर्ती हुए बिना उपचार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति परिवार औसत चिकित्सा व्यय 545 रुपये प्रति माह और शहरी क्षेत्रों में 621 रुपये प्रति माह था। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति ये लागत क्रमश: 125 रुपये और 170 रुपये थी।
प्रति परिवार प्रति वर्ष चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती होने का औसत जेब खर्च ग्रामीण क्षेत्रों में 4,129 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 5,290 रुपये था। ये व्यय प्रति व्यक्ति 950 रुपये और 1,446 रुपये थे। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति परिवार अस्पताल में भर्ती न होने पर उपचार में औसत जेब से चिकित्सा व्यय 539 रुपये प्रति माह और शहरी क्षेत्रों में 606 रुपये प्रति माह था। प्रति व्यक्ति प्रति माह अस्पताल में भर्ती हुए बिना चिकित्सा व्यय ग्रामीण क्षेत्रों में 124 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 166 रुपये था। प्रति एक लाख व्यक्तियों पर 18 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति के लिए ऋणग्रस्तता बहुत अधिक है। सर्वेक्षण वर्ष में प्रति लाख 18,322 लोग ऋणी पाये गये। ग्रामीण ऋणग्रस्तता शहरों से अधिक 24,322 थी जबकि शहरी ऋणग्रस्तता 17,442 थी। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पुरुष महिलाओं की तुलना में अधिक ऋणी हैं। इससे पता चलता है कि देश में 18 प्रतिशत से अधिक लोग ऋणी हैं, जिसका अर्थ है कि उन लोगों को अपनी वर्तमान आय के स्तर पर अपने व्यय का प्रबंधन करना मुश्किल हो रहा है, जो चिंताजनक है। (संवाद)