दिल्ली के मतदाताओं को क्या झकझोर पायेगा शीशमहल का वीडियो ?

अब जबकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए सिर्फ अंतिम 7 दिन बचे हैं, तो राजधानी में सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी सारी राजनीतिक और रणनीति ताकत झोंक दी है। भाजपा ने चुनाव प्रचार के इस उत्तरार्द्ध में दिल्ली के सीएम हाउस का, जिसे वह इन दिनों शीशमहल कह रही है, फिर से एक नया वीडियो जारी किया है, इस उम्मीद से कि मतदान के पहले इन अंतिम घड़ियों में यह वीडियो दिल्ली के मिडिल क्लास मतदाताओं को झकझोर देगा और वे भाजपा को भारी तादाद में मत देकर जीता देंगे। मगर क्या सचमुच ऐसा होगा? इसमें कोई दो राय नहीं है कि वीडियो को कमेंट्री के जरिये जितना सनसनीखेज बनाया जा सकता है, वह बनाया गया है। वीडियो के मुताबिक तथाकथित शीशमहल में 4 से 5.6 करोड़ के तो महज बॉडी सेंसर युक्त 80 पर्दे ही लगाये गये हैं। ये पर्दे रिमोट वाले हैं और इनके नज़दीक जाते ही ये स्वत: एक तरफ होकर आने वाले को रास्ता देते हैं। यही नहीं इस वीडियो में सीएम हाउस उर्फ शीशमहल के भीतर 64 लाख रुपये के 16 टीवी सेट, 10 से 12 लाख रुपये की टॉयलेट शीट, 36 लाख रुपये के सजावटी खंभे आदि भी लगाये गये हैं। भाजपा का अनुमान है कि मतदान के ठीक पहले ये वीडियो दिल्ली के मिडिल क्लास मतदाताओं के अंतर्मन को झकझोर डालेगा और वे भाजपा के पक्ष में एकमुश्त मतदान करने के लिए मज़बूर हो जायेंगे।
लेकिन अगर कहा जाए कि यह महज खामख्याली है कि शीशमहल का यह वीडियो मतदाताओं का हृदय परिवर्तन कर देगा तो अतिश्योक्ति न होगी, क्योंकि अगर भारतीय मतदाताओं के लिए भ्रष्टाचार उतना ही संवेदनशील मुद्दा होता तो क्या लोकसभा चुनावों के दौरान इलेक्ट्रोरल बांड का मुद्दा उन्हें परेशान न करता?  शीशमहल वीडियो तो 34-35 करोड़ से लेकर 60 करोड़ तक की फिजूलखर्ची का ही मुद्दा है, जबकि 17वीं लोकसभा चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा पर लगा इलेक्टोरल बांड का 8 हजार करोड़ रूपये से ज्यादा के भ्रष्टाचार का मुद्दा था। विपक्ष ने खुलेआम भाजपा को मिले इन इलेक्टोरल बांड को फिरौती करार दिया था, इसके बावजूद अगर कहा जाए कि भाजपा की लोकसभा चुनाव में जो सीटें अनुमान से कम आयी थीं, उसका कारण यह इलेक्टोरल बांड का भ्रष्टाचार था, तो इस बात को कोई नहीं मानेगा और मानने का ठोस आधार भी नहीं है। 
दरअसल भारत में मध्य और उच्च मध्यवर्ग के लिए भ्रष्टाचार का मुद्दा अब कोई मुद्दा ही नहीं है, जो उन्हें झकझोर सके। सच बात तो यह है कि न सिर्फ भारतीय मतदाताओं ने बल्कि हर भारतीय ने अब इस बात को बहुत सहजता से स्वीकार कर लिया है कि भ्रष्टाचार हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है। भ्रष्टाचार के प्रति भारतीयों की धारणा बदल गई है। बहुत तेज़ी से हम भारतीय अब इसे व्यवस्था का हिस्सा मानने लगे हैं और जो ऐसा नहीं करता, उसे सिरफिरा या व्यवहारिक समझ में कमजोर माना जाने लगा है। देश के मिडिल क्लास और उच्च मध्यवर्ग के साथ साथ आम लोग भी अब इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि सरकारी कार्यालयों में काम करवाने के लिए रिश्वत न देना नासमझी और खुद अपने आपका दुश्मन होना है, क्योंकि उसके बिना तो काम चल ही नहीं सकता। 
ऐसे में लगता नहीं है दिल्ली भाजपा मुख्यमंत्री आवास को जिस तरह भ्रष्टाचार का मुद्दा बना रही है, वह किसी तरह से दिल्ली के मतदाताओं को झकझोरेगा। दिल्ली में करीब 37 प्रतिशत मतदाता मध्य या उच्च मध्यवर्ग से नाता रखते हैं। भाजपा इन्हें अपना पक्का वाला मतदाता मान रही है, क्योंकि आम आदमी पार्टी पर गरीब समर्थक होने का ठप्पा लगा है। भाजपा को लगता है कि दिल्ली का मिडिल क्लास मतदाता आप से चिढ़ा हुआ है, क्योंकि उसे लगता है कि उसके टैक्स से ‘आप’ गरीबों का वोट खरीद रही है। निकाले गये अपने इसी निष्कर्ष के कारण विधानसभा चुनाव के इस आखिरी चरण में केजरीवाल को महाभ्रष्ट साबित करने में तुली है। लेकिन दिल्ली के मतदाताओं का जो रूझान कैमरे के सामने देखने में आ रहा है, उससे साफ पता चलता है कि दिल्ली के मध्य या उच्च मध्यवर्ग के मतदाताओं को पूर्व मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार की यह कहानी प्रभावित नहीं कर रही। 
अव्वल तो केजरीवाल ने मुख्यमंत्री आवास पर कितना ही पैसा खर्च करके उसे अभिजात्य महल बना दिया हो, लेकिन कहीं न कहीं इसमें यह सच्चाई तो है ही कि मुख्यमंत्री आवास केजरीवाल की निजी प्रॉपर्टी नहीं है, आज नहीं तो कल उन्हें किसी और के लिए इसे छोड़ना ही पड़ेगा। सवाल है क्या तब भी यह लोगों को केजरीवाल के निजी भ्रष्टाचार की तरह महसूस होगा? जाहिर है इस मुद्दे के मतदाताओं को परेशान न कर पाने की वजह सिर्फ यही नहीं है, असली वजह यह भी है कि लोगों को अब यह विश्वास हो चला है कि बिना भ्रष्टाचार के जीवन नहीं जीया जा सकता और राजनीति भ्रष्टाचार रहित होगी, इसकी तो आम मतदाता अब कल्पना ही नहीं कर पाते। क्योंकि रोजमर्रा की जिंदगी में कदम कदम पर मतदाताओं को इस सच्चाई से दोचार होना पड़ता है। यही वजह है कि अगर हम हाल के दशकों में मतदाताओं के मतदान पैटर्न को देखें तो साफ पता चलता है कि उनके लिए भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं है। यह किसी एक दो पार्टी या कुछेक नेताओं की ही बात नहीं है, देश के लगभग हर कोने के मतदाताओं ने सभी क्षेत्रीय व राष्ट्रीय पार्टियों को भ्रष्टाचार के चलते घेरने या उसकी बिना पर उन पर सवाल उठाना ही छोड़ दिया है। मतदाता अब मानकर चलते हैं कि हर पार्टी भ्रष्ट है, हर राजनेता भ्रष्ट है, अब तो सारी समझदारी कम भ्रष्ट या कम बुरा विकल्प चुनने की तरफ बढ़ गई है।
ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस पार्टी पर शारदा चिट फंड घोटाले के आरोप हैं, तो तमिलनाडु में एआईडीएमकेई के पलानीस्वामी पर भी कई सौ करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोप हैं। बिहार में लालू प्रसाद यादव पर चारा घोटाला चल ही रहा है तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कई नेताओं पर भ्रष्टाचार का मुद्दा विशेषकर आय से ज्यादा संपत्ति का मामला अभी भी किसी न किसी रूप में चल ही रहा है। देश की कोई ऐसी राजनीतिक पार्टी नहीं है, कोई भी ऐसा राजनेता नहीं है, जिस पर भ्रष्टाचार का आरोप न लगा हो, जिस पर भ्रष्टाचार को लेकर कानूनी कार्यवाई की खानापूर्ति न की गई हो या न किये जाने की धमकी न दी जा रही हो। यही कारण है भ्रष्टाचार पर आम लोगों का भरोसा उठ गया है। आम मतदाता की नज़र में अब भ्रष्टाचार कोई ऐसा मुद्दा नहीं है, जिससे वो किसी पार्टी को वोट देने या न देने की सोचे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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