ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल और भारत

कुछ दिन पहले (20 जनवरी) को ट्रम्प ने अमरीकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण की। वह 47वें राष्ट्रपति बने। उन्होंने कहा कि यह अमरीका का स्वर्णिम युग शुरू हो गया। आज पूरा विश्व एक-दूसरे से बंधा है। इसलिए राष्ट्रपति के बदल जाने से नीतियां बदल जाती हैं, जिनके वैश्विक प्रभाव होते हैं। अमरीका और भारत इससे अलग कहां हैं? ट्रम्प ने खुद को अमरीका का उद्धारक कहा है। अमरीका में एनर्जी एमरजेंसी लागू कर दी गई है। यानी पैट्रोल-डीज़ल वाली गाड़ियों को प्रोत्साहन दिया जाएगा। इसी के साथ ट्रम्प ने ईवी पर सब्सिडी खत्म करने की घोषणा कर दी है। इस कदम से ऑटो मोबाइल इंडस्ट्री पुनर्जीवित हो जाएगी। एक बात और इस तीस मिनट के सम्बोधन में उभर कर आई है वह यह है कि ट्रम्प ने कहा है-सभी को बराबरी का हक होगा। धर्म और नस्ल के नाम पर भेदभाव नहीं होगा। मेरिट व्यवस्था  लागू होगी। थर्ड जेंडर खत्म होगा। पश्चिम के देशों और अन्य पूंजीपति देशों में गोरे-काले का भेदभाव आज तक बहुत आदर्श और अच्छी लगने वाली मानवीय बातों के बावजूद कालों के प्रति भेदभाव बना रहा है। कहीं भी कोई छोटा-मोटा अपराध पकड़ में आ जाये सबसे पहले कानून व्यवस्था का सन्देह किसी रंगीन नागरिक की तरफ जाएगा। यह मर्मान्तक है। यदि ट्रम्प अपने कार्यकाल में गोरे-काले का भेदभाव खत्म कर पाएं तो यह तो बड़ी मानवीय पहलकदमी होगी। ड्रग माफिया पर वह काफी सख्त नज़र आये। भारत भी ड्रग माफिया से बेहद परेशान है। न्यायालय भी सख्ती से निपटने को कह चुका है, लेकिन अभी तक कोई प्रभावी रणनीति बन नहीं पाई। ट्रम्प ड्रग माफिया को लेकर कह रहे हैं कि इन्हें विदेशी आतंकी घोषित करेंगे। किसी भी तरह के विदेशी गिरोह का खात्मा करने के लिए विदेशी शत्रु अधिनियम 1978 लागू किया जाएगा। सवाल यह उठाया जा सकता है कि हम भारतीयों को ट्रम्प काल में इतनी दिलचस्पी क्यों है? इसका एक जवाब यह है कि हम ही नहीं, पूरी दुनिया को ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में एक-एक घड़ी का हिसाब रखने में दिलचस्पी इसलिए भी है कि ट्रम्प को राजनीति में अनप्रिडिक्टेबल माना जा रहा है। इसके साथ ही दुनिया में अनगिनत आर्थिक, राजनीतिक आदेशों के साकार होने के अनुमान लगाये जा रहे हैं। वह महा-शक्ति देश को दिखा देने वाले पथ पर जो हैं। हमारी चिन्ता इस बात पर भी है कि भारत के साथ उनके रिश्ते किस तरह के रहने वाले हैं? या हमारे सामने चुनौतियां किस तरह की हो सकती हैं? क्या अमरीका के साथ हमारे संबंध उसी तरह के रह पाएंगे जैसे पिछले दो दशकों में बेहतरी की तरफ बढ़ रहे थे। हालांकि रूस से तेल लेने पर भारत की पहलकदमी पर अमरीका का मूड बिगड़ा हुआ नज़र आता रहा, लेकिन भारत ने इसकी ज्यादा चिन्ता नहीं दिखाई। मीडिया की माने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ट्रम्प से मैत्री संबंध हैं, लेकिन फिलहाल व्यवहारिक स्तर पर ऐसा कुछ नज़र नहीं आता। हम याद कर सकते हैं कि ब्रिक्स सम्मेलन के समय डोनाल्ड ट्रम्प ने ‘ब्रिक्स करंसी’ पर सख्त शब्दों में अपने विचार प्रकट करने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई और कहा था कि अगर ‘ब्रिक्स करंसी’ की बात को व्यवहारिक रूप देने की कोशिश की तो भारत के खिलाफ व्यापार में अमरीका टैरिफ के ट्रम्प कार्ड का इस्तेमाल करने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाएगा। अब फिर एक तरह से चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अमरीका की मुद्रा डॉलर को सर्वश्रेष्ठ माने। यानी अगर भारत ने डॉलर का मुकाबला करके किसी रणनीति को साकार करने की कोशिश की तो अमरीका भारत के खिलाफ कड़ा रुख अपना सकता है। एक नज़रिया यह भी है कि अगर चीन के साथ अमरीका का ट्रेड वार बढ़ता है तो यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इसका अपने हित में किस तरह इस्तेमाल करता है। अगर अमरीकी कम्पनियां, विशेषकर तकनीकी कम्पनियों पर चीन के साथ काम न करने का दबाव बढ़ता है तो इससे भारत की भूमिका अहम हो जाएगी। भारत इसका फायदा उठा सकता है किस तरह से यह देश की नीतियों पर निर्भर है। चीन आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, सामरिक दृष्टि से भी अमरीका के निशाने पर रहेगी। राजनीति में यह सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वह चीन को काउटर करने के लिए ‘क्वाड’ पर ज्यादा ध्यान देंगे। पहले भी 2017 में उन्होंने ‘क्वाड’ को पुनर्जीवित किया था। 

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