कृषि संकट को नियंत्रित करने के लिए उचित नीति की ज़रूरत
कृषि गम्भीर संकट में है। पंजाब के किसानों में मायूसी छाई हुई है और वे अपनी निराशा रोष रैलियां करके दूर कर रहे हैं। उनकी शुद्ध आय कम हो रही है। उत्पादन में जड़ता है। कृषि खर्च प्रत्येक दिन बढ़ रहा है। इसका एक कारण साधनों का उचित उपयोग न होना है। विगत 20 वर्षों से प्रयास किए जा रहे हैं, परन्तु फसली विभिन्नता में कोई सफलता नहीं मिली। धान की काश्त के आधीन रकबा बढ़ रहा है, जो 32 लाख हैक्टेयर को छू गया। धान की काश्त के अधीन 10 से 15 लाख हैक्टेयर रकबा कम करने की ज़रूरत है, क्योंकि इसकी पानी की ज़रूरत अधिक है, प्रदूषण की समस्या है और पराली की सम्भाल के लिए आग लगाना बंद करने में कोई अधिक सफलता नहीं मिल रही। धान की पानी की ज़रूरत अधिक होने के कारण भू-जल का स्तर प्रत्येक वर्ष कम हो रहा है। समय-समय पर कई स्थानों पर किसानों को ट्यूबवैल गहरे करने पड़ रहे हैं, जिस पर किसानों का अधिक खर्च आ रहा है। भूमि की उपजाऊ शक्ति भी कम हो रही है। भूमि में आर्गेनिक ताकत कम होती जा रही है। वर्ष 2015 में जारी की गई भूमि स्वास्थ्य कार्ड योजना, जिसके तहत एक राशि खर्च करके सभी किसानों को कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने तीन चरणों में भूमि स्वास्थ्य कार्ड जारी किए थे, जो अपना काम सफलता से पूरा नहीं कर सके। इन भूमि स्वास्थ्य कार्डों में विशेषज्ञों द्वारा फसलों तथा भूमि संबंधी सभी आवश्यक सिफारिशें की गई थीं, परन्तु इन कार्डों का इस्तेमाल किसानों द्वारा नहीं किया जा रहा। वे सभी किसानों को मिले भी नहीं थे और की गईं कृषि सिफारिशों संबंधी किसानों को प्रसार सेवा द्वारा भूमि कार्डों संबंधी कुछ समझाया भी नहीं गया था। किसान अभी भी धान में 5-5, 6-6 थैले यूरिया के डाल रहे हैं, जबकि पीएयू द्वारा 2.5 थैले डालने की सिफारिश की गई है। जिन खेतों में गेहूं की काश्त के समय डीएपी के माध्यम से पूरा फास्फोरस डाला गया था, उन खेतों में भी धान की बिजाई करते समय किसान डीएपी डाल रहे हैं, जिससे उनका खर्च बढ़ा है। इन कार्डों में दी गईं सिफारिशों का पालन बहुत कम किसानों तथा स्थानों पर हुआ है। पंजाब सराकर के साथ चावल संबंधी ‘कृषि कर्मन पुरस्कार’ से सम्मानित आई.ए.आर.आई. के फैलो फार्मर अवार्डी बिशनपुरा छन्ना (पटियाला) के प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका कहते हैं कि यह भूमि स्वास्थ्य कार्ड उनके क्षेत्र में मिले ही बहुत कम किसानों को हैं।
विशेषज्ञों द्वारा की गई खेतों को लेज़र कराहे से समतल करवाने की सिफारिश भी किसानों द्वारा अमल में नहीं लाई जा रही। इस सिफारिश को मान लेने से पानी की बचत होती है, क्योंकि इसकी खपत कम होती है और उत्पादन बढ़ता है। लेज़र कराहे से ज़मीन समतल करवाना छोटे तथा कमज़ोर श्रेणी के किसानों के लिए तो सम्भव ही नहीं, क्योंकि यह महंगा है। सरकार द्वारा बड़े किसानों को जो किराये पर लेज़र कराहे की सेवा देते हैं, को भारी सब्सिडी दी जा रही है, परन्तु इस्तेमाल करने वाले किसानों को किराये में कोई रियायत उपलब्ध नहीं।
चाहे पंजाब में धान का उत्पादन भारत के दूसरे राज्यों से अधिक है, परन्तु यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कम है। बांग्लादेश का प्रति हैक्टेयर उत्पादन पंजाब से अधिक है। उत्पादन को बढ़ाने की ज़रूरत है। फसली विभिन्नता के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा धान के लाभदायक विकल्प दिए जाएं। चाहे आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा बासमती की लाभदायक किस्मों जैसे पी.बी.-1509, पी.बी.-1401, पी.बी.-1885, पी.बी.-1882, पी.बी.-1985 तथा पी.बी.-1979 विकसित की गई हैं, जिस कारण बासमती की काश्त के अधीन 7 लाख हैक्टेयर रकबा आ गया, परन्तु बासमती का न्यूनतम समर्थन मूल्य न होने के कारण किसानों को लाभदायक मूल्य नहीं मिल रहा। कीमत में बड़ा उतार-चढ़ाव है। एक वर्ष अच्छा मूल्य मिलने के बाद अगले वर्ष यह कम हो जाता है और किसानों के लिए मंडीकरण इतना लाभदायक नहीं रहता। बासमती का लाभदायक न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की ज़रूरत है। भारत सरकार बासमती को निर्यात करने के उचित प्रबंध करे। दूसरे देशों में बासमती किस्मों के चावल की मांग प्रत्येक वर्ष बढ़ रही है और घरेलू मंडी में भी धीरे-धीरे इसमें वृद्धि हो रही है। ऐसा करने से फसली विभिन्नता में तुरंत सफलता मिलेगी। मौजूदा हालात में किसान खरीफ में धान की काश्त करने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि यह फसल दूसरी सभी फसलों से अधिक लाभ देती हैं, क्योंकि ट्यूबवैल के पानी के लिए बिजली की सुविधा किसानों को मुफ्त उपलब्ध है।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अनुसंधान मज़बूत करके किसानों को खरीफ के मौसम के लिए ऐसी फसलों की सिफारिश किए जाने की ज़रूरत है, जो कम से कम धान जितना लाभ दे। अभी तक बासमती की फसल के अधीन धान की काश्त से निकल कर कुछ मामूली रकबा अवश्य बढ़ा है, परन्तु इसे और बढ़ाया जाए। फसली विभिन्नता संबंधी पंजाब कृषि विश्वविद्यालय तथा पंजाब सरकार को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय तथा पंजाब सरकार को भी अनुसंधान करके कोई ऐसी विधि देने दी ज़रूरत है, जिससे पंजाब में धान की काश्त के अधीन रकबा कम हो और किसानों की आय निरंतर बनी रहे।