देश में कब होगी अगली जनगणना ?  

देश में जनगणना होना थी, लेकिन वह नहीं हो रही है। सरकार की प्राथमिकता में इस समय पशुगणना है, सो पशुधन गणना हो रही है। 21वीं पशुधन गणना पिछले साल अक्तूबर में शुरू हुई, जो फरवरी तक चलेगी। इसका रेडियो पर खूब प्रचार हो रहा है। लोगों से कहा जा रहा है कि वे आगे आएं और अपने पशुओं की गिनती कराएं क्योंकि पशुधन गणना के सही आंकड़े सरकार के पास होंगे तभी उनके लिए लक्षित नीतियां बनाई जा सकेंगी। सरकार को जैसी चिंता पशुधन की है, वैसी ही चिंता जनधन के लिए नहीं है। देश में जनगणना 2011 के बाद नहीं हुई है। पशुओं की गणना तो 2019 में भी हुई थी और पांच साल बाद निर्धारत समय पर फिर शुरू हो गई, लेकिन जनगणना कब होगी? गत साल के अंत में कहा जा रहा था कि जल्दी ही इसकी अधिसूचना जारी होने वाली है। 2025 को जनगणना का साल बताया जा रहा था, लेकिन 2025 का पहला महीना समाप्त होने को है और अभी तक अधिसूचना जारी नहीं हुई है। केंद्र से लेकर राज्यों तक में सरकारें एक के बाद एक जन-कल्याण की लोक लुभावन योजनाएं घोषित कर रही हैं। मुफ्त की सेवाएं और वस्तुएं बांटी जा रही हैं। नकद पैसे लोगों के बैंक खातों में डाले जा रहे हैं और सरकार के पास आबादी का वास्तविक आंकड़ा ही नहीं है। सारी नीतियां 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर बनाई जा रही हैं। 
चुनाव के बीच आठवां वेतन आयोग
चुनाव आयोग ने 7 जनवरी को दिल्ली के विधानसभा चुनाव का ऐलान किया और कहा कि 5 फरवरी को मतदान होगा। चुनाव की घोषणा को 10 दिन भी नहीं हुए कि केंद्र सरकार ने मंत्रिमंडल की बैठक में आठवें वेतन आयोग के गठन को मंज़ूरी दे दी। लगता है कि केंद्र सरकार इंतज़ार ही कर रही थी कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव की घोषणा हो तो आठवें वेतन आयोग का ऐलान किया जाए। सरकार यह घोषणा पहले भी कर सकती थी। अगर एक जनवरी, 2026 से इसकी सिफारिशें लागू होनी हैं तो घोषणा निश्चित रूप से पहले होनी चाहिए थी। केंद्र सरकार ने इसकी घोषणा से पहले चुनाव आयोग से मंज़ूरी लेने या उसको इसकी सूचना देने की ज़रुरत भी नहीं समझी। वैसे भी पिछले कुछ समय से यह रूझान साफ दिखने लगा है कि राज्यों के चुनावों के बीच केंद्र सरकार बड़े नीतिगत फैसले करने लगी है। हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव के बीच भी फैसले हुए थे। पहले यह संकेत दिया जा रहा था कि अब कोई वेतन आयोग नहीं बनेगा और केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों के वेतन-भत्तों में संशोधन के लिए कोई दूसरा मॉडल बनाएगी, लेकिन अचानक वेतन आयोग का ऐलान कर दिया गया। सबको पता है कि दिल्ली में केंद्रीय कर्मचारियों की अच्छी खासी संख्या है और वे चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। बहरहाल, इस फैसले का सबसे ज्यादा असर नई दिल्ली सीट पर हो सकता है, जहां से अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ रहे हैं। नई दिल्ली सीट पर केंद्र सरकार के कर्मचारियों की संख्या सबसे ज़्यादा है।
राज्यपाल बदलते ही रवैया बदला
केरल में राज्यपाल बदलते ही सरकार और राजभवन के बीच फौरी तौर पर युद्ध विराम हो गया है। वजह यह है कि लोकसभा चुनाव और उसके बाद वायनाड लोकसभा सीट पर हुए उप-चुनाव के नतीजे से भाजपा को अहसास हो गया कि अभी केरल में उसका समय नहीं आया है। ऐसे में अगर वाम मोर्चा सरकार को ज्यादा निशाना बनाना गया तो उसका फायदा कांग्रेस को हो सकता है। भाजपा को लगता है कि अगले साल होने विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस जीत जाती है तो उसे एक नई सरकार मिल जाएगी, जिससे उसके राजनीतिक ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ जाएगी। इसीलिए पांच साल पूरे होने के बाद आरिफ मोहम्मद खान को केरल से बिहार भेजा गया और बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर को केरल में तैनात कर दिया गया। नए राज्यपाल के पहुंचने के तुरंत बाद नए साल में विधानसभा का पहला सत्र आहूत किया गया, जिसमें राज्यपाल अर्लेकर ने बिना किसी दलील के सरकार की ओर से दिया गया अभिभाषण पढ़ दिया। मज़ेदार बात यह है कि अभिभाषण में केंद्र सरकार पर जम कर हमला किया गया था। उसमें जीएसटी में हिस्सेदारी से लेकर जीएसटी का बकाया और केंद्र से मदद नहीं मिलने जैसी कई बातें लिखी थीं, लेकिन राज्यपाल ने उसे भी पढ़ दिया। इससे ऐसा लगता है कि अगले साल मई में होने वाले चुनाव तक केरल सरकार को राजभवन की ओर से किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। इससे वाम मोर्चा पूरी ताकत से कांग्रेस से लड़ पाएगा।
दिल्ली में चमत्कार की उम्मीद
तमाम चुनाव विश्लेषक बता रहे हैं कि दिल्ली में भाजपा चुनाव जीतने की उम्मीद तभी कर सकती है, जब कांग्रेस उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करे। इसके बावजूद भाजपा के नेता कह रहे हैं कि हरियाणा और महाराष्ट्र में भी कहा जा रहा था कि भाजपा हार रही है, लेकिन भाजपा पहले से ज्यादा वोट और सीटों के साथ जीती। सचमुच इन दोनों राज्यों में चमत्कार हुआ था। भाजपा के नेता ऐसे ही चमत्कार का दावा दिल्ली में कर रहे हैं। सवाल है कि इस दावे का क्या आधार है? महाराष्ट्र और हरियाणा में कुछ मदद चुनाव आयोग की रही थी और माइक्रो प्रबंधन के दम पर भाजपा ने गणित बदला था। बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवार उतारे गए थे। हरियाणा में तो प्रादेशिक पार्टियों के दो गठबंधन भी चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन दिल्ली में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। दिल्ली में बहुजन समाज पार्टी ज़रूर चुनाव लड़ रही है, लेकिन वह अब कोई ताकत नहीं रह गई है। माइक्रो प्रबंधन भी बहुत ज्यादा सीटों पर नहीं दिख रहा है। हां, कुछ हाई प्रोफाइल सीटों पर ज़रूर दिलचस्प मुकाबला हो गया है। जैसे अरविंद केजरीवाल की नई दिल्ली सीट पर 25 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। सबसे कायदे से कांग्रेस के संदीप दीक्षित लड़ रहे हैं। ज़मीनी रिपोर्ट यह है कि अगर केजरीवाल के मुकाबले लड़ाई में संदीप दीक्षित दिखाई देते हैं तो भाजपा समर्थक उनकी भी मदद कर सकते हैं। ऐसे ही मनीष सिसोदिया की जंगपुरा और अवध ओझा की पटपड़गंज सीट पर भी मुकाबला बहुत दिलचस्प हो गया है। 
केजरीवाल के चुनावी वादे
लोगों की आंखों में धूल झोंकने के मामले में इस समय देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टक्कर का अगर कोई नेता है तो वे हैं अरविंद केजरीवाल। उन्होंने वैसे तो पिछले दो महीने में दिल्ली की जनता के लिए एक-एक करके आठ घोषणाएं की हैं, लेकिन दिल्ली के सफाई कर्मचारियों और अन्य सरकारी कर्मचारियों को आवास देने के मामले में उन्होंने पिछले रविवार को जो घोषणा की है, वह कमाल की है। केजरीवाल का कहना है कि केंद्र सरकार ज़मीन दे दे और बैंकें लोन दे दें तो वे सफाई कर्मचारियों के लिए घर बनवा देंगे, जिसकी कीमत धीरे-धीरे किस्तों में सफाई कर्मचारी चुका देंगे। सवाल है कि इस वादे में केजरीवाल या उनकी पार्टी की सरकार की क्या भूमिका होगी? क्या सिर्फ ठेकेदार वाली भूमिका नहीं? केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में ज़मीन केंद्र सरकार की है, इसलिए केंद्र सरकार मामूली कीमत पर ज़मीन दे दे तो वे घर बनवा देंगे, जिसका पैसे किस्तों में सफाई कर्मचारी चुका देंगे। एक महान वादे के तौर पर घोषित इस योजना में ज़मीन केंद्र सरकार की होगी, निर्माण का पैसा बैंकों से या किसी और वित्तीय संस्था से आएगा या राज्य सरकार भी दे सकती है, जिसका भुगतान किस्तों में सरकारी कर्मचारी करेंगे। सवाल है फिर दिल्ली सरकार क्या करेगी? दिल्ली सरकार आवास बनाने के ठेके बांटेंगी, जिसमें पारम्परिक कमीशनखोरी होगी, लेकिन इसी भूमिका के लिए उन्होंने अपने को सफाई कर्मचारियों के मसीहा के तौर पर पेश किया।

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