चीन-पाक के खिलाफ भारत को क्वाड देशों का समर्थन जुटाना होगा

पकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री मोहम्मद इशाकडार की चीन की चार दिवसीय यात्रा 21 मई को सम्पन्न हो गयी, जिसमें शीर्ष चीनी नेताओं ने डार को आश्वासन दिया कि ‘एक दृढ़ मित्र के रूप में चीन हमेशा की तरह पाकिस्तान को अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने, अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुकूल विकास पथ की खोज करने, आतंकवाद का दृढ़ता से मुकाबला करने और अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों में बड़ी भूमिका निभाने में पाकिस्तान का दृढ़ता से समर्थन करता है।’
बीजिंग में पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री की वार्ता के नतीजे से भारतीय प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को चिंता होनी चाहि, क्योंकि चीन का लहजा आक्रामक है और यह पाकिस्तान को अपने मौजूदा प्रतिद्वंद्वी भारत से निपटने की नीति पर चलने की एक तरह की छूट है। चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और क्षेत्रीय मामलों में भारत के खिलाफ  पाकिस्तान का समर्थन करने का मतलब है कि भारत के सामने एक बड़ी दीवार खड़ी हो जायेगी, जब उसका आउटरीच प्रतिनिधिमंडल संयुक्त राष्ट्र जायेगा और सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों, दस अस्थायी सदस्यों और कुछ अन्य सदस्यों से बात करेगा, जिनकी वैश्विक मुद्दों पर पर्याप्त आवाज़ है।
केवल 20 मई को भारतीय विदेश मंत्रालय ने तीन आउटरीच प्रतिनिधिमंडलों को ब्रीफ  किया। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार आधिकारिक ब्रीफिंग में उल्लेख किया गया कि वर्तमान भारत-पाक संघर्ष पर चीन का रवैया सकारात्मक पाया गया। विदेश मंत्रालय अपनी ही दुनिया में जी रहा है, कठोर जमीनी हकीकत के बजाय। उसी दिन जब नई दिल्ली में आउटरीच पर विदेश मंत्रालय की ब्रीफिंग हो रही थी, चीनी विदेश मंत्री वांग ने बीजिंग में पाकिस्तानी विदेश मंत्री और उप-प्रधानमंत्री इशाकडार को आश्वासन दिया कि चीन पाकिस्तान की राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने में उसका समर्थन करेगा। विदेश मंत्रालय यह कैसे कह सकता है कि चीन का रवैया सकारात्मक पाया गया?
सात की संख्या वाले भारतीय आउटरीच प्रतिनिधिमंडल यूरोपीय संघ के मुख्यालय ब्रुसेल्स के अलावा 33 देशों का दौरा कर रहे हैं। पहला भारतीय प्रतिनिधिमंडल 21 मई को जापान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, मलेशिया और सिंगापुर की यात्रा के लिए रवाना हुआ था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने नये सिद्धांत पर पूरा भरोसा हो सकता है, लेकिन फिलहाल पाकिस्तान के साथ कोई बातचीत नहीं करने के उनके रुख को ज्यादातर देशों से अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं मिल सकती है। आम तौर पर देशों ने आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए पाकिस्तान में आतंकी शिविरों को नष्ट करने के भारत के आह्वान का पुरजोर समर्थन किया, लेकिन वे फिर से भारत-पाकिस्तान सैन्य टकराव के सख्त खिलाफ हैं। वे चल रहे तनाव को कम करने के लिए दोनों सरकारों के बीच उच्चतम स्तर पर बातचीत चाहते हैं।
अब भारत के साथ कौन हैं? अब जब अमरीका भारत और पाकिस्तान को एक ही स्तर पर ला रहा है और ट्रम्प अपने अच्छे दोस्त नरेंद्र मोदी के नये सिद्धांत के खिलाफ  पूरी तरह से खड़े हैं, तो ऐसे बहुत कम देश हैं जिनसे भारतीय प्रधानमंत्री के सिद्धांत को समर्थन मिल पायेगा। क्वाड सदस्य आतंकवाद से लड़ने के लिए अपने सदस्य भारत को पूरा समर्थन देंगे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे भारत के अपने पड़ोसी के साथ टकराव और किसी भी तरह की बातचीत से बचने की कोशिश की नीति का समर्थन करेंगे।
उधर राष्ट्रपति पुतिन भी भविष्य में किसी भी सैन्य संघर्ष से बचने के लिए दोनों सरकारों के बीच बातचीत के पक्ष में हैं। दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में, हर देश भारत-पाक संबंधों को बेहतर बनाने के लिए दोनों सरकारों के बीच बातचीत के पक्ष में है।
भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर वैश्विक कूटनीतिक क्षेत्र में मोदी सिद्धांत का विस्तृत विवरण दे सकते हैं, लेकिन इसे उचित प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है। आतंकवाद विरोधी हिस्सा ठीक है, लेकिन कोई भी युद्ध विराम के बाद एक और टकराव की नीति नहीं अपनाता।
चीन के पास वर्तमान में पाकिस्तान का समर्थन करने के लिए एक मजबूत आर्थिक और व्यावसायिक कारण है। पाकिस्तान 2015 से चीन के बेल्ट-एंड-रोड इनिशिएटिव में एक मील का पत्थर रहा है। चीन ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के माध्यम से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे में 46 बिलियन डालर से अधिक का निवेश किया है, जिसका भारत विरोध कर रहा है, लेकिन पाकिस्तान इसके लिए पूरे जोश के साथ काम कर रहा है।
यह आर्थिक गलियारा पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह और सिंध में कराची को चीन के झिंजियांग प्रांत के साथ ज़मीनी रास्ते से जोड़ता है। ग्वादर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ईरानी बंदरगाह चाबहार से 100 मील से थोड़ा अधिक दूर है। चीन और पाकिस्तान दोनों ही इसके रणनीतिक महत्व से वाकिफ हैं। चीनी फंड ने पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने में बहुत मदद की है। भारत प्रगति पर नज़र रख रहा है, लेकिन वह कोई भूमिका नहीं निभा सकता। 
चीन ने पहले ही इस परियोजना के दूसरे चरण को अपग्रेड कर दिया है। पाकिस्तान के बड़े इलाकों में नये इंफ्रा प्रोजेक्ट को शामिल करते हुए काम पहले से ही चल रहा है। पाकिस्तान में अपने विशाल निवेश की रक्षा करने में चीन का राष्ट्रीय हित है। वह अपने मित्र देश को भारत द्वारा तबाह नहीं होने दे सकता। चीन का मतलब व्यापार से है। आने वाले दिनों में पाकिस्तान को भारत के खिलाफ चीन का आर्थिक और राजनीतिक समर्थन बढ़ता रहेगा। इस बात पर संदेह है कि भारत एक और भारत-पाक टकराव की स्थिति में अमरीका और उसके क्वाड सदस्यों से उस तरह का समर्थन जुटा पायेगा। (संवाद)

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