बात-बात पर भारत का अपमान क्यों करते हैं ट्रम्प ?
अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प आजकल बात-बात पर आखिर भारत का अपमान करने पर क्यों उतारू रहते हैं? हमारे बार-बार नकारने के बावजूद वह दुनिया के अलग अलग मंचों और अवसरों पर कम से कम सात बार यह डींग हांक चुके हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच जंग उन्होंने ही रूकवायी। इसके पहले भी वह हमें एक नहीं कई बार अमरीका में और अमरीका से बाहर विश्व के कई मंचों से टैरिफ किंग कह चुके हैं और अब तो वह सार्वजनिक रूप से लगभग हमारे अपमान करने पर ही तुले हैं। जिस तरह से आईफोन की उत्पादक कम्पनी एप्पल को भारत में आईफोन न बनाने की धमकी दे रहे हैं, आखिर क्या वजह है कि ट्रम्प हमारे पीछे इस कदर हाथ धोकर पड़े हुए हैं?
23 मई, 2025 को ट्रम्प ने तीसरी बार यह बात दोहरायी कि आइफोन का निर्माण एप्पल को भारत में नहीं बल्कि अमरीका में करना चाहिए। यही नहीं उन्होंने सीधे-सीधे एप्पल के सीईओ टिम कुक को धमकी देते हुए कहा कि अगर वह ऐसा नहीं करते तो वह उन पर कम से कम 25 फीसदी टैरिफ लगाएंगे। ट्रम्प की इस धमकी के बाद एप्पल का शेयर 4 फीसदी तक नीचे आ गया, इससे उसे अरबों डॉलर का नुकसान हो गया, लेकिन ट्रम्प अपनी हरकतों से बाज नहीं आये। सवाल है ट्रम्प ऐसी अकड़भरी राजनीतिक शैली क्यों अपना रहे हैं? वह ऐसा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि इससे वह अब अमरीका के राजनीतिक इतिहास में ताकतवर राष्ट्रपति कहलाने का तमगा हासिल कर ले। ट्रम्प के पूरे व्यवहार को समझने के लिए हमें उनकी इस राजनीतिक शैली, अमरीका की जरूरतें, चीन के साथ उसका शक्ति संघर्ष और भारत-अमरीका के संबंधों को गहराई से खंगालना होगा।
यह तो हम जानते ही हैं कि ट्रम्प एक कारोबारी हैं और उनकी सोच, भाषा और रणनीति भी उनके इसी लहजे की पुष्टि करती है। उनकी बातचीत की शैली में लगातार ‘मैं’ हावी रहता है, ‘मैंने सौदा किया’, ‘मेरे कारण युद्ध विराम हुआ’, ‘मैंने चीन को अपनी शर्तों पर झुका दिया’। इस तरह के बयान ट्रम्प ही दे सकते हैं। दरअसल वह ‘डीलमैकिंग’ के लिए किसी भी देश और किसी भी देश के राजनेता का लिहाज नहीं करते, वह उस पर सार्वजनिक रूप से दबाव बनाने की कोशिश करते हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच बार-बार जो वह युद्ध रुकवाने का तमगा ले रहे हैं, इससे वह भारत के लोगों से कुछ कहने की बजाय अपने समर्थकों को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वह कोई छोटे-मोटे नेता नहीं बल्कि वैश्विक नेता हैं, उनका दुनिया में रूतबा है, उन्होंने परमाणु युद्ध को रूकवाया।
दरअसल यह कह कर वह अपने हाथ से अपनी पीठ तो थपथपाते ही हैं, अपनी लोकप्रियता के लिए ज़रूरी अंक भी जुटाते हैं जबकि कोई दूसरा नेता होता तो वह इस बात पर शर्म खाता कि सात-सात बार कहने के बावजूद भारत ने एक बार उनके इस दावे की पुष्टि नहीं की, उल्टे बार-बार खंडन किया है और कहा कि भारत किसी दूसरे देश की मध्यस्थता के चलते युद्ध विराम नहीं किया। अगर कोई दूसरा राजनेता होता तो वह इसे अपने अपमान की बात समझता, लेकिन ट्रम्प इस पर ध्यान ही नहीं दे रहे। डोनाल्ड ट्रम्प अपने पहले कार्यकाल में भी भारत को ऐसे देश के रूप में चिन्हित करते रहे हैं कि वह अमरीकी उत्पादों पर जबरदस्त टैक्स लगाता है। विशेषकर ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और वाइन जैसे उत्पादों को लेकर वह अक्सर यह जुमला दोहराते हैं कि भारत अमरीका से सामान लेने पर बहुत अधिक टैक्स लेता है, जबकि अमरीका ऐसा नहीं करता।
दरअसल भारत और अमरीका के बीच आपसी व्यापार में अमरीका घाटे में है और ट्रम्प को यह बात चुभती है। इसलिए ट्रम्प अपनी आक्रामक रणनीति के चलते भारत को बार-बार टैरिफ किंग कहकर हम पर यह दबाव बनाना चाहते हैं कि हम न सिर्फ वे चीजें अमरीका से आयात करें, जो कि हमारी ज़रूरत हाें बल्कि ऐसी चीजें भी आयात करें, जो हमारी ज़रूरत तो न हों, लेकिन अमरीका हर हाल में बेचना चाहता हो। वास्तव में अमरीका किसी भी कीमत पर अपने डेयरी और वाइन प्रोडक्ट को भारत में खपाना चाहता है, लेकिन भारतीय लोग अमरीका के डेयरी उत्पादों को नहीं पसंद करते, अमरीकी डेयरी उत्पाद वेजीटेरियन होने के बजाय आम तौर पर नॉन वेजीटेरियन होते हैं। भारत किसी भी कीमत पर अपनी कृषि अर्थव्यवस्था को अमरीका के लिए नहीं खोलना चाहता और ट्रम्प हर हाल में इसे खुलवाना चाहते हैं, इसलिए ट्रम्प बार-बार खुन्नस में आते हैं।
ट्रम्प चाहते थे कि भारत चीन से आपसी व्यापार कम कर दे, लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया। हम न चाहते हुए भी अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए अमरीका से कहीं ज्यादा चीन पर निर्भर हैं और चीनी उत्पाद अपनी सस्ती दरों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था और भारतीय उपभोक्ताओं के अनुकूल हैं। यह बात अमरीका को बहुत खलती है, विशेषकर ट्रम्प को। वह चाहने के बावजूद भारत का चीन के विरुद्ध कठपुतली की तरह इस्तेमाल नहीं कर पा रहे, यह बात उन्हें खलती है, इसलिए अब जबकि अमरीका की एप्पल जैसी कंपनी ने चीन से हटाकर अपनी फैक्टरी भारत में लगायी है, तो आमतौर पर चीन से आंखें तरेरने वाले ट्रम्प एप्पल को ही आंखें तरेर रहे हैं। वह चाहते हैं कि एप्पल चीन से निकलकर अमरीका में उत्पादन करे।
लेकिन अमरीका में निजी संबंधों के बीच इस तरह की दादागीरी काम नहीं आती, इसलिए टिम कुक ने ट्रम्प के सुझाव को एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया। जब ट्रम्प को लगा कि टिम कुक तो उनको कोई भाव ही नहीं दे रहे, तो उन्होंने सार्वजनिक मंचों से एप्पल को लताड़ना शुरु किया और बाद में यह धमकी भी जोड़ दी कि अगर उन्होंने भारत में उत्पादन करने से इंकार नहीं किया तो एप्पल पर अमरीका में 25 प्रतिशत टैक्स लगाया जायेगा। अगर एप्पल भारत की जगह अमरीका में अपना उत्पादन शुरु कर देता है तो उसकी उत्पादन लागत हर साल 10 अरब डॉलर से ज्यादा बढ़ जायेगी, जिससे उसका लाभ तो संकट में पड़ेगा ही, उसे सरवाईव करना भी मुश्किल हो जाएगा। इसलिए एप्पल ने अमरीका के राष्ट्रपति की सलाह और धमकी के बाद भी भारत से अपनी उत्पादन फैक्टरी अमरीका में ले जाने का निर्णय नहीं किया।
दरअसल ट्रम्प जब विशेषकर भारत को इस तरह नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं तो वह अपने घरेलू, राजनीतिक समर्थकों को खुश करने की कोशिश कर रहे होते हैं; क्योंकि ट्रम्प को अमरीका में बसे भारतीयों का समर्थन भले मिलता हो, लेकिन उनका मूल मतदाता ‘मिडवेस्ट’ अमरीकी ही है, जो विदेशी कंपनियों और आउटसोर्सिंग से नाराज़ हैं। इसलिए जब वे भारत के खिलाफ बोलते हैं तो उनके समर्थक मतदाताओं को लगता है कि वे अमरीका की नौकरियों की रक्षा कर रहे हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर