हेवलॉक द्वीप की जादुई दुनिया में स्कूबा डाइविंग
बचपन से मेरा एक ही सपना था- छोटी-छोटी रंगीन मछलियों और समुद्र के अन्य प्राणियों के साथ मैं पानी के अंदर तैरूं। इसके लिए या तो मैं एरिएल (डिज्नी कार्टून सीरीज़ की छोटी जलपरी) होता या डिस्कवरी चैनल का सदस्य जैसे स्टीव इरविन। लेकिन यह तब की बातें हैं, जब मेरा परिचय स्कूबा डाइविंग से नहीं हुआ था, जो एडवेंचर वाटर स्पोर्ट्स है। फिल्मों व टीवी पर जो स्कूबा डाइविंग अनुभव दिखाया जाता है, उससे मंत्रमुग्ध हो जाना आसान है, लेकिन इसका वास्तविक अनुभव करना कैटवाक नहीं है। यह एहसास मुझे अपने पहले स्कूबा डाइविंग अनुभव से हुआ, अंडमान व निकोबार के हेवलॉक द्वीप में।
सिलसिला सुबह 9 बजे शुरू हुआ, जोकि साफ नज़ारे के लिए सबसे अच्छा समय समझा जाता है। हममें से अधिकतर तैरना नहीं जानते थे, इसलिए हर एक को एक व्यक्तिगत इंस्ट्रक्टर दिया गया था। उन्होंने हमें बताया कि पानी के अंदर सांस कैसे लेना है, पानी से भरे ग्लासेज को कैसे साफ करना है और पानी के अंदर इशारे कैसे इस्तेमाल करने हैं। हेड इंस्ट्रक्टर ने हमसे पानी के अंदर सांस लेने के प्रयोग कराये ताकि हम समुद्र के पानी का मुंह में आना जैसी सामान्य प्रक्रिया के अभ्यस्त हो जायें और यह भी कि कानों व नाक पर जो दबाव की समस्याएं आती हैं, उनका सामना कैसे किया जाये। पहले प्रयास में तो समुद्र के खारे पानी ने हम सबके मुंह का स्वाद बिगाड़ दिया।
जैसे ही हमारी ट्रेनिंग पूरी हुई हम सब डाइविंग साईट की तरफ तैरने लगे। साईट पर पहुंचने के बाद हमें फ्लोटिंग पोजीशन से उल्टा कर दिया गया। तब पहली बार मैं हरे समुद्र के नीचे था, जोकि मेरे बचपन का सपना था। मुझे सुंदर पेस्टल ग्रीन कोरल दिखायी दे रहे थे, जोकि विशाल समुद्र के हरा होने का कारण थे। अब मैं अधिक उत्साहित था और मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ने की कोशिश करने लगा। 1. 2. 3.... गया और समुद्र का पानी मेरे मुंह के अंदर था। मुझे जल्द एहसास हो गया कि यह ‘ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा’ जैसा आनंद नहीं था। अगले कुछ सेकंड तक मुझे संघर्ष करना पड़ा अपने श्वास उपकरण पर नियंत्रण हासिल करने के लिए। इसके बाद मैंने फिर गोता लगाया। मैं वास्तव में अपने एक साथी का शुक्रगुज़ार था, जो एक्सपर्ट डाइवर है और सयम के साथ मेरी गलतियों में सुधार कर रहा था।
इस बार मैं पानी के अंदर 5-6 मीटर नीचे चला गया। जल्द ही मुझे अपने मुंह से सांस लेना आ गया और मैं सबसे प्यारी मछलियों के पास पहुंचने में व्यस्त हो गया। इन मछलियों को तो मैंने एक्वेरियम में भी नहीं देखा था। सबसे सुंदर नेमो मछली थी, नारंगी रंग की। वह हमें ऐसे देख रही थी जैसे कि वह दिन के पहले डाइवर का स्वागत कर रही हो। इसके बाद हमारी मुलाकात पीली, काली व नीली धारियों वाली तोता मछली... छोटी सी ब्लूफिश और अन्य बड़ी मछलियों से हुई जो पारदर्शी प्रतीत हो रही थीं। मैं उनकी सुंदरता में ऐसा खो गया कि मुझे इस बात की भी परवाह न रही कि उनके नाम क्या हैं और वह कितनी आम हैं। मैं सिर्फ उनके साथ होना चाहता था। मैं उन्हें देख रहा था और वह मुझे भी जिज्ञासा भरी आंखों से देख रही थीं। मैं उन्हें स्पर्श करना चाहता था, लेकिन डर था कि वह कहीं दूर न भाग जायें।
जल्द ही हम अधिक गहराई में चले गये, अन्य जीवों को देखने के लिए। जैसे ही मैंने कान पर दबाव की शिकायत की तो मेरे इंस्ट्रक्टर ने होशियारी से दिमाग क्रिस्टल जैसे सीवीड को देखने की ओर लगा दिया, जो पल भर में ही गायब हो गया। मैंने मुंह के आकार के रॉयल ब्लू सी फ्लावर भी देखे जोकि अंदर बाहर खिल रहे थे। सूरज की रोशनी हमारे चारों तरफ के कोरल को चमका रही थी। मुझे लगा जैसे मैं किसी जादुई दुनिया में पहुंच गया हूं। कुछ जीवों को मैं न देख सका क्योंकि वह अपनी खोल में जल्दी से छुप गये, शायद खतरा महसूस करते हुए। समुद्री जीवों की अक्लमंदी ने मुझे निश्चितरूप से प्रभावित किया।
अब हम 10 मीटर गहरे पानी में थे। कुछ समुद्री कच्छुए देखने की उम्मीद थी, ब्लू वेहल, सी हॉर्स, डोल्फिन आदि देखने की भी। लेकिन अफसोस! वक्त बहुत जल्दी गुजर गया, उम्मीद से भी पहले। हम वापस पानी की सतह पर आ गये। यात्रा पूरी हो गई। हालांकि हमने पानी के भीतर अधिक समय गुज़ारा था, लेकिन चाहत इससे भी ज्यादा की थी उस जादुई दुनिया को देखने की। इस अनुभव को मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर