कांग्रेस को पसंद नहीं स्वतंत्र विचार रखने वाले नेता

कांग्रेस सांसद शशि थरूर अब कांग्रेस में बेवजह गुस्से का शिकार हैं। उनका अपराध यह है कि थरूर ने वैश्विक स्तर पर भारत के आतंकवाद विरोधी रुख को स्पष्ट करने और ऑपरेशन सिंदूर के बारे में बताने के लिए सांसदों के एक बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए मोदी सरकार के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया।
गांधी परिवार के वफादार कांग्रेसी अब पार्टी के अंदर इस बात पर गुस्से का इज़हार कर रहे हैं कि आखिर क्यों शशि थरूर को केन्द्र ने बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाया गया? शशि थरूर को केन्द्र सरकार ने विदेश भेजे जा रहे डेलिगेशन का नेतृत्व करने के लिए चुना है। उनका ग्रुप अमरीका, पनामा, गुयाना, ब्राज़ील और कोलंबिया जाएगा। दरअसल, कांग्रेस के खफा होने की वजह यह है कि बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल के लिए कांग्रेस पार्टी द्वारा सुझाए गए नामों में थरूर का नाम शामिल नहीं था। कांग्रेस ने आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, नासिर हुसैन और राजा बरार के नाम भेजे थे। 
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने 17 मई, 2025 को कहा कि कांग्रेस पाकिस्तान से आतंकवाद पर भारत के रुख को स्पष्ट करने के लिए विदेश जा रहे सांसदों के रूप में अपने दिए गए चार सांसदों के नाम नहीं बदलने जा रही है। जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि औपचारिक रूप से चार नाम दिए जाने के बावजूद सरकार ने उनमें से अधिकांश को नज़रअंदाज़ कर दिया जिससे संसदीय परम्पराओं, विपक्ष-सत्तारूढ़ दल के बीच विश्वास को ठेस पहुंची।
जानकारी के अनुसार केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने केंद्र सरकार की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से सम्पर्क किया और बहुदलीय संसदीय दल में शामिल होने के लिए पार्टी से चार नामों का अनुरोध किया। राहुल गांधी ने उसी दिन दोपहर से पहले चार उक्त वरिष्ठ नेताओं का नाम भेजा था। जयराम रमेश ने कहा कि सरकार ने कांग्रेस द्वारा सुझाए गए नामों में से केवल आनंद शर्मा को चुना और मामले का राजनीतिकरण किया।
शशि थरूर का पार्टी से पहले राष्ट्र को प्राथमिकता देना और स्वतंत्र विचार रखना कांग्रेस पार्टी को नागवार गुज़र रहा है। कांग्रेस पार्टी ने भले ही शशि थरूर पर सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी की ओर झुकाव रखने का आरोप नहीं लगाया है, लेकिन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने उन्हें ‘भाजपा का स्लीपर सेल’ कहा है। जानकारों की माने तो कांग्रेस हाईकमान थरूर को पार्टी से निकालने पर विचार कर रहा है हालांकि कांग्रेस ने इस संबंध में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।
अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस पार्टी अपने उन नेताओं को क्यों नज़रअंदाज़ करती है जो मूल रूप से ‘दरबारियों’ की तरह काम नहीं करते हैं और बौद्धिक स्वतंत्रता बनाए रखना पसंद करते हैं। क्या यह इस डर की वजह से है कि ऐसे मजबूत नेता गांधी परिवार को पीछे छोड़ सकते हैं या पार्टी में समानांतर सत्ता बना सकते हैं?
शशि थरूर की जगह राहुल गांधी के वफादार गौरव गोगोई को चुनना क्या उचित था? गांधी परिवार के करीबी न होने के बावजूद शशि थरूर न केवल विदेशी मामलों में विशेषज्ञता रखने वाले अहम सासंद हैं, बल्कि संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष भी हैं। कांग्रेस पार्टी द्वारा दरकिनार और अपमानित किए जाने के बावजूद शशि थरूर ने हार नहीं मानी। उन्होंने कहा कि वह सौंपी गई ज़िम्मेदारियों को पूरी लगन से निभाएंगे। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि पार्टी नेतृत्व को अपनी राय रखने का अधिकार है, लेकिन उनकी प्रतिबद्धता अटल है। कांग्रेस की अधीनता के बजाय थरूर ने राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देने का फैसला किया और संदेश दिया कि वह आसानी से अपमानित नहीं होंगे।
हालांकि कांग्रेस ने थरूर का नाम नहीं भेजा जबकि वह संयुक्त राष्ट्र के पूर्व राजनयिक हैं और इस कार्य में उनकी विशेषज्ञता है। यह स्पष्ट हो गया कि थरूर की बौद्धिकता, वाकपटुता और स्वतंत्र सोच पार्टी आलाकमान, खासकर गांधी परिवार को पसंद नहीं है। पार्टी आलाकमान के करीबियों को ही यहां प्राथमिकता दी जाती है। कांग्रेस का ये दृष्टिकोण कोई नया नहीं है। कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार के प्रति वफादारी हमेशा योग्यता पर भारी रही है। कांग्रेस पार्टी के कई वरिष्ठ और मजबूत नेताओं को सिर्फ  इसलिए हार का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने गांधी परिवार की अवहेलना करने की जुर्रत की और विभिन्न मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से विचार व्यक्त करने का साहस किया। हाल के वर्षों में शशि थरूर को लगातार अपनी ही पार्टी द्वारा निशाना बनाया गया, दरकिनार किया गया और अपमानित किया गया।
जानकारों की माने तो नवम्बर 2022 में थरूर को गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए स्टार प्रचारकों की सूची में जगह नहीं दी गई थी।  कांग्रेस पार्टी थरूर से तब से नाराज़ है, जब उन्होंने पार्टी के आधिकारिक रुख से हट कर प्रधानमंत्री मोदी की अमरीका यात्रा की प्रशंसा की थी। मोदी की ट्रम्प से मुलाकात के बारे में थरूर ने कहा था कि मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छा नतीजा है क्योंकि अन्यथा डर था कि वाशिंगटन में जल्दबाजी में कुछ फैसले लिए जा सकते हैं जिससे हमारे निर्यात पर असर पड़ता। इस तरह चर्चा और बातचीत के लिए समय है। ऐसे ही कांग्रेस आलाकमान की दरबारी नीतियों के चलते ने हिमंत बिस्वा सरमा को पार्टी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा से लेकर कपिल सिब्बल तक कई कांग्रेस नेता, जो पार्टी में बड़े नेता बनने की क्षमता रखते थे, उन्हें दरकिनार कर दिया गया और आखिरकार उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ी। जिस प्रकार सक्षम और स्वतंत्र विचार रखने वाले नेताओं ने कांग्रेस से किनारा कर लिया, हो सकता है उसी प्रकार संभव है शशि थरूर भी नया रास्ता खोज लें। (अदिति)

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