नव-विवाहिता का ससुराल में पहला कदम

सामाजिक ज़िन्दगी में विवाह बहुत ही खुशियों से भरपूर मौका होता है। विवाह लड़की का हो या लड़के का इसकी तैयारियां खुशी-खुशी की जाती हैं। हां, कुछ अन्तर तो होता ही है, लड़के वाले समझते हैं कि हमारे घर बहू आएगी, घर की रौनक बढ़ेगी, काम-काज में हाथ बटाएगी और घर के बुजुर्गों की देखभाल करेगी। लड़की वाले समझते हैं कि उन्होंने बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी निभाई है। उनकी लड़की सुखी बसे और अपने नए घर की ज़िम्मेदारियां सम्भाले। ससुराल घर जाकर बहुत-सी रस्में बड़े चाव से निभाई जाती हैं। लड़की का ससुराल अब उसका अपना घर बन जाता है। अपने पुराने घर को छोड़ कर आना यानि बाबुल का घर छोड़कर आते ही नए घर में नई ज़िम्मेदारी को निभाना, नए रिश्तों को निभाना कोई आसान बात नहीं है। दुनिया की चली आ रही परम्परा के अनुसार आखिर एक दिन माता-पिता का घर छोड़ कर हर बेटी को जाना होता है। घर छोड़ते समय आंखों में आंसू होते हैं। यह आंसू खुशी के होते हैं या गम के पहचान करना मुश्किल होता है।बेटी से बहू बनी लड़की को ससुराल में पूरा मान-सम्मान मिलना चाहिए। परिवार के अन्य सदस्यों को भी घर आए नए सदस्य का आदर-सम्मान करना चाहिए। लड़की को भी अब सच्चे अर्थों में इस (ससुराल) घर को अपना घर समझना चाहिए। अपनी दिनचर्या बदलनी चाहिए। अनजाने में अगर कोई भूल हो जाए तो ससुराल वालों को भी माफ कर देना चाहिए। दहेज को लेकर कोई आपत्तिजनक बात नहीं करनी चाहिए, जिससे लड़की को बुरा लगे। यह अच्छी बात है कि आज-कल दहेज प्रथा को धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है। अगर एक दिन सच्च में यह कुरीति खत्म हो गई तो धरती पर स्वर्ग बन जाएगा।

 -महिन्द्र सिंह बाजवा