उत्तरी क्षेत्र का चुनाव परिदृश्य

नि:संदेह लोकसभा चुनावों के परिणामों को नरेन्द्र मोदी की सुनामी कहा जा सकता है। परिणाम इसलिए हैरानीजनक कहे जा सकते हैं कि भाजपा की कारगुज़ारी उम्मीद से कहीं ज्यादा बेहतर रही है। चुनावों से पूर्व मोदी के प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद थी। ऐसा उनके द्वारा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ मिलकर एक बड़ा गठबंधन बनाकर सम्भव बना लिया था। परन्तु अब तो जैसे दरिया ने किनारे तोड़ दिये हों और आंकलन पीछे रह गए हों। पंजाब को छोड़कर ऐसा ही कुछ हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में हुआ दिखाई देता है। इन राज्यों में मोदी का जादू सिर चढ़कर बोला है। पंजाब में चाहे कांग्रेस को अधिक सीटें मिली हैं, परन्तु यहां भी मोदी के पड़े जबरदस्त प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। पंजाब में चाहे कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने सभी 13 सीटें जीतने का दावा किया था और अनुमान यह भी लगाया जा रहा था कि कांग्रेस को अधिक सीटें मिलेंगी परन्तु इसकी मुख्य विरोधी पार्टी अकाली दल का हश्र इस कद्र बुरा होगा, इसका अनुमान नहीं लगाया जा रहा था। अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल चाहे बड़े अन्तर से अपने विरोधी से जीत गए हैं, परन्तु बठिण्डा सीट से हरसिमरत कौर बादल को महज़ 20,000 से अधिक वोट प्राप्त करने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ी है। यहां तक कि स. प्रकाश सिंह बादल को भी इस सीट के लिए अपनी शक्ति झोंकनी पड़ी है, परन्तु इस सीट पर भी नरेन्द्र मोदी का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। उदाहरण के लिए हरसिमरत कौर पिछले दो चुनावों के दौरान बठिण्डा शहरी विधानसभा से लगभग 30,000 के अन्तर से हारी थी, परन्तु इस बार उनको इस विधानसभा क्षेत्र से 4,000 के लगभग अधिक वोट मिले हैं। बठिण्डा में नरेन्द्र मोदी की रैली प्रभावशाली थी। इसका असर इस क्षेत्र पर प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। परन्तु पंजाब की अन्य 8 सीटों पर अकाली दल की नमोशीजनक हार के लिए पार्टी को प्रत्येक स्तर पर लेखा-जोखा करने की ज़रूरत महसूस होती है। इसके मुकाबले में कांग्रेस के दो वर्ष से अधिक के शासन पर अब तक अनेक ही किन्तु-परन्तु उठते रहे हैं, परन्तु कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में 8 सीटों पर लोगों का बड़ा समर्थन मिलने से उनकी ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है। आगामी समय में पंजाब सरकार को लोगों द्वारा एक बार फिर प्रकट की गई आशाओं पर पूरा उतरना होगा। राज्य में भाजपा द्वारा तीन में से दो सीटें प्राप्त कर लेना भी उसकी बड़ी सफलता माना जा सकता है। आगामी समय में राज्य की राजनीति में भाजपा अहम भूमिका अदा करेगी इसकी सम्भावनाएं और भी प्रबल बनती जा रही हैं। हरियाणा के मतदाताओं ने जहां कांग्रेस की आन्तरिक फूट को प्रकट किया है, वहीं यह विपक्षी दलों के बिखर जाने की कहानी भी है। कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी पार्टियों के अधिकतर उम्मीदवार चिरकाल की परम्परा के अनुसार परिवारवाद को उत्साह देने के रास्ते पर चलते हैं। इसी कड़ी में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भुपेन्द्र सिंह हुड्डा तथा उनके बेटे दपिन्द्र सिंह हुड्डा की नमोशीजनक हार को देखा जा सकता है। चौटाला परिवार के आपसी विवाद ने एक बार फिर इंडियन नैशनल लोक दल और उससे टूट कर बनी जननायक जनता पार्टी को उनके मनमाने कृत्यों के कारण पूरी तरह नकार दिया है। वर्ष 2014 के चुनावों में भाजपा को 7 सीटें मिली थीं। इनैलो को दो और कांग्रेस को एक सीट मिली थीं। परन्तु इस बार यहां मोदी लहर सब कुछ बहा कर ले गई। हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बढ़िया प्रभाव का असर भी देखा जा सकता है। भाजपा द्वारा यहां की चार सीटों में से दो पर नये उम्मीदवार खड़े करना भी उसके लिए लाभदायक साबित हुआ है। नि:संदेह राज्य की चार सीटें जीतकर मोदी ने एक बार यहां अपना सिक्का जमा दिया है। जम्मू-कश्मीर की 6 सीटों में से 3 सीटों पर भाजपा द्वारा शानदार जीत प्राप्त करने ने इसके प्रभाव को और बढ़ाया है। कश्मीर घाटी की 3 सीटों के लिए मतदाताओं ने महबूबा मुफ्ती को नकार कर उमर अब्दुल्ला की नैशनल कांफ्रैंस को समर्थन दिया है, जिसको हम सकारात्मक भावना समझते हैं। नि:संदेह इस क्षेत्र में बनाए गए नए राजनीतिक माहौल से हर पक्ष से विकास की गति तेज़ होगी, ऐसी उम्मीद हम करते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द