विश्व परिदृश्य में बढ़ रही है भारत की अहमियत

आने वाला साल भारतीय कूटनीति और विदेश नीति के लिए एक साथ अग्नि परीक्षा और विशिष्ट
एहसास का काल होगा क्योंकि अगले कुछ महीनों में भारत को दुनिया के कई अहम संगठनों की
अगुवाई करने का मौका मिलने जा रहा है। कई संगठनों में हिंदुस्तान को महत्वपूर्ण सदस्य बनाये जाने
की बात हो रही है, तो कई दूसरे संगठनों में हिंदुस्तान को गौर से सुनने का इंतज़ार हो रहा है।
जी हां, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की हाल में सम्पन्न हुई बैठक में भारत को इसका अगला
अध्यक्ष चुना गया है। यही नहीं साल 2023 में होने वाली एससीओ की बैठक भारत में और भारत के
नेतृत्व में होगी। चीन ने इसका गर्मजोशी से स्वागत किया है और रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने
इसका इतने ही जोरदार ढंग से समर्थन किया है। हां, पाकिस्तान ने ज़रूर अपनी फितरत के मुताबिक
विघ्न डालने की मंशा ज़ाहिर की है। उसने कहा है कि वह अंतिम समय में तय करेगा कि इस बैठक में
वह हिस्सा ले या न ले, लेकिन चीन और रूस के राष्ट्रपतियों द्वारा भारत को दी गई बधाई के सामने
पाकिस्तान का यह प्रलाप दुनिया ने अनसुना कर दिया है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस मौके
पर सिर्फ  भारत को बधाई नहीं दी बल्कि उन्होंने जोर देकर यह भी कहा है कि तर्क-संगत दिशा में
अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के अनुरूप मिलकर काम करना चाहिए। शायद इसमें भारत को सुरक्षा परिषद में
स्थायी सदस्यता पर समर्थन देने की ध्वनि भी छिपी हुई है। भारत ही नहीं दुनिया के कई कूटनीतिक
विशेषज्ञ इस बात को स्वीकार भी कर रहे हैं कि हाल के दिनों में भारत की कूटनीतिक ताकत बढ़ी है।
साथ ही आने वाले दिनों में उन्हें भारत का कद बड़ा होते हुए भी दिख रहा है क्योंकि यह अकेले
एससीओ की बैठक की बात नहीं है, भारत को इसी साल दिसम्बर में दुनिया के 20 सबसे ताकतवर देशों
के समूह जी-20 की अध्यक्षता भी मिलने जा रही है।
गौरतलब है कि इसकी भी आगामी शिखर बैठक भारत में ही होगी। इसे भी कूटनीति के क्षेत्र में एक
अहम घटना के तौर पर देखा जा रहा है। भारत 01 दिसम्बर, 2022 से 30 नवम्बर 2023 तक जी-20
समूह का अध्यक्ष रहेगा और अध्यक्ष की हैसियत से इस दौरान होने वाली शिखर बैठक में वह किसी भी
देश को बतौर मेहमान इसमें शामिल होने के लिए न्यौता दे सकता है। भारत ने इसके लिए बांग्लादेश,
मिस्र, मॉरीशस, नीदरलैंड, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात को न्यौता देने
के लिए चुना है। ज़ाहिर है, भारत की इस पहल से इन देशों के साथ उसके रिश्ते पहले से कहीं ज्यादा
मजबूत होंगे, जो न सिर्फ  हमारी वैश्विक ताकत में इजाफा करेंगे बल्कि हमारी आर्थिक ताकत को भी
मजबूत बनायेंगे ।
इन दो बड़े संगठनों की अध्यक्षता का पद संभालने के साथ ही भारत आने वाले साल में संयुक्त राष्ट्र
में भी अपनी अहम मौजूदगी दर्ज कराने जा रहा है। भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की  दिसम्बर
2022 से अध्यक्षता मिलने जा रही है और यहां भी भारत एक साल तक अध्यक्ष रहेगा। संयुक्त राष्ट्र
सुरक्षा परिषद की पूरे एक साल की अध्यक्षता मिलना बहुत खास बात होती है, क्योंकि इस दौरान आप
अपनी ताकत को बढ़ाने वाले और अपने प्रभाव का दुनिया में विस्तार करने के लिए कई तरह के
रणनीतिक और कूटनीतिक फैसले कर सकते हैं। इन बड़े संगठनों की अध्यक्षता के साथ साथ दुनिया के
सबसे ताकतवर माने जा रहे संगठन जी-7 का सदस्य भी भारत को बनाये जाने की चर्चा दुनिया के
कूटनीतिक गलियारों में चल पड़ी है। हो सकता है कि अब जी-7 जी-8 में बदल जाए और यह आठवां
सदस्य भारत हो। दरअसल इसी साल जून महीने में जी-7 देशों की जो बैठक जर्मनी में हुई थी, भारत
को इसमें बतौर मेहमान आमंत्रित किया गया था और अब चूंकि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी
अर्थव्यवस्था बन चुका है, हमारे यहां ही दुनिया की सबसे बड़ी वर्कफोर्स है तथा अगले दो दशकों तक
भारत दुनिया के परिदृश्य में नौजवान देश बना रहेगा। ऐसे में ये सारी खूबियां मिलकर भारत को दुनिया
का एक खास देश बनाती हैं। तब भला कौन संगठन होगा जो नहीं चाहेगा कि भारत उसका हिस्सा बने।
साल 2014 के बाद से भारत की विदेश नीति की यह स्पष्ट ध्वनि रही है कि भारत दुनिया के परिदृश्य
में बड़ी भमिका निभाने के लिए तैयार है और भारत इन दिनों सिर्फ  इसका ऐलान भर नहीं कर रहा
बल्कि वह यह बड़ी भूमिका निभा भी रहा है। इसलिए यह कहना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है कि भारत
दुनिया की नज़रों में महत्वपूर्ण होने की राह पर है। हकीकत यह है कि भारत पहले से ही महत्वपूर्ण हो
चुका है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता मिलना इसका सबूत है। वैसे भारत का दुनिया के
परिदृश्य में एक अहम देश के रूप में उभरना कोई संयोग नहीं है। हाल के सालों में हिंदुस्तान में सबसे
ज्यादा फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट हुआ है। यह 150 अरब डॉलर से भी ज्यादा का है। भारत की विदेशी
मुद्रा करीब 600 अरब डॉलर के पास पहुंच गई है और हमारी औद्योगिक विकास दर 8 फीसदी से
ज्यादा है। ऐसे में दुनिया क्यों नहीं चाहेगी कि भारत जी-20 के अहम देश के साथ साथ जी-7 समूह का
ताकतवर सदस्य बनकर उसे जी-8 में बदले। जी-20 देशों का सकल घरेलू उत्पाद दुनिया के कुल घरेलू
उत्पाद 80 फीसदी से ज्यादा है।
पूरी दुनिया में जितना भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार होता है, जी-20 देशों की उसमें 75 फीसदी हिस्सेदारी रहती
है और दुनिया की कुल जनसंख्या का 60 फीसदी इन जी-20 देशों में ही बसता है। ऐसे में भारत को
महत्वपूर्ण देश क्यों नहीं माना जायेगा जबकि मौजूदा समय में भारत दुनिया की अर्थव्यवस्था का इंजन
बना हुआ है। दुनिया के दूसरे विशेषज्ञों को छोड़िए, भारत में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके अब्दुल
बासित जो हिंदुस्तान को काफी नजदीक से जानते हैं, भी स्पष्ट तौर पर भारत की बढ़ती हुई कूटनीतिक
ताकत को महसूस कर रहे हैं। हालांकि शायद पाकिस्तानी होने के नाते अपनी झेंप मिटाने के लिए वह
यह भी इसमें जोड़ रहे हैं कि भारत इस सबके बावजूद फिलहाल विकसित देश नहीं बन सकता। उसे
इसके लिए अभी बहुत इंतज़ार करना पड़ेगा लेकिन भारत को अब आस पड़ोस के इन प्रमाणपत्रों की
कोई ज़रूरत नहीं है। विश्व की अर्थ-व्यवस्थाओं पर कड़ी नज़र रखने वाली संस्था ब्लूमबर्ग ने घोषणा की
है कि भारत ने मार्च 2022 में आर्थिक तौर पर ब्रिटेन को काफी पीछे छोड़ दिया है। अब भारत दुनिया
की पांचवीं सबसे बड़ी जीडीपी आधारित अर्थव्यवस्था है। ब्लूमबर्ग के मुताबिक भारत का जीडीपी 854.7
अरब डॉलर से ज्यादा का हो चुका है, जबकि ब्रिटेन की अर्थ-व्यवस्था महज 816 अरब डॉलर की है।
कहने का मतलब यह है कि भारत वर्षों से जिस विश्व गुरु बनने का सपना देखता रहा है, अब वह
सपना साकार होने का समय आ गया है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर