सुरक्षित बचपन से ही देश बनेगा मज़बूत 

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 2014 से भी अधिक जनमत के साथ पुन: देश के कर्णधार बने हैं। भारत की जनता की कठिनाइयों को उन्होंने समझा और ऐसे कार्य किए जिससे जन-गण के मन में मोदी बसे। इसी का परिणाम यह हुआ कि 2019 के चुनावों में अधिकतर मतदाता अपने क्षेत्र के प्रत्याशी का नाम नहीं लेते थे। हर घर में शौचालय पहुंचा देना ही सबसे बड़ा काम था, जिसने बीमारों, बुजुर्गों और विशेषकर महिलाओं को सम्मानपूर्ण सुरक्षित जीवन दिया। इसके साथ ही मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक और हलाला की नारकीय पीड़ा से मुक्त करने के लिए जो प्रयास मोदी सरकार ने किए वे भी उनकी विजय का कारण बने। प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान अब इस ओर आकर्षित करना चाहती हूं कि देश की सबसे बड़ी समस्या पीने योग्य स्वच्छ पानी का अभाव देश से दूर करें। आज जब समृद्ध परिवारों में केवल शौचालय की टंकियों में ही जितना पानी हर रोज प्रयुक्त होता है उसका दशांश एक गागर, एक घड़ा पानी के लिए देश की लाखों महिलाओं को मीलों दूर चलना पड़ता है, एक नहीं, तीन-तीन घड़े सिर पर उठाकर और बहुत स्थानों पर तो घूंघट में मुंह छिपाए वे परिवारों के लिए पीने के पानी का प्रबंध करती हैं। आज भी देश में लगभग एक-तिहाई आबादी दूषित जल से प्रभावित पानी पीने को मजबूर है। ये आंकड़े आई.एम.आई.एस. द्वारा पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय को सौंपे गए आंकड़ों के अनुसार हैं। लगभग एक-तिहाई आबादी वह पानी पीती है जिसमें फ्लोराइड, ऑर्सेनिक, लौह तत्व और नाइट्रेट सहित अन्य लवण एवं भारी धातुओं के मिश्रण है। सभी जानते हैं कि दूषित पानी पीने से बहुत सी बीमारियां विशेषकर पेट की बीमारियां होती हैं। भारत में प्रदूषित पानी से होने वाली एक प्रचलित बीमारी डायरिया है, जिससे बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इससे शरीर में पानी की कमी आने लगती है और डी-हाइड्रेशन हो जाती है जो किसी भयानक बीमारी से कम नहीं टायफायड, हैजा, जापानी बुखार अस्वच्छ पानी से उत्पन्न होने वाली भयानक बीमारियां हैं। यद्यपि भारत में नवजात बच्चों की मृत्युदर पहले से काफी कम हुई है, पर अभी भी ये आंकड़े चिंताजनक हैं। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में आठ लाख दो हजार शिशुओं की मौत हुई थी। यद्यपि पिछले वर्षों के मुकाबले कम बच्चे मौत के मुंह में गए, लेकिन दुनिया भर में यह आंकड़ा अब भी सर्वाधिक है। यह जानकारी भी यू.एन.आई.जी.एम.ई. संस्था की रिपोर्ट में दी गई। लैंगिक आधार पर भी शिशु मृत्यु दर की बात करें तो 2017 में लड़कों में यह प्रति एक हजार बच्चों पर 30 थी, जबकि लड़कियों में यह प्रति एक हजार बच्चियों पर 40 थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले कुछ वर्षों में लिंग अनुपात में सुधार आया है और लड़कियों की जीवन दर में वृद्धि हुई है, पर अभी भी नवजात लड़कियों की मृत्यु ज्यादा हो रही है। देश-प्रदेश की सरकारों को याद रखना होगा कि जिस देश का वर्तमान अर्थात बच्चे बीमार, अशिक्षित और गरीबी की चक्की में पिस रहे हैं, कूड़े के ढेर से रोटी चुनते हैं, ढाबे पर भट्ठी जलाते या होटलों में बर्तन साफ करते हैं वे तो जवान होने से पहले ही बूढ़े हो जाएंगे। अगर देश के बच्चे देश का वर्तमान इतना कमजोर होगा तो भविष्य कैसे सशक्त, समृद्ध और सुंदर हो सकेगा। सीधी बात यह है कि जिस देश का बचपन भूखा और शोषित है उनकी जवानी भला क्या होगी? आज भारत में 47 करोड़ से ज्यादा बच्चे हैं। क्राई नामक संस्था ने 14 राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों, झुग्गियों, छोटे नगरों और महानगरों के बच्चों तथा उनके माता-पिता के साथ बात करके जो सर्वेक्षण किया है, वह उन्होंने देश के सामने रखा है। कराई अर्थात् चाइल्ड राइट एंड यू की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि स्वतंत्रता के बाद भी और पिछले पांच वर्षों में भी बाल कल्याण और जन कल्याण की योजनाएं आधी-अधूरी आधे मन से ही चलीं। भारत में छह वर्ष तक के बच्चों की कुपोषण से मरने की संख्या आज भी भयावह है। हर वर्ष हजारों बच्चे विशेषकर गरीब बस्तियों के बच्चे गायब हो जाते हैं, जो कभी नहीं मिलते और जो मिलते भी हैं उनमें से लड़कियों की संख्या बहुत कम है। इन बच्चों को स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं मिलतीं, क्योंकि उनके माता-पिता उपचार करवाने में आर्थिक दृष्टि से असमर्थ हैं। इसी कारण टोने-टोटके, जादू टोना और अंधविश्वास का शिकार ये बच्चे हो रहे हैं। पीने का पानी तो इनकी बीमारियों का एक बड़ा कारण भी है। ऐसे कितने बच्चे हैं जो रेलवे स्टेशनों पर, बड़े-बड़े शहरों के फुटपाथों पर सोते, खाते, भिक्षा मांगते या अपराध की दुनिया में धकेले जाते हैं। इस पर ध्यान देने को किसी मानव अधिकार आयोग या बाल अधिकार आयोग के अधिकारियों को फुर्सत नहीं। मेरी जानकारी के अनुसार बाल अधिकार आयोग में तो वे सिफारिशी राजनीतिक कार्यकर्त्ता लगाए जाते हैं जिनको सत्ता पक्ष कोई बड़ा पद नहीं दे पाता। इस बहाने उन्हें कार, कोठी और मोटा वेतन मिल जाता है। ऐसी कोई कसौटी नहीं जिस पर ये परखा जाए कि इन बच्चों के लिए इस आयोग के जागीरदारों ने कितना काम किया। प्रधानमंत्री से विशेष आग्रह है कि वह इन बच्चों की ओर ध्यान दें, जो वंचित हैं, अशिक्षित हैं, आधा पेट भूखे रहकर नीले आकाश के नीचे जीने को विवश हैं, पुलिस के जाल में भी फंस जाते हैं और देश की बेटियों की विशेष चिंता करें जो बचपन में ही शारीरिक शोषण जैसे भयानक अपराधों का शिकार हो जाती हैं। जब तक देश का चरित्र नहीं बनेगा, विज्ञापनों के नाम पर नग्नता और कामुकता परोसी जाती रहेगी तब तक बेटियां और बेटे सुरक्षित नहीं रह सकते। जो नन्हें-मुन्ने बच्चे घरों से दूर मेहनत मजदूरी करके बिना मां-बाप के जीते हैं वे भी तो अनेक शारीरिक शोषण के शिकार हो जाते हैं। इतने भर से संतोष करना काफी नहीं कि हमारा देश युवा है। हमारा वर्तमान, हमारे बच्चे, नई पीढ़ी अगर यूं ही अशिक्षा, भूख और बीमार होने को ही मजबूर रह गई तो फिर भविष्य के युवक ये वंचित बच्चे तो जवानी से पहले ही बूढ़े हो जाएंगे, जिन्हें भविष्य में देश संभालना है। पूरे देश से यह एक आवाज उठे, पहले वर्तमान अर्थात अपने बच्चों को मजबूत करें फिर ही भारत का भविष्य पूरी तरह सुरक्षित, अपराध एवं रोग मुक्त होगा।