आत्म-कल्याण का रास्ता

गौतम बुद्ध अपने सभी भिक्षुओं का व्यक्तिगत रूप से ख्याल रखते थे। वह इस बात को लेकर सचेत रहते कि किसी को कभी कोई कठिनाई न हो। एक बार उन्होंने गौर किया कि एक भिक्षुक कई दिनों से नज़र नहीं आ रहा है। उसके बारे में कोई चर्चा भी सुनने को नहीं मिल रही थी। बुद्ध को उसकी चिंता हुई। उन्होंने भिक्षु भदंत से उसके बारे में पूछा। भदंत ने दबी आवाज़ में कहा, ‘वह अतिसार से पीड़ित हैं।’ यह सुनते ही बुद्ध आनंद को साथ लेकर उस भिक्षु को देखने चले गये।  बुद्ध ने पूछा, ‘क्या तुम्हें देखने कोई नहीं आया?’ भिक्षु बोला, ‘वे सब साधना में व्यस्त हैं इसलिए मेरे पास नहीं आ सका।’ कुछ देर मौन रहकर बुद्ध ने आनंद से कहा, ‘आनंद! जल ले आओ। हम इस भाई की सेवा करेंगे।’ आनंद तुरंत कलश में जल ले आया। बुद्ध ने जल से बीमार भिक्षु का शरीर साफ किया। शाम को सभी भिक्षुगण संध्या वंदन के लिए जमा हुए। बुद्ध ने बिना किसी भूमिका के सभा में उपस्थित भिक्षुओं से कहा, ‘क्या हम में से कोई एक भिक्षु अस्वस्थ है?’ एक आवाज़ आई, ‘हां।’ बुद्ध ने पूछा, ‘उसे क्या कष्ट है?’ उत्तर मिला, ‘उस भाई को अतिसार है।’ बुद्ध ने फिर पूछा, ‘उसकी देखभाल कौन कर रहा है?’ सब भिक्षु चुप हो गए। कुछ देर तक प्रार्थना सभा में सन्नाटा छाया रहा। फिर बुद्ध बोले, ‘मैं जानता हूं।  आप सबको आत्म-कल्याण की चिंता है। पर क्या किसी पीड़ित को कष्ट में छोड़कर आत्म-कल्याण की बात सोचना अच्छी बात है? स्मरण रहे, योग साधना से आत्म-कल्याण तब तक नहीं हो सकता, जब तक मानवता की पीड़ा आप के हृदय में शूल बनकर नहीं चुभती। इसलिए निष्काम भाव से सेवा करें। यही सच्ची साधना है।’

—मुकेश कश्यप