महिला विरोधी हैं तीन तलाक और हलाला के समर्थक

भारत की करोड़ों मुस्लिम महिलाओं के लिए अभिशाप बने तीन तलाक और उससे ही जुड़े हलाला जैसे अमानवीय कृत्य को रोकने के लिए भारत सरकार की गंभीरता स्पष्ट दिखाई दी, जब 17वीं लोकसभा के पहले कामकाजी दिन ही सरकार ने सदन में मुस्लिम महिला-विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 पेश कर दिया। अनुमान के अनुसार ही कांग्रेस और ए.आई.एम.आई.एम. समेत कई विपक्षी दलों ने बिल का विरोध किया। इसे असंवैधानिक और भेदभाव वाला बताया। इस विरोध के बावजूद बिल 74 के मुकाबले 186 मतों के समर्थन से पेश हो गया। वैसे एक प्रश्न यहां यह भी उठता है कि संसद के शेष सदस्य उस समय कहां थे? क्यों अनुपस्थित थे? पिछली सरकार के समय भी नरेंद्र मोदी सरकार ने दो बार यह बिल संसद में प्रस्तुत किया था, पर राज्यसभा में राजग के पास बहुमत नहीं होने से यह बिल अटक गया। सरकार ने इसके लिए तीन बार अध्यादेश भी जारी किया, पर 16वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के कारण यह बिल निष्प्रभावी हो गया। प्रश्न यह है कि विपक्ष नारी को सम्मान और न्याय देने वाले इस बिल का विरोध क्यों करता है? भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी सायरा बानो केस का निर्णय करते हुए यह स्पष्ट कहा था कि तीन तलाक मनमाना और असंवैधानिक है। यह सवाल न सियासत का है, न इबादत का, न धर्म का, न मजहब का। नारी के साथ न्याय और उसकी गरिमा का यह सवाल है। भारत सरकार ने बार-बार यह कहा है कि जब दुनिया के 22 देशों जिनमें से अधिकतर मुसलमान हैं वहां तीन तलाक समाप्त हो चुका है तो फिर भारत में क्यों नहीं? जिस संविधान की शपथ लेकर विरोध करने वाले नेता सांसद बनते हैं, भारत के उसी संविधान में मूलभूत अधिकारों से जुड़ा अनुच्छेद 15 कहता है कि लिंग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता, इसलिए तीन तलाक जैसी धर्म के नाम पर चल रही महिलाओं का शोषण करने वाली कुरीति को समाप्त करना संविधान सम्मत है। सभी जानते हैं कि अधिकाधिक वोट प्राप्त करने और मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए अपने देश के कुछ राजनेता तीन तलाक का विरोध करते हैं। यह गर्व और प्रसन्नता का विषय है कि भारत की अधिकतर मुस्लिम महिलाएं स्वयं जागरूक होकर इस अत्याचार के विरुद्ध उठ खड़ी हुई हैं। पिछले तीन वर्ष से यह साफ दिखाई दे रहा है कि राष्ट्रीय स्तर पर महिलाएं तीन तलाक का विरोध कर रही हैं और हलाला का तो नाम लेने में भी शर्म आती है। पाकिस्तान, बंगलादेश, सीरिया, साइप्रस, जॉर्डन, ईरान, मोरक्को, कतर और यू.ए.ई. आदि देशों में तीन तलाक को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। मिस्र दुनिया का पहला ऐसा देश है जहां सन् 1929 में मुस्लिम जजों की खंडपीठ ने सर्वसम्मति से तीन तलाक को असंवैधानिक करार दे दिया और उसी का अनुसरण करते हुए सूडान की अदालत ने अपने देश में तीन तलाक को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया। भारत में तीन तलाक का समर्थन करने वाले कुछ राजनीतिक और धार्मिक नेता अपने लोगों को यह बताने के लिए तैयार नहीं कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में सन् 1956 में ही यह महिला विरोधी तीन तलाक समाप्त हो गया था। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री मुहम्मद अली बोगरा ने 1955 में पहली पत्नी को तलाक दिए बिना अपनी सैक्रेटरी से शादी कर ली थी। इस घटना के विरोध में देशभर की महिलाएं सड़कों पर आईं और उसी समय पाकिस्तानी मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति मिल गई। 1971 में पाकिस्तान से अलग हुआ बंगलादेश भी इस बुराई से मुक्त हो चुका है। यहां तलाक से पहले यूनियन काऊंसिल के चेयरमैन को विवाह संबंध तोड़ने के लिए एक नोटिस देना होता है। श्रीलंका में भी उस ढंग से तीन तलाक नहीं दिया जा सकता, जैसा भारत में है। यहां तो मुस्लिम जज, रिश्तेदार और प्रभावी व्यक्ति विवाह बनाए रखने का प्रयास करते हैं। ऐसा संभव न हो तो तीस दिन बाद एक मुसलमान जज और दो गवाहों के सामने तलाक स्वीकार किया जाता है। तीन तलाक से ही लगभग जुड़ा हुआ एक गैर-इंसानी रिवाज है हलाला। जानना चाहिए कि हलाला है क्या? तलाक के बाद अगर कोई मुस्लिम महिला अपने पति से पुनर्विवाह चाहती है तो धर्म के नाम पर उसे एक अजनबी से शादी करनी पड़ती है। यौन संबंध भी रखना ज़रूरी और फिर उस पति से तलाक के बाद ही अपने पहले पति के साथ वह महिला रह सकती है। यह अमानवीय रिवाज मुस्लिम औरतों के लिए शोषण, ब्लैकमेल और यहां तक कि शारीरिक शोषण की दलदल में घसीटने वाला साबित हो रहा है। कुछ मुस्लिम देशों ने इस अति निंदनीय प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन भारत, पाकिस्तान, ब्रिटेन और कुछ अन्य देशों में अभी यह कुप्रथा प्रचलित है। निश्चित ही सबको श्री अरुण जेतली द्वारा बताया, सुनाया गया वह दुखद प्रसंग याद होगा जहां एक मुस्लिम युवती का तलाक के बाद पहली बार ससुर के साथ अस्थायी निकाह करवाया और उसी पति ने जब दूसरी बार तलाक दिया तो वह देवर के साथ निकाह करवाकर फिर अपने पहले पति की पत्नी बनी। हलाला औरत के लिए अपमान, शारीरिक और मानसिक शोषण का हथियार है। अफसोस है यह सब धर्म के नाम पर हो रहा है। इसका विरोध करने वाले मानवी ही नहीं, मानवता के दुश्मन हैं। वैसे भारत सरकार से अनुरोध है कि धर्म को आधार बनाकर महिलाओं के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव समाप्त कर देना चाहिए। वह चाहे शबरीमाला मंदिर का हो या कुरु क्षेत्र के कार्तिकेय मंदिर जैसे अनेक धर्म स्थलों का।