चिंताजनक है अर्थ-व्यवस्था का पटरी से उतरना

नरेन्द्र मोदी सरकार की कार्यशैली पर एक बात बड़ी प्रमुखता से चस्पां है कि जब आंकड़े या उपलब्धियां अनुकूल हों तो उसकी अतिरंजना दर्शायी जाती है। लेकिन जब आंकड़े प्रतिकूल हों तो उस पर किसी भी तरह की आधिकारिक प्रतिक्रिया से भी परहेज किया जाता है। ऐसा ही वाक्या अभी देखने को मिला जब भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर विश्व बैंक द्वारा जारी 2018 की विश्व अर्थव्यवस्था की रैंकिंग में भारतीय अर्थव्यवस्था को पांचवें स्थान के बजाए सातवें स्थान पर स्थित बताया गया। लेकिन सरकार द्वारा इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की गई। अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की नवीनतम स्थिति के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था अमरीका के (20.5 खरब डालर), चीन (13.5), जापान (4.9), जर्मनी (3.9), इंग्लैंड (2.82), फ्रांस (2.77) के बाद 2.72 खरब डालर की जीडीपी के साथ सांतवें स्थान पर हैं। 
अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञों के मुताबिक भारतीय मुद्रा रुपये के अमरीकी डालर के मुकाबले हुई कमजोरी व साथ-साथ घरेलू विकास दर में आ रही कमी की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था की जीडीपी रैंकिंग में यह गिरावट आयी है। दूसरी तरफ  2017 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का उभार भारतीय रुपये के डालर के मुकाबले हुई मजबूती व नये विकास दर फार्मूले की वजह से हासिल ऊंची विकास दर की वजहों से था। गौरतलब है तब भारतीय अर्थव्यवस्था फ्रांस को पछाड़कर विश्व में छठे स्थान पर आ गई थी।
सवाल है कि पिछले महीने पेश बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जिस भारतीय अर्थव्यवस्था को चालू वित्त वर्ष के अंत तक तीन खरब डालर तथा 2024 तक पांच खरब डालर तक ले जाने का दावा किया, उसे विश्व बैंक के जारी इस आंकड़े ने सीधे-सीधे धराशायी नहीं कर दिया है? और तो और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो भारतीय अर्थव्यवस्था के वास्तविक अनुमानकर्ताओं को स्थायी निराशावादी बताया था तो क्या उनका यह कथन उनका बड़बोलापन नहीं था? सवाल है कि वित्त मंत्री का भारतीय अर्थव्यवस्था को पांच खरब डालर पर ले जाना और कम से कम विश्व में अमरीका व चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बताने का संकल्प दर्शाना बिल्कुल सही है पर उस लक्ष्य को हासिल करने का ठीक-ठीक भावी रोडमैप तो यह मोदी सरकार लेकर आए? 
दूसरी बात कि पिछले तीन साल में भारतीय अर्थव्यवस्था में आयी गिरावट चाहे आमदनी हो, रोजगार हो, उपभोग हो उसके मूल कारणों की स्वीकारोक्तियां तो मोदी सरकार प्रस्तुत करे। कहना न होगा पिछली तीन तिमाहियों से भारत की औद्योगिक विकास दर में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है। दो तिमाही से विकास दर में गिरावट दर्ज हो रही है। अब तो पिछले मई से सबसे ज्यादा विकास दर हासिल करने का टैग भी भारत से छिनकर पुन: चीन के पास चला गया है। बेरोजगारी पर एक नहीं, कई आंकड़ों ने इस स्थिति की भयावहता को पहले ही प्रदर्शित किया है। कुल मिलाकर रोजगार में कमी, आमदनी में कमी, उपभोग में कमी, मांग में कमी और फिर उत्पादन में कमी, निवेश में कमी के इस आर्थिक कुचक्र में अभी भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह से जकड़ गई है। 
इसकी सबसे बड़ी मिसाल तो देश का आटोमोबाइल सैक्टर बना है जो हाल-हाल तक भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा व सफल माड्यूल बना हुआ था। भारत में आटोमोबाइल ैक्टर को विदेशी निवेश के लिए खोले जाने के बाद से दुनिया की सभी बड़ी आटोमोबाइल कंपनियों ने भारत में अपने निवेश के जरिये उत्पादन संयंत्र स्थापित किये। भारत में आटोमोबाइल क्षेत्र में तेजी से उत्पादन बढ़ा, उसकी घरेलू खपत के साथ निर्यात में भी प्रचुर बढ़ोत्तरी हुई। परंतु आज वह सैक्टर घरेलू और विदेशी मांग में आयी घोर गिरावट के शिकंजे में आ चुका है और लाखों लोगों को रोजगार देने वाले इस सैक्टर में आज करीब दस लाख लोगों की आजीविका पर प्रश्न-चिन्ह लग गया है। कहना न होगा मोदी सरकार आज भी अपनी राजनीतिक सफ लता के चलते इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रही है कि विमुद्रीकरण का उसका उठाया गया कदम इसकी घोर विफलता थी। 
कथित तौर पर भ्रष्टाचार व कालेधन पर प्रहार किये जाने के लिए लाए गए इस कदम के बावजूद देश में भ्रष्टाचार व काले धन की समस्या की तीव्रता आज भी वैसे ही बरकरार है, पर भारतीय अर्थव्यवस्था की वह कमर तोड़ने वाली जरूर साबित हो गई। 
नोटबंदी से नकद काला धन तो कम हो गया पर दो हजार के नये नोटों के जरिये भविष्य के लिए नकद काला धन की जमीन तैयार कर गया। बात करें काले धन के बड़े स्वरूप बेनामी संपत्ति की तो मोदी सरकार ने इसकी बाद में शुरूआत जरूर की, परंतु चुन-चुनकर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के बेनामी संपत्तियों की जिन्हें इडी व इन्कम टैक्स छापों के जरिये जब्त किया गया। सवाल बेनामी संपत्ति की खोजबीन सबके साथ एक जैसे तरीके से क्यों नहीं हो रही है? इसे एक नेशनल एकांउटेबिलिटी रजिस्टर के जरिये देशव्यापी अमल क्यों नहीं किया जा रहा है? 
अभी भारत की अर्थव्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ा संकट मांग संकुचन है क्योंकि लोगों के पास रोजगार व आमदनी नहीं है। अभी मोदी सरकार के समक्ष ठीक वैसी ही आर्थिक चुनौती है, जिसके लिए महान अर्थशास्त्री कीन्स ने पंप प्राइमिंग की सलाह दी थी और इसे विश्वव्यापी मंदी के दौरान अमरीकी अर्थव्यवस्था ने अपनाया था। इसका मतलब है कि सरकार स्वयं ज्यादा निवेश करें और इसके जरिये रोजगार व आमदनी बढ़ाये, इससे जब मांग बढ़ेगी तो फि र निजी क्षेत्र भी निवेश के लिए मैदान में आगे आएंगे। इस दिशा में अच्छा होगा कि मोदी सरकार सबसे पहले सरकारी महकमे में खाली व जरूरी सभी पदों पर उत्पादक नौकरियां प्रदान करे। भारतीय अर्थव्यवस्था अभी रोजगारपूरक एक बड़े आर्थिक कदम के झटके का इंतजार कर रही है, जिसके लिए मोदी सरकार को त्वरित रूप से आगे आना होगा।
                   -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर