बुध ग्रह की यात्रा पर है बेपी कोलम्बो मिशन

यूरोपियन अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘ईसा’ और जापानी अंतरिक्ष संस्था ‘याकसा’ के संयुक्त प्रयासों से 20 अक्तूबर, 2018 को दो उपग्रह लेकर बेपी कोलम्बो मिशन एरियन-5 की अंतरिक्ष गाड़ी कोरू के गोइना अंतरिक्ष केन्द्र से अंतरिक्ष में भेजा गया। इस मिशन के अधीन दो उपग्रह थे : मरकरी पलैनेटरी आर्बिटर (एम.पी.ओ.) और मरकरी मैगनैटोसफैरिक (एम.एम.ओ.) इकट्ठे ही भेजे गये।
मिशन का उद्देश्य
इस मिशन का उद्देश्य बुध का स्वरूप, रचना, ढांचा और ज्वालामुखियों का अध्ययन करना, बुध के बाहरी मंडल की बनावट और गतिशीलता की जांच करना और इसकी उत्पत्ति और प्लायन दोनों शामिल हैं। बुध के चुम्बकीय प्रभाव, चुम्बकीय मंडल और इसके भीतरी और बाहरी ढांचे की गतिशीलता का अध्ययन करना, यह भी इसमें शामिल है। बुध के चुम्बकीय क्षेत्र की उत्पत्ति की जांच करना पूरी बारीकी के साथ इस मिशन के कुछ उपकरणों और यंत्रों की मदद के साथ आइनस्टाइन के साक्षेप्ता सिद्धांत की हकीकत की जांच करना है।  पृथ्वी से छोड़ा बेपी कोलम्बो बुध ग्रह तक पहुंचने का निश्चित समय दिसम्बर 2025 निश्चित किया गया है। इस भ्रमण के दौरान यह पृथ्वी के नज़दीक एक बार शुक्र ग्रह के निकट 2 बार और बुध ग्रह के निकट 6 बार निकलेगा। इस मिशन का नाम इटली के गणित शास्त्री, वैज्ञानिक और इंजीनियर गुईसेपे बेपी कोलम्बो जोकि पांडुआ विश्व विद्यालय में थे, के नाम पर रखा गया है। इस खोजकर्ता ने पहली बार गुरुत्त्व सहायक मनूवर का प्रयोग वर्ष 1974 में मैनीनर-10 मिशन के समय किया था।  इस तकनीक को आज भी ग्रह प्रोबो में उस ढंग के साथ इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें मिशन के तीन भाग हैं जोकि बुध ग्रह पर पहुंचने के उपरांत भिन्न-भिन्न दिशाओं में चले जाएंगे। यह भाग हैं: मरकरी ट्रांसफर माडिउल (एम.टी.एम.) यह ऊर्जा के लिए है। ईसा संस्था ने इसको तैयार किया है। यह माडिउल जोड़ने के लिए सबसे नीचे प्रयोग किया जाता है। यह दोनों आर्बिटों को बुध ग्रह तक लेकर जाता है। बुध की ओर लम्बे स़फर के दौरान उसको सम्भालता है। इसमें एक सौर ऊर्जा तंत्र लगा होता है। इस स्रोत से 7 से 14 किलोवाट की पावर उत्पन्न होती है।  मरकरी मैगनैटोसफैरिक आर्बिटर (एम.एम.ओ.) यह जापानी संस्था ‘याकसा’ की ओर से तैयार किया गया है। इस की शक्ल आठ कोणीय प्रिजम जैसी है। जिसके आमने-सामने की लम्बाई 180 सैंटीमीटर ऊंची, 90 सैंटीमीटर और वज़न 285 किलोग्राम है। आठ कोनों के ऊपर और निचले भाग क्रियाशील तापमान कंट्रोल करने
के लिए विकिरण के रूप में काम करते हैं। यह कोनों से सौर सैलों के साथ ढके गए हैं, जो 90 वाट की शक्ति प्रदान करते हैं। उपरोक्त तीन भाग आपस में जुड़कर बुध ग्रह यात्रा का तंत्र बनाते हैं। बुध तक की यात्रा करने को 7 वर्ष लगेंगे। यात्रा के दौरान सौर बिजली ऊर्जा और पृथ्वी और शुक्र ग्रह से गुरुत्व सहायक तकनीक प्रयोग में लाई जाएगी। अंत में यह मिशन बुध के गुरुत्वी क्षेत्र में पहुंच जाएगा। इस मिशन के साथ सम्पर्क रखने के लिए यूरोपियन अंतरिक्ष संस्था का सेबरेरास स्थित 35 मीटर के ग्राऊंड स्टेशन को प्रयोग में लाया जाएगा। दिसम्बर 2025 को मिशन के बुध के ग्रह मार्ग में पहुंच जाने के बाद एम.एम.ओ. और एम.पी.ओ. उप-ग्रह अलग-अलग हो जाएंगे। दोनों मिल कर बुध ग्रह की खोजबीन करेंगे। यह भी सम्भावना है कि मिशन के समय में एक और वर्ष की बढ़ोतरी कर दी जाए। यह मिशन गुरुत्व क्षेत्र और चुम्बकीय क्षेत्र मैपिंग का कार्य भी पूरा करेगा। इस मिशन के लिए गामा किरण और न्यूट्रान स्पैकट्रोमीटर, रूस द्वारा प्रदान किये गये हैं। इन्होंने बुध ग्रह के ध्रुवी केन्द्रों पर पानी और बर्फ के अस्तित्व का पता लगाना है।
बुध ग्रह अधिक गर्म 
 बुध ग्रह ज्यादा गर्म ग्रह है। गुरुत्व पक्ष कमज़ोर। अपने आस-पास तक वायुमंडल बनाए रखने में असमर्थ है। इसकी सत्ता के गिर्द छोटी परतों वाला बाहरी मंडल बना रहता है।  इस वायुमंडल में हाइड्रोजन, आक्सीजन, सोडियम, कैल्शियम, पोटाशियम और अन्य तत्व होते हैं। बुध का बाहरी मंडल भी स्थिर नहीं होता। इसमें परमाणु अक्सर जुड़ते और उड़ते रहते हैं। इस यात्रा के दौरान मिशन सौर ऊर्जा और नौ गुरत्वी सहायक तकनीकों का इस्तेमाल करेगा। वर्ष 2020 में धरती और चांद के निकट, वर्ष 2020 और 2021 में शुक्र ग्रह के पास से गुज़रेगा। वर्ष 2021 और 2025 में कुल 6 बार बुध ग्रह के पास से गुज़रेगा।
मिशन के कुछ रोचक पक्ष
 बुध ग्रह द्वारा भेजा गया यह पहला दो उप-ग्रहों वाला मिशन है। यह दोनों उप-ग्रह दो भिन्न-भिन्न परिक्रमा मार्ग में बुध ग्रह का चक्कर लगाएंगे। इससे विस्तार में आंकड़े प्राप्त होंगे। इन आंकड़ों से बुध ग्रह बारे और जानकारी मिलेगी। इटली के गणित शास्त्री और खोजकर्ता ने यह स्पष्ट किया था कि बुध ग्रह सूर्य का एक चक्कर लगाते समय अपनी धूरी ग्रह के लिए तीसरा मिशन है। पहला मिशन ‘मैसेंजर’ था, जो वर्ष 2004 में भेजा गया। यह वर्ष 2011 में बुध के परिक्रमा पक्ष में दाखिल हुआ था। दूसरा मिशन था, मैरीनर-10, जो इससे पूर्व वर्ष 1973 में भेजा गया था। यह बुध और शुक्र ग्रह के नज़दीक से गुज़रा था। इसका उद्देश्य बुध ग्रह के वातावरण और सत्ता को मापना था। बेपी कोलम्बो मिशन बुध ग्रह के, बुध के अजीब ढंग बदलते तापमान 9 दिनों में 4000 डिग्री सैल्सियम और रात्रि-1900 डिग्री सैल्सियम भीतर काम करेगा। सूर्य की गर्मी और विकिरणों से बचने के लिए एक विशेष अंतरिक्ष कम्बल तैयार किया गया है, जो अंतरिक्ष जहाज़ के भीतर की गर्मी बाहरी अंतरिक्ष में फैंकेगा। अंतरिक्ष कम्बल एल्मियूनियम, प्लास्टिक और ग्लास सिरेमिक पैबरिक्स की 97वें सतहों से तैयार किया गया है। इस
मिशन में ब्रिटेन के औद्योगिक संस्थानों ने भी योगदान डाला है। सूर्य की तेज गर्मी के कारण इस मिशन के लिए, कई विलक्षण तकनीकें भी विकसित की गई हैं। उदाहरण के तौर पर उच्च तापमान कोटिंग, बहु-परतों वाली तापरोधक उपकरणों को आम कमरे में तापमान पर रखने के लिए रेडीएटर आदि।

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