मोदी-शी जिनपिंग वार्ता का भारत के लिए आर्थिक महत्त्व

चेन्नई के महाबलिपुरम और दूसरे दिन कोवलम में भारत के प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्राध्यक्ष में एक और बातचीत हो गई। अपनी कूटनीति के अनुसार मोदी इन वार्ताओं का तेवर अनौपचारिक और माहौल खुशनुमा रखते रहे हैं, ताकि किसी भी पक्ष के आवश्यक हठ की जगह किसी ठोस नतीजे पर पहुंचा जाए। चौबीस घंटे में मोदी ने जिनपिंग के साथ सात घंटे अकेले बात की, और एक घंटा शिष्टमंडल के साथ। अब इस वार्ता का आकलन करते हैं तो पाते हैं कि वार्ता के मुद्दे तीन थे, सीमा, व्यापार और आतंकवाद। वार्ता के बाद जो वक्तव्य सामने आये उससे स्पष्ट हो जाता है कि इस वार्ता में विवाद के मुद्दों पर संवाद हुआ और भविष्य के लिए ही संवाद हुआ।  लेकिन संवाद कोई उपलब्धि नहीं होता, अगर इसका निष्कर्ष वायदों, सहयोग और भविष्य के लिए एक नया आर्थिक-व्यापारिक उदार तंत्र बनाने पर छोड़ दिया जाए, जहां दोनों देशों के मंत्री महोदय अपनी निगरानी रखेंगे। इसे ‘चेन्नई कनैक्ट’ कहा है। वार्ता सुखद माहौल, उपहारों के आदान-प्रदान, और मुस्कराहटों के बीच हुई, जहां अपनी दक्षिण भारतीय वेशभूषा में मोदी चीनी राष्ट्राध्यक्ष को दक्षिण भारत का गौरवपूर्ण दर्शन करवाते दिखे। इसकी मीडिया की विस्तृत कवरेज के कारण अगर विदेशी पर्यटकों के लिए भारत के इस सुन्दर हिस्से का पर्यटन बढ़े तो हम इसे पर्यटन   प्रोत्साहन का मोदी प्रयास कहें तो अतिश्योक्ति न होगी। याद रखा जाए जब पिछले वर्ष मोदी जी ने बद्रीनाथ मंदिर की एक गुफा में ध्यान किया था, तो उसके बाद इस गुफा में ध्यान करने के लिए लोगों की कतार बुकिंग का अन्त नहीं रहा।  जहां तक सीमा विवाद और कश्मीर का प्रश्न है, सीमा विवाद को छेड़ा नहीं गया। वार्ता वक्तव्य में कश्मीर मुद्दे को भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मानते हुए उसे भी छेड़ा नहीं गया। डोकलाम, अरुणाचल और चीन द्वारा पाकिस्तान में ग्वादर को केन्द्र में रख बनाये जा रहे आर्थिक कॉरीडोर का कोई जिक्र भी नहीं। वार्ता के एकदम बाद जिनपिंग नेपाल चले गये। वह दो दिन पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से चीन में मिले थे, अपनी दोस्ती को रेखांकित करके आये थे। भारत में भी उन्होंने चीन और भारत की दो हज़ार साल पुरानी दोस्ती को रेखांकित किया और उसके बने रहने की कामना की। हां, यह प्रतिफल अवश्य मिला है कि भारत और चीन ने मिल कर वैश्विक आतंकवाद का मुकाबला करने की बात अवश्य दोहराई है। इस वार्ता से चीन और भारत के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंधों का कोई नया चमत्कारिक अध्याय खुल गया हो, ऐसा नहीं है। हां, इसके लिए भविष्य में नई सम्भावनाओं के द्वार खुलने का प्रयास अवश्य हुआ है। लेकिन भारत का यह थीसिस सही है कि अगर भारत और चीन के बीच आर्थिक निवेश और आयात-निर्यात के संबंधों में गहन सहयोग के द्वार खुल जाते हैं, तो यह व्यवसायिक उपलब्धि कटुता को घटायेगी। इसकी सम्भावना बहुत है। क्योंकि इस समय चीन अमरीका के साथ जीने-मरने के एक कटु व्यापारिक युद्ध में उलझा हुआ है। अमरीका ने चीनी निर्यात पर अपने टैक्सों की ऊंची दीवारें खड़ी की हैं,  चीन की ओर अपना निर्यात घटाया है। चीन ने भी अपने कस्टम ऊंचे करके जवाबी कार्रवाई की है। इसके साथ ही अमरीका ने चीन में अपना निवेश घटाया है। इसके फलस्वरूप चीन को एक बार फिर अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करना पड़ा है, ताकि चीनी निर्यात सस्ते रहें और उसका निर्यात उद्योग तबाह न हो जाये। अमरीकी आयात कम होने से वहां दूसरे देशों के लिए आयात बढ़ाने की सम्भावना पैदा हुई है। देखना यह होगा कि भारत इस सम्भावना को किस प्रकार अपने हक में इस्तेमाल कर सकता है। इसके अतिरिक्त चीन में भारतीय उद्यमियों के लिए नये निवेश की भी अकूत सम्भावनाएं पैदा की गई हैं। क्या भारत के साहसी उद्यमी इस अवसर को भुनाने का प्रयास करेंगे? इस समय व्यापारिक स्थिति भारत के प्रतिकूल है। इस द्विपक्षीय व्यापार में हमारा व्यापार शेष और भुगतान शेष दोनों ही शोचनीय हद तक प्रतिकूल है। भारत जितना निर्यात चीन में करता है, उससे 53 अरब डालर का आयात चीन से भारत में अधिक करता है। सस्ते चीनी सामान से भारत की मंडियां भरी हुई हैं, और इसका मुकाबला न कर पाने के कारण भारतीय उत्पादक उनके डीलर बन रहे हैं। दीवाली में सस्ती चीनी, लड़ियों तक ने हमारे भारतीय दीया उद्योग के लिए भारी संकट पैदा कर दिया। जहां तक भारतीय निवेश का संबंध है, चीन में हमारा निवेश भारत में हुए उनके निवेश के सामने फिसड्डी है। बेशक इस विसंगति का संज्ञान इस शी जिनपिंग वार्ता में लिया गया, लेकिन इसमें भारतीय निर्यातकों और निवेशकों के लिए एक उदार या चमत्कारिक घोषणा सामने नहीं आयी है। हां, इतना अवश्य हुआ कि भारत और चीन ने एक उदार और मल्टीपल वीज़ा देने की बात अवश्य  कर दी है। कारोबारी समस्याओं के लिए एक नया तंत्र बनाने की बात दोनों देशों ने अवश्य की है, जिसमें व्यापार, निवेश और सेवाओं से जुड़े मुद्दों को निपटाया जायेगा। इस सबके निर्देशन और निगरानी सीधे विदेश मंत्री निर्मला सीतारमण और चीन के उपप्रधानमंत्री हूं चुंग हुआ के अधीन होगी। इन मंत्रियों की ओर से दोनों देशों में पैदा होने वाली निवेश की दिक्कतों पर ध्यान दिया जायेगा। दोनों आबादियां, भारतीय और चीनी और करीब आयेंगे। भारतीय व्यापार शेष की प्रतिकूलता को घटाने की ओर ध्यान होगा। किस्सा कोताह यह कि यह बातचीत भविष्य से संवाद करने का दिलासा देती है, वर्तमान इसमें से खारिज हो गया है।