लुधियाना उप-चुनाव का महत्त्व
विगत कई सप्ताह से पंजाब के राजनीतिक और पत्रकारिता क्षेत्रों में लुधियाना पश्चिम उप-चुनाव की बहुत चर्चा रही है। यह चुनाव आम आदमी पार्टी के नेता और इस क्षेत्र से विधायक गुरप्रीत बस्सी (गोगी) के निधन के कारण हुआ है। इस चुनाव में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी द्वारा संजीव अरोड़ा, कांग्रेस की ओर से भारत भूषण आशू, भाजपा द्वारा जीवन गुप्ता और शिरोमणि अकाली दल के परउपकार सिंह घुम्मण चुनाव मैदान में हैं। इनके अतिरिक्त 10 अन्य उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे हैं।
विगत कई सप्ताह से चारों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव मैदान गर्मा रखा था। आम आदमी पार्टी ने तो चुनावों की घोषणा होने से बहुत समय पहले ही राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था और उस समय से ही वह वहां चुनाव गतिविधियों में व्यस्त थे। उनके चुनाव अभियान में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान, दिल्ली के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं की ओर से सक्रियता से भाग लिया गया। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी ने भी यह चुनाव जी-जान से लड़ा है। चाहे कई अवसरों पर इसके वरिष्ठ नेताओं में मतभेद भी उभरते दिखाई दिए हैं। भाजपा के संबंध में पहले प्रभाव यह बना था कि वह अपना अभियान पूरे उत्साह से नहीं चला रही, परन्तु बाद में पंजाब भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के अतिरिक्त हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की ओर से लुधियाना में आकर प्रचार करने से भाजपा का चुनाव अभियान भी काफी तीव्र हुआ दिखाई दिया। शिरोमणि अकाली दल जोकि इस समय गुटबंदी का शिकार है और 2022 के चुनावों के बाद आज तक भी लोगों का व्यापक स्तर पर विश्वास जीतने में सफल नहीं हुआ, ने भी इस चुनाव को काफी शिद्दत से लड़ा है। उसके उम्मीदवार एडवोकेट परउपकार सिंह घुम्मण शहर के लोगों में काफी लोकप्रिय बताए जाते हैं और उन्होंने निरन्तर प्रचार करके यह प्रभाव देने का यत्न किया है कि अकाली दल भी पूरी गम्भीरता से चुनाव लड़ रहा है।
परन्तु इस सब कुछ के बावजूद 19 जून को जो मतदान हुआ उसमें शहर के लोगों की ज्यादा दिलचस्पी दिखाई नहीं दी। पंजाब सहित पूरे देश में चार राज्यों की 5 विधानसभा सीटों पर इसी दिन उप-चुनाव हुए हैं। पंजाब में लुधियाना पश्चिम में सिर्फ 51.33 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि पश्चिम बंगाल, गुजरात और केरल में अधिक मतदान हुआ। पश्चिम बंगाल की कालीगंज सीट पर 69.89 प्रतिशत, केरल की निलम्बर सीट पर 73.26 प्रतिशत, गुजरात में विसवादर सीट पर 54.61 प्रतिशत और कडी सीट पर 54.49 प्रतिशत मतदान हुआ। पंजाब में मतदान कम होने के क्या कारण रहे हैं या पंजाब के लोग चुनावों से विमुख क्यों हो रहे हैं? इस संबंध में सभी पार्टियों को सोचने की ज़रूरत है। जबकि 2022 के विधानसभा चुनावों में लुधियाना पश्चिम के इसी क्षेत्र में 64.29 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बात पर सन्तोष प्रकट किया जा सकता है कि मतदान अमन और शांतिपूर्वक ढंग से हुए हैं और इस दौरान कोई ज्यादा असुखद घटना नहीं घटित हुई। चाहे विपक्षी पार्टियों द्वारा चुनाव अभियान के दौरान सत्तारूढ़ पार्टी पर सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने के आरोप ज़रूर लगाए जाते रहे हैं।
जिस तरह हमने ऊपर वर्णन किया है कि चाहे किसी प्रदेश की राजनीति में एक उप-चुनाव का अधिक महत्त्व नहीं होता, परन्तु यह चुनाव सभी संबंधित राजनीतिक पार्टियों की ओर से डेढ़ वर्ष बाद 2027 में राज्य के विधानसभा के होने वाले आम चुनावों को मुख्य रख कर लड़े गए हैं। इसी कारण इन पार्टियों द्वारा अधिक ज़ोर लगाया गया है। आम आदमी पार्टी यह चुनाव जीत कर यह सिद्ध करना चाहती है कि साढ़े तीन वर्ष के शासन के बाद भी लोगों में उसका आधार बना हुआ है और वह 2027 में भी पुन: सरकार बना सकती है। कांग्रेस यह सिद्ध करना चाहती है कि आम आदमी पार्टी लोगों को अच्छा प्रशासन नहीं दे सकी, अमन-कानून की स्थिति बेहद खराब है और लोगों के साथ किए गए ज्यादातर वायदे भी पूरे नहीं हुए, इसी कारण 2027 के चुनावों में लोग स्वाभाविक रूप से कांग्रेस पार्टी को समर्थन देंगे। भाजपा यह सिद्ध करना चाहती है कि 2027 के चुनावों में सिर्फ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मध्य ही मुकाबला नहीं है, वह भी राज्य की सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ कर सरकार बनाने की दावेदार है। पिछले लोकसभा चुनावों में इस सीट से उसे लगभग 45,000 वोट मिले थे, वह किसी भी स्थिति में अपने इस वोट आधार से अधिक वोट लेना चाहती है। वैसे भी उसका पिछले लोकसभा चुनावों में राज्य में वोट आधार बढ़ कर 18 प्रतिशत हो गया था। शिरोमणि अकाली दल यह दर्शाना चाहता है कि चाहे पिछले समय में इसके भीतर काफी तोड़-फोड़ हुई है परन्तु इसके बावजूद सुखबीर सिंह बादल अपने समर्थकों की सहायता से पुन: प्रधान बनने में सफल हुए हैं और अकाली दल पुन: उभरने के लिए यत्नशील है। उनका दावा है कि उनके नेतृत्व वाला शिरोमणि अकाली दल ही राज्य में मुख्य अकाली दल है और आगामी समय में राज्य की राजनीति में वह ही निर्णायक भूमिका निभाएगा। वह अधिक वोट हासिल करके भाजपा को भी यह संकेत देना चाहता है कि राज्य के राजनीतिक गलियारों में वह ़गैर-प्रासंगिक नहीं है।
राजनीतिक पार्टियों के इन सभी दावों के बावजूद यह माना जाता रहा है कि मुख्य मुकाबला इन चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के मध्य ही था, परन्तु यह देखना बनता है कि 23 जून को जब इस उप-चुनाव के परिणाम सामने आएंगे, तो कौन-सी पार्टी बाज़ी मारने में सफल होती है। नि:संदेह इस प्रसंग में यह उप-चुनाव काफी महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है।