भारत-कनाडा के सुधरते संबंध
भारत और कनाडा के संबंधों, में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की कनैनिस्किस में जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान हुई द्विपक्षीय बैठक के बाद बड़ा सुधार आया है। दोनों देशों के प्रमुखों की बैठकों में दोनों देश अपने-अपने राजनयिक पुन: से क्रमवार ओटावा और नई दिल्ली में नियुक्त करने के लिए सहमत हो गए हैं। दोनों देशों ने आपसी व्यापार संबंधी रुकी हुई बातचीत को पुन: शुरू करने और ऊर्जा, टैक्नोलॉजी, डिज़िटल, बुनियादी ढांचे, ए.आई. और खाद्य सुरक्षा आदि क्षेत्रों में भी तेज़ी से पुन: सहयोग बढ़ाने पर सहमति प्रकट की है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी दोनों ने कहा है कि दोनों देशों के संबंध दोनों देशों के लोगों के लिए बेहद अहम हैं। यह जानकारी विदेश सचिव विक्रम मिस्री द्वारा दी गई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तीन देशों के दौरे पर हैं। इसे कई पक्षों से बेहद सफल दौरा कहा जा सकता है। साइप्रस के बाद उन्होंने कनाडा में जी-7 के हो रहे शिखर सम्मेलन में भाग लिया है। इस संगठन में विश्व के 7 बड़े आर्थिक व्यवस्था वाले देश शामिल हैं, जो प्रत्येक वर्ष किसी न किसी देश में इकट्ठे होते हैं। यह संगठन पिछले 50 वर्ष से बना हुआ है। पहले इसमें रूस भी शामिल होता था, परन्तु वर्ष 2014 में पुतिन द्वारा यूक्रेन के एक बड़े क्षेत्र क्रीमिया पर कब्ज़ा करने के बाद इस समूह में से रूस को बाहर निकाल दिया गया था। इन शिखर सम्मेलनों में कुछ अन्य देशों के प्रमुखों को भी अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है, जो अपने-अपने विचारों से इसमें अपना योगदान डालते हैं। भारत को भी इसमें आमंत्रित किया जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस शिखर सम्मेलन में छठी बार भाग लिया है। इस बार क्योंकि यह सम्मेलन कनाडा में आयोजित हो रहा था, इसलिए भारतीय प्रधानमंत्री की इसमें भागीदारी के संबंध में कई तरह के संदेह थे। पिछले कुछ वर्षों से कनाडा के साथ भारत के अच्छे कूटनीतिक संबंध न रहने के कारण यह आशंका प्रकट की जाती थी, कि शायद इस बार कनाडा की ओर से भारत को इस शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित न किया जाए।
सितम्बर, 2023 में दोनों देशों के संबंध खराब होने शुरू हो गए थे, जब उस समय के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी खाड़कू हरदीप सिंह निज्जर की हुई हत्या के लिए भारत सरकार को दोषी ठहराया था। जस्टिन ट्रूडो के कनाडा में 10 वर्ष के शासन के दौरान दोनों देशों के संबंध में इस मामले और कई अन्य मुद्दों पर टकराव ज़रूर रहा था, क्योंकि भारत सरकार का यह आरोप था कि ट्रूडो सरकार कनाडा में बसे हुए खालिस्तानियों को भारत के विरुद्ध लामबंद करने के लिए उत्साहित करती रहती है, परन्तु निज्जर की हत्या के बाद दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों में और भी अधिक तनाव पैदा हो गया था, परन्तु ट्रूडो की नीतियों से नाखुश होकर उनकी पार्टी द्वारा दबाव डाले जाने के कारण उन्हें अपने पद से त्याग-पत्र देना पड़ा था और उनके स्थान पर मार्क कार्नी को प्रधानमंत्री बनाया गया था, जिनके प्रधानमंत्री बनते ही शीघ्र हुए चुनावों में उनकी लिबरल पार्टी को पुन: जीत प्राप्त हुई और वह पुन: प्रधानमंत्री बन गए। कनाडा सरकार द्वारा चाहे देर से ही सही परन्तु पहले की परम्परा के अनुसार भारत के प्रधानमंत्री को जी-7 शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया गया। अब दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की कनाडा के शहर कनैनिस्किस में हो रहे इस शिखर सम्मेलन के दौरान आपसी बातचीत जिस सद्भावना भरे माहौल में हुई है, उससे निकट भविष्य में दोनों देशों के संबंध पुन: सुखद होने की सम्भावनाएं बढ़ गई हैं। नि:संदेह यह घटनाक्रम दोनों देशों के लिए एक अच्छा सन्देश है।
विगत लम्बी अवधि में दोनों का आपसी व्यापार और ज्यादातर क्षेत्रों में आपसी सहयोग शिखर पर रहा है। कनाडा में आज 30 लाख से भी अधिक भारतीय मूल के लोग बसे हुए हैं, जिनमें बड़ी संख्या में पंजाबी शामिल हैं। आज विश्व भर में जिस तरह का माहौल बन रहा है, उसमें दोनों देशों का निकट आना एक शुभ संदेश ही कहा जा सकता है। आज जबकि रूस और यूक्रेन में लम्बे समय से भीषण युद्ध चल रहा है, इसी तरह इज़रायल की गाज़ा पट्टी में हमास के साथ-साथ अब ईरान के साथ भी उसका युद्ध शुरू हो गया है यदि यह युद्ध लम्बा होता है तो इसके बेहद भयावह परिणाम निकलेंगे, परन्तु यदि इस युद्ध में अन्य देश भी शामिल हो जाते हैं तो यह और भी विनाशकारी सिद्ध होगा। इन युद्धों को रोकने के लिए शक्तिशाली और बड़े देशों के प्रत्येक पक्ष से अपना योगदान डालने की ज़रूरत होगी, ताकि हो रहे इस विनाश को रोका जा सके। भारत के साथ इन सभी देशों के पहले ही अच्छे संबंध हैं। अब तक इसने एक संतुलन बनाकर इन युद्धों को रोकने में अपना योगदान डालने का यत्न किया है और अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर इसकी आवाज़ सुनी भी जा रही है। नि:संदेह समूचे रूप में ऐसे यत्न भारत की ओर से जारी रहने चाहिएं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द