प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा : जारी है आतंकवाद के खिलाफ शांति की जंग

इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तीन देशों की पांच दिवसीय यात्रा पर थे। वह पहले साइप्रस की राजधानी, निकोसिया पहुंचे वहां पर उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ शांति की बात को प्राथमिकता दी। इसके बाद जब वह कनाडा में जी-7 की समिट में पहुंचे तो इज़रायल-ईरान जंग लड़ाई गंभीर स्थिति में पहुंच चुकी थी। अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीच समिट से यह कहकर वापस अमरीका चले गये कि कुछ बहुत ही खास होने जा रहा है। जाहिर है संकेत साफ है कि ईरान पर इज़रायल के हमले के साथ अब अमरीका और दूसरे पश्चिमी देश भी शामिल होकर उसे मटियामेट करने की सारी योजना बना चुके हैं। बहरहाल बुधवार को जब ईरान पर पहले से कई गुना ज्यादा गंभीर हमले की आशंका है, उस दौरान प्रधानमंत्री मोदी दो दिवसीय यात्रा पर क्रोएशिया पहुंचे हैं।  
प्रधानमंत्री की यह यात्रा पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर जैसी तीक्ष्ण कार्रवाई के बाद पहली विदेश यात्रा भले ही हो पर इस यात्रा का जो पैगाम विश्व के सामने जा रहा है, वह यह है कि मोदी की यात्राएं इंसानियत का पैगाम लेकर हो रही हैं। वह हर हाल में देश-दुनिया से आतंकवाद को मिटाने के लिए संकल्पित हैं। जी-समिट और साइप्रस में उन्होंने जिस प्रकार से आतंकवाद को नकारने के लिए शांति को प्राथमिकता दी वह साफ करता है कि भारत भी परमाणु हथियारों की होड़ से दूर है। निकोसिया में उन्होंने दुनिया को बताया कि भारत और यहां की सरकार पाकिस्तान और उसके जैसे देश जो दूसरे देशों की संप्रभुता पर हमला करते हैं, अवैध रूप से उसका हिस्सा अपने कब्जे में रखते हैं, उनके खिलाफ है। यह बात सर्वविदित है कि साइप्रस की काफी जमीन पर तुर्किए का अवैध कब्जा है और वह जब तब उसे धौंस दिखाता रहता है। यह उसी तरह की हरकत है जैसी हरकत पाकिस्तान भारत के साथ करता है। 
प्रधानमंत्री मोदी की इस पांच दिवसीय यात्रा को तीन नजरिए से देखना होगा, ऐसा करने से स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री मोदी जहां भी जा रहे हैं, वहां पर उनका एजेंडा बहुत साफ है। एक यह कि भारत किसी भी हद तक आतंकवाद के खिलाफ है और हर उस देश के साथ है, जो आतंकवाद से लड़ने के प्रति प्रतिबद्ध है। दूसरा नजरिया यह है कि भारत अब विकासशील राष्ट्रों की श्रेणी से ऊपर उठकर विकसित राष्ट्रों के समकक्ष पहुंचने की स्थिति में है। तीसरा नजरिया इस यात्रा से साफ नज़र आता है कि पाकिस्तान हर कहीं मदद की भीख मांग रहा है और जहां पर भी लड़ाई-झगड़े की बात होती है, वहीं पर उसके रहनुमा, खासकर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, बिलावल भुट्टो तथा आसीम मुनीर मदद के लिए धन की मांग करते हैं, साथ ही धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए उन्मादियों को प्रोत्साहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। इसके विपरीत भारत के प्रधानमंत्री आतंकवाद को मिटाने के लिए सहयोग का संदेश देते नज़र आते हैं। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद कहा है कि यह यात्रा उन देशों को धन्यवाद देने तथा आभार प्रकट करने का अवसर है, जिन्होंने आतंकवाद से निपटने में हमारी लड़ाई का समर्थन किया। मोदी की यह यात्रा इस मायने में भी थोड़ी अलग है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद 59 सांसदों के दलों ने 32 देशों की यात्रा कर दुनिया के सामने पाकिस्तान का धार्मिक उन्मादी तथा आतंकवादी चेहरा बेनकाब किया था। जब यह दल भारत लौट आया तो खुद उन दलों में शामिल नेताओं से बात करके उन्होंने विदेशी राजनीतिज्ञों का फीडबैक लिया। इस फीडबैक से भी मोदी की यात्रा में काफी रणनीतिक-कूटनीतिक लाभ की राह खुल सकती है। जब इज़रायल और ईरान में जंग छिड़ी है और दोनों देश अपनी पूरी ताकत से दूसरे देश को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ईरान को समर्थन देने के अतिरिक्त कहा है कि मुस्लिम वर्ल्ड इज़रायल के खिलाफ एकजुट हो जाए। जब दो देशों में जंग हो रही हो और दूसरे देश उसे रोकने के लिए प्रयास कर रहे हों, तब मुस्लिम वर्ल्ड का एकजुट होना, कहना क्या पाकिस्तान की आतंकवादी मानसिकता नहीं है? 
क्या वह दुनिया को दो संप्रदाय में बांटकर खुद का भला कराने की नहीं सोच रहा है? दूसरी तरफ जी-समिट को अधूरा छोड़कर ट्रंप भले ही चले गए हों, लेकिन वह भी आतंकवाद को पनाह देने वाले, परमाणु आतंक की धमकी देने वालों को सबक देना चाहते हैं। यही नहीं वह परमाणु हमले से दूसरे राष्ट्रों को सुरक्षित रखने के लिए हर स्तर पर जाने को तैयार हैं। जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया था, तो पाकिस्तान ने भी परमाणु बम की बात कर परमाणु आतंकवाद को फैलाया था। 
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा न केवल वैश्विक संबंधों को और मजबूत तथा पारदर्शी बनाएगी बल्कि इंसानियत का पैगाम भी देगी। अभी रूस-यूक्रेन तथा इज़रायल-ईरान एक दूसरे पर कब्ज़े के लिए लड़ रहे हैं और बांग्लादेश में जबरदस्त अशांति है। पाकिस्तान की हालत तो इतनी खराब है कि वहां के नेता जब भी किसी दूसरे देश में जाते हैं, तो सिर्फ दुत्कार के अतिरिक्त कोई मदद नहीं मिल पा रही है। पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसीम मुनीर को अमरीका में जिस प्रकार से विरोध का सामना करना पड़ा वह भी उसकी कूटनीतिक हार और बेइज्जती का एक हिस्सा माना जा सकता है। खुद पाकिस्तान अभी भी इसी से सहमा है कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर को स्थगित कहा है न कि समाप्त। 
ऐसी स्थिति में वह दूसरे देशों को समर्थन देने की बात करके यह बताना चाहता है कि उसकी स्थिति दूसरों की मदद करने के लिए बेहतर है। प्रधानमंत्री मोदी के बयान और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहवाज शरीफ के बयानों से भी स्पष्ट हो रहा है कि वह किस तरह का संदेश दे रहे हैं। जब इज़रायल और ईरान में हमला आरंभ हुआ तो भारत ने स्पष्ट तौर पर दोनों से शांति की बात कही, यह भी कहा कि दोनों ही उसके मित्र हैं। इसके विपरीत पाकिस्तान ने अशांति फैलाने के लिए मुस्लिम वर्ल्ड एक होने की बात कही। यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान पहले भारत के पहलगाम में अपने आतंकवादियों के सहयोग से सांप्रदायिकता फैलाने का प्रयास कर चुका है। सभी जानते हैं कि पहलगाम में धर्म पूछकर की गई हत्याओं का मतलब क्या था? 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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