क्रांति से काया-कल्प तक
हमें मालूम हो गया कि उनकी धरती के इस चौड़े सीने पर हमारे जैसे उठाईगीरों को कोई जगह नहीं मिलेगी। गुस्ताखी माफ, खुद ही हमने अपने आप को उठाईगीर कह दिया, जबकि हमें यहां कभी कुछ उठाने लायक लगा ही नहीं।
चन्द महापुरुषों से मुलाकात हुई है, जो मिलते ही हमसे चरण वन्दना की उम्मीद करने लगते हैं। नहीं कर पाते, तो हमें तुरंत अपने गुट से बाहर फेंक देते हैं। हमारे खिलाफ एकतरफा जंग का ऐलान कर देते हैं, लेकिन अब जो पहले ही आपके अखाड़े में पराजित बैठा हो, उसे जंग लड़ने के लिए कैसे उकसाओगे? ज़िन्दगी के कामयाबी से जीने के आपके कुछ असूल हैं, जो उम्र भर उन पर चल ही नहीं पाया, उसके खिलाफ आपने अपना फौज फांटा खड़ा भी कर लिया, तो क्या किया। जो आपके अखाड़े में उतरा ही नहीं, उसे आपके अखाड़े का भगौड़ा घोषित कर दिया, यह क्या किया?
वह मूर्ख था। उसने जो किताबों में पढ़ा था, उसे ही अपनी ज़िन्दगी में ढालने का प्रयास करता रहा, इसलिए कभी न उधर का हो सका, न इधर का। कामयाबी ने उसके कभी पग तो क्या माथा भी नहीं चूमा, और असफलता तो उसका परिचय बनी। उसके साथ कोई अतिवादी मानक डिग्रियां कैसे जोड़ देता?
हमने छक्कन से पूछा, ‘कि आप किस की बात कह रहे हैं, भाई साहब। कहीं हमारी और हमारे लिखने की बात तो नहीं कर रहे, जिसे कभी किसी ने पढ़ा तो है न, और लेखक मानने से हमेशा इन्कार कर दिया।’
इसके बावजूद आप मरते दम तक लिखने से बाज नहीं आये। वह अवश्य आश्वस्त हो गए होंगे, कि इस जन्मजात जनूनी का शुरू से कोई पेंच ढीला था, देख तो मरते दम तक ढीला ही रहा। उन्होंने कह दिया होगा।
अपने बारे में ऐसा सुनना कुछ अजीब नहीं लगता। हम शुरू से ही असाधारण नहीं थे, जिस काम में हाथ डालते अपनी अति-साधारणता से उसका गुड़ गोबर कर देते। अब लगता है हम अपनी ज़िन्दगी का किस्सा बयान नहीं कर रहे। इस देश की सड़क पर चलते हर सड़क छाप आदमी का किस्सा बयान कर रहे हैं। उसे बार-बार जो कहा जाता है, वह उस पर विश्वास कर लेता है। उसे कहा जाता है, कहा जाता रहेगा कि एक दिन तेरे भी अच्छे दिन आएंगे, और वह हर बार विश्वास कर लेगा, कि हां उसके अच्छे दिन आएंगे।
खेतों की फसल कटने की तरह जब वोट बटोरने का मौसम गुज़र जाएगा, तो वह देखेगा जो उसके अच्छे दिन ला रहे थे, वे स्वयं अच्छे दिनों को अपने बटुए में डाल कर ले गये, और उसके अच्छे दिन किसी दूर के भविष्य की तिथि के लिए स्थगित हो गए। फिलहाल जीने के लिए उसे किसी रियायती राशन के बाहर कतार लगानी पड़ेगी, और अपनी बारी के लिए मध्यस्थों की चिरौरी करनी होगी।यह मध्यस्थजन भी खूब होते हैं। साहिब जगह बदलने के साथ इनके नाम भी बदलते रहते हैं। कहीं इनके लिए सम्पर्क संस्कृति का सभ्य नाम दे दिया जाता है, और कभी इनके दलाली के धंधे को बाकायदा कानून-सम्भत ठहराने के प्रयास भी होते हैं।
आज सही सम्पर्क के बिना आप कुछ भी तो नहीं, बन्धु। थाने में चोरी की रपट लिखवाने से लेकर अपने लिए कोई छोटी-मोटी नौकरी जुटाने तक के लिए सही सम्पर्क जुटाना पड़ता है।
‘सम्पर्क बिना जग सून’ आज के युग का नया मूल मन्त्र है। असभ्य भाषा में इसे सिफारिश और सभ्य भाषा में इसे योग्यता की पहचान कह देते हैं।
योग्यता की यह पहचान पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले, तो युगानुसार हो जाती है। हर युग का अपना-अपना तेवर है। जैसे आजकल परिवारवाद को गाली देने का युग है, तो आगे बढ़ कर परिवारवाद को भरपूर गाली दे दो, लेकिन अपनी संतान, नाती-पोतों का भविष्य सुरक्षित करके। लोगों का क्या है, वह तो मान ही जाएंगे कि हर नियम के कुछ अपवाद होते हैं।परिवारवाद बुरा है, लेकिन आपका परिवार अपवाद है, क्योंकि उसकी विलक्षण योग्यता का कोई साथी नहीं। उसे तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी शासन की कुर्सी पेश करके दीवाली मनानी है, नहीं तो इस देश का दीवाला निकल जाएगा।
यह निर्विवाद सत्य है, बंधु। समाज, और राजनीति ही क्यों, साहित्य और ललित कला में भी जब तक यह न हो, कि ‘मैं सर्वोत्तम हूं’, कोई और सुनता ही नहीं।
‘कोई और से आपका क्या मतलब है?’ हमने छक्कन से पूछा।
लेखक हो तो अपने अनुयायी जुटाओ, समीक्षक पटाओ। कोई अभिनंदन नहीं करता तो अपने प्रकाशक से ही करवा लो। वह आपकी अद्वितीय रचना का राज तिलक कर दे। प्रशस्ति गायन उसकी नव प्रतिमाएं कर देंगी, जिन्हें उसी प्रकाशक से छपना है।
जो लेखन के लिए सही है, वही जीवन, और राजनीति के लिए भी सही है, बन्धु। आजकल वफादारी दिवंगत हो गई। पार्टी बदलना इस समय की अनिवार्य ज़रूरत है। जो आया राम है, वह कल आपका गया राम हो सकता है। ऐसा हुआ तो समझ लीजिये ये उसने समय की नब्ज़ को पहचान लिया। वह परिवार का भविष्य सुरक्षित कर जाएगा, और भाई भतीजावाद को गाली भी दे देगा।
जी हां, हम जानते हैं, आज भ्रष्टाचार से बड़ा और कोई दीमक नहीं, जो इस समाज और व्यवस्था को चाट रहा है। हम अपनी झोंपड़ी को महल में बदलने के बाद इसे अपने परिवेश में शून्य स्तर तक सहन करने की घोषणा कर देंगे। भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई होगी, ज़रूर होगी, लेकिन अपने प्रति-द्वदिन्यों की गद्दी छिन जाने के बाद, उन्हें भ्रष्ट घोषित करके। ऐसे ही चलता है बन्धु, नहीं तो पकड़े जाने पर यह कैसे कह सकेंगे, कि आपके साथ राजनीतिक बदलाखोरी हो रही है। इतना ही बस नहीं, राजनीतिक बदलाखोरी की इस चिल्लाहट में उसे कहीं ज़मानत मिल जाये, तो समझो वह नायक हो गया। अब उसके मुकद्दमे में तो तारीख पर तारीख पड़ेगी, और वह फिलहाल क्रांति का एक नया बिगुल बजाने में व्यस्त हो जाएगा। यूं क्रांति नहीं होगी तो परिवर्तन कैसे होगा, बन्धु!