इज़रायल-ईरान युद्ध की आग में फंसे 1.65 लाख भारतीय
इज़रायल और ईरान के बीच छिड़ी जंग में तकरीबन 40 हजार भारतीय फंस गए हैं। पढ़ने पढ़ाने के काम, व्यापार एवं दूसरे पेशेवर काम करने वाले तकरीबन 11 हजार भारतीय और इतने ही एनआरआई ईरान में रहते हैं। उधर इज़राइल में लगभग सवा लाख भारतीयों में से 85 हजार भारतीय मूल के और 35 हजार भारतीय प्रवासी रहते हैं। 12 हजार भारतीयों को अक्तूबर 2023 से मार्च 2025 के बीच काम करने का परमिट देकर अशांत इज़रायल भेजा गया था। उनकी विपदा के किस्से पहले भी हम सुन चुके हैं। आज उन पर फिर गाज है। तबाही ईरान में ज्यादा है पर फंसने और वहां से निकालने की गुजारिश करने वाले भारतीय छात्र, मजदूर, पेशेवर इज़रायल में अधिक हैं। भयभीत भारतीयों की इस गुहार पर कि ईराक और पाकिस्तान ने अपने लोगों को वापस बुला लिया, हमें भी सरकार बुला ले। भारतीय दूतावास ने ईरान और इज़रायल में रह रहे भारतीयों से अपील की है कि वे घबराएं नहीं, सभी सुरक्षित हैं। अनावश्यक आवाजाही से बचें और दूतावास के संपर्क में रहें। दूतावास क्षेत्र के हालात और अपने नागरिकों की सुरक्षा की लगातार निगरानी कर रहा है। भारत ने एडवाइजरी जारी करके हेल्पलाइन भी स्थापित कर दी। इस कवायद के बावजूद मैडीकल की पढ़ाई के लिए ईरान गए तमाम भारतीय छात्रों ने मीडिया पर अपनी परेशानी बयान की है। स्थिति सामान्य नहीं है और आगे चलकर स्थितियां और खराब हो सकती हैं; क्योंकि ईरान फिलहाल चुप नहीं बैठेगा।
विगत कुछ बरसों में किंचित भिन्नताओं के साथ इस तरह की परिस्थितियां कई बार देखने में आयी हैं, जब वैध-अवैध प्रवासी भारतीय विदेश में किसी न किसी वजह से हलकान दिखे, खास तौर पर युद्ध या हिंसा की वजह से। आज भी भारत के नागरिक अधिकांश देशों में शोषण, अत्याचार, अवसरों में भेदभाव आदि के शिकार बन रहे हैं। इसके बावजूद वे वहां पर धैर्य के साथ टिके हुए संघर्षरत हैं। काम की तलाश में गए भारतीय कामगारों का शोषण तो आम बात है। सबब यह कि युद्ध हो या शांति कुछ भारतीय कठिन प्रतिकार लगातार झेलते हैं, पर बात तब ज्यादा खतरनाक और चिंतास्पद हो जाती है, जब बात सीधी जान पर बन आये। प्रवासियों या भारतीय मूल के लोगों का आए दिन किसी न किसी अशांत, युद्धग्रस्त अथवा गृहयुद्ध के बीच फंस जाने की आवृत्ति इधर तेजी से बढ़ी है। कभी रूस, यूक्रेन में तो कभी ईरान और इजराइल में। इसी तरह कभी अफ्रीकी या खाड़ी के देशों में रहने वाले भारतीय इसकी मार झेल रहे हैं इसलिए जिस तरह की एडवाइजरी इज़राइल-ईरान के युद्ध को लेकर वहां के भारतीयों के लिए जारी हुई, वह आज विदेश मंत्रालय और विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों की सामान्य कवायद बन गई है।
युद्ध व दूसरे तरह की राजनीतिक अस्थिरता ने ही नहीं भारतीय दूसरे देशों में वहां के राष्ट्रवाद प्रेरित नीतियों के भी बेतरह शिकार बन रहे हैं। भले ही वे छात्र हों या व्यापारी। मौजूदा भू-राजनीतिक हालात ऐसे हैं कि आये दिन कोई न कोई देश युद्धग्रस्त और कोई न कोई क्षेत्र अशांत हो जाता है।
ईरान-इज़रायल में वैध भारतीयों के अलावा 12 लाख से ज्यादा भारतीय अवैध रूप से खाड़ी, पश्चिम एशियाई देशों, मलेशिया, इंडोनेशिया तथा कुछ अफ्रीकी देशों में रह रहे हैं। इन देशों में ये अमूमन अशांति के शिकार बनते हैं। पश्चिम एशिया के 15 प्रमुख देशों में से कई विगत 25 बरसों से या तो युद्धरत हैं अथवा गृहयुद्ध की हिंसा से अशांत बने हुए हैं। गजा या फिलिस्तीन, लेबनान, यमन, सीरिया, तुर्किए की 75 प्रतिशत आबादी इसे बरसों से झेल रही है, तो इसके साथ इन संघर्षों से कोई मतलब न रखने वाले यहां के कतिपय भारतीय भी। इसके अलावा बहरीन, कुवैत, सऊदी अरब, जोर्डन में रहते हुए भी विभिन्न जोखिमों के कारण तनाव में हैं और वहां के लाखों वैध भारतीय नागरिक भी। सूड़ान, नाइजीरिया जैसे देशों की राजनीतिक अस्थिरता भारतीयों के लिए सांसत हैं, तो अफगानिस्तान भी कहां कम है। कथित तौर पर शांत अमरीका से रिश्ते प्रगाढ़ होने के दावों के बीच जिस तरह वहां छात्र अवसरों से वंचित हो रहे हैं, भारतीय प्रवासियों के साथ जो व्यवहार हो रहा है, वह जगजाहिर और कतई चिंतनीय है। कनाडा में भी भारतीयों की स्थिति भी बहुत सुखद नहीं हैं। वह तो दूर पास के देशों में देखें। चीन से सियासी तौर पर तनावपूर्ण संबंधों के चलते वहां रह रहे ढेरों भारतीयों को तनाव में रहना होता है। रूस में भारतीयों को धोखे से भाड़े का सैनिक बनाकर भेजने के कितने ही मामले विगत में सामने आ चुके हैं और इस स्थिति तथा युद्ध क्षेत्र से उन्हें उबारने के भी। हजारों छात्र वहां से पलायन कर चुके हैं।
भारत वह देश है जिसके सबसे ज्यादा लोग विदेशों में बसते हैं। वर्तमान में लगभग चार करोड़ भारतीय मूल के लोग विभिन्न देशों में निवास करते हैं। इससे दोगुनी से ज्यादा संख्या अवैध प्रवासियों की है। वैध हो या वैध प्रवास, सबसे कड़ी वजह आर्थिक अवसरों की तलाश है। दूसरी ओर इसके सामाजिक, राजनीतिक और घरेलू कारण भी हैं। नि:संदेह उच्च और विशिष्ट शिक्षा भी। मेडागास्कर, बुरकीनाफासो जैसे अजान जगहों से लेकर अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे जानी मानी जगहों तो संयुक्त राज्य अमीरात और बर्मा तक हर जगह पाये जाने वाले भारतीय प्रवासियों की स्थिति हर जगह एक जैसी नहीं है। वैध तरीके से जाकर रहने वाले अधिकतर व्यवसायी और पेशेवर विदेशों में सम्मानजनक जीवन जीते हैं, भारत की शानदार वैश्विक छवि का लाभ उठाते हैं तो कुछ अवैध रूप से पहुंचकर कठिनाइयों से जूझते हैं पर जब बात युद्धग्रस्त और अशांत क्षेत्रों में रहने की आती है तो क्या अवैध क्या वैध सभी सांसत में आ जाते हैं। नि:संदेह संबंधित देश के नागरिक भी सांसत में होते हैं, लेकिन भारतीय प्रवासी होने के नाते उनके बारे में हमारी चिंता जायज है। आपदाकाल में मजदूरी या शिक्षा के लिए गए भारतीय जब किसी देश में राजनीतिक अस्थिरता या युद्ध छिड़ने पर फंस जाते हैं, तो सरकार ने उन्हें बचाने में कई बार सराहनीय तत्परता दिखाई है। 2015 में यमन संकट के समय भारत सरकार ने ऑपरेशन ‘राहत’ चलाया था और 5000 से अधिक भारतीयों को वहां से बाहर निकाला था। इराक और सीरिया में काम की तलाश में गए कई भारतीय युद्ध और आतंकवाद की चपेट में आए तो सहायता की। 2022 में यूक्रेन युद्ध के दौरान वहां लगभग 20,000 भारतीय, जिसमें ज्यादातर छात्र थे, बाहर निकाला तो 2023 के सूडान संकट में भी फंसे भारतीयों को निकाल लायी।
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