मध्य पूर्व : इज़रायल-ईरान युद्ध

मध्य पूर्व, जिसमें लीबिया, इराक, ईरान, जॉर्डन, सऊदी अरब, बहरीन, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात और इज़रायल आदि देश शामिल हैं, के क्षेत्र में अब इज़रायल और ईरान के बीच सप्ताह भर से युद्ध बेहद  तीव्र होता दिखाई दे रहा है। इस क्षेत्र में इज़रायल 80 वर्ष पहले अस्तित्व में आया था, इसे अरब देशों के साथ बड़े टकराव से गुज़रना पड़ा। समय-समय ज्यादातर अरब देशों ने इज़रायल के साथ समझौते कर लिए परन्तु ईरान और उसके कुछ अन्य भागीदार देशों ने इज़रायल का विरोध जारी रखा। ईरान ने तो पिछले लगभग साढ़े चार दशकों से इज़रायल का अस्तित्व  मिटा देने की घोषणा की है। वहां की सरकार समझती है कि यूरोपीयनों विशेष रूप से अंग्रेज़ों ने इज़रायल के इस क्षेत्र में विश्व भर के यहूदियों को लाकर बसा दिया, जबकि इस धरती के पहले हकदार ़िफलिस्तीन के लोग हैं, जिन्हें यहां से ज़बरन निकाल कर अलग-अलग देशों में शरणार्थी बनने के लिए विवश कर दिया गया था।
वर्ष 1979 के समय ईरान में वहां के शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के शासन का तख्ता पलट करके रोहुल्ला खामेनेई के नेतृत्व में ईरान को मुस्लिम देश घोषित कर दिया गया था। उसी समय से ही इज़रायल और ईरान की दुश्मनी जारी है। ईरान ने हमास नामक इज़रायल के विरुद्ध लड़ रहे आतंकी संगठन को लगातार मज़बूत किया है, जिसने दस वर्ष पहले गाज़ा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया था, जहां लगभग 25 लाख फिलिस्तीनी लोग रहते थे। इन्हें लगातार ईरान से हथियार और अन्य प्रत्येक तरह की सहायता मिलती रही है। इसके अतिरिक्त ईरान ने लेबनान में बड़े मज़बूत आतंकी संगठन हिज़बुल्लाह को भी इज़रायल के विरुद्ध लगातार सहायता दी है। इसी तरह यमन में हूतियों को भी ईरान की ओर से पूरी सहायता दी जाती रही है। ईरान के पास भारी मात्रा में तेल और प्राकृतिक खनिज पदार्थों का भंडार है, जिसके दम पर उसने अपनी ताकत में लगातार वृद्धि की है और पिछले एक दशक से भी अधिक समय से वह परमाणु बम बनाने के लिए बड़ी योजनाबंदी करता रहा है। इस तैयारी को इज़रायल अपने अस्तित्व के लिए लगातार ़खतरा मानता रहा है।
विगत लम्बी अवधि से अमरीका की भी यह नीति रही है कि वह ईरान को परमाणु हथियार बनाने से हर स्थिति में रोके। मध्य पूर्व के ज्यादातर देश ईरान के विरोध में खड़े दिखाई देते रहे हैं। इनमें ज्यादातर मुस्लिम आतंकवादी संगठनों को अपने देशों के लिए ़खतरा मानते रहे हैं। इसलिए सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन, जॉर्डन और संयुक्त अरब अमीरात ने लगातार शक्तिशाली देश अमरीका को साथ देने की गुहार लगाई है। इराक में भी सद्दाम हुसैन के पतन के बाद अमरीका ने अपने हवाई ठिकाने बनाए हुए हैं। इन सभी देशों में आज अमरीका के 50,000 से भी अधिक सैनिक तैनात हैं। इसके साथ ही इन देशों के समुद्रों में भी अमरीकी युद्ध पोत लगातार गश्त करते रहते हैं। अमरीका के राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रम्प ने ईरान को अपना परमाणु कार्यक्रम छोड़ने की चेतावनी दी थी। उसके बाद दोनों देशों में इस कार्यक्रम को सीमित करने के लिए लम्बी बातचीत भी होती रही,जो किसी परिणाम पर नहीं पहुंची, परन्तु बातचीत का दौर अभी जारी ही था कि इज़रायल ने ईरान से परमाणु ़खतरों की आशंका के कारण उसके सैन्य और परमाणु ठिकानों के साथ-साथ बड़े अधिकारियों और परमाणु वैज्ञानिकों को मिसाइलों से निशाना बनाया और मिसाइल हमलों से उन्हें खत्म कर दिया। दोनों देशों में यह युद्ध इस कारण भी हवा में लड़ा जा रहा है, क्योंकि दोनों की सीमाएं एक-दूसरे से दूर हैं। इज़रायल के इन हमलों की प्रतिक्रिया स्वरूप ईरान ने भी उस पर बड़े मिसाइली हमले किए हैं। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के सबसे बड़े नेता अयातुल्ला खामेनेई को आत्मसमर्पण करने की धमकी दी है, जिसे खामेनेई ने रद्द कर दिया है यह भी कहा है कि ईरान अपनी पूरी शक्ति के साथ दुश्मन का विनाश करेगा।
दूसरी तरफ मध्य पूर्व में लाखों ही भारतीय नागरिक अपने कामकाज़ के लिए गए हुए हैं। इनके अतिरिक्त लाखों ही भारतीय विद्यार्थी इन देशों में मैडीकल और अन्य विषयों की पढ़ाई भी कर रहे हैं। वीरवार को भारत सरकार की ओर से 110 विद्यार्थियों को दिल्ली लाया गया है। शेष रहते विद्यार्थियों को भी वह ईरान के पड़ोसी देश आर्मेनिया और तुर्कमेनिस्तान के रास्ते लाने के यत्न में है। अब तक इस युद्ध में ईरान में 224 और इज़रायल में 24 लोगों को मौत हो चुकी है। दोनों देश एक-दूसरे पर लगातार मिसाइलों और ड्रोनों से हमले कर रहे हैं। इज़रायल की ओर से विशेष रूप से ईरान के परमाणु प्लांटों और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया जा रहा है। यह सुनिश्चित बनता जा रहा है कि यदि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किए गए यत्नों से इस युद्ध को न रोका गया तो इससे व्यापक स्तर पर विनाश हो सकता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

#मध्य पूर्व : इज़रायल-ईरान युद्ध