साइप्रस की धरती से मोदी का तुर्की को सख्त संदेश

यह दो दशक से अधिक समय बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली साइप्रस यात्रा है। इससे पहले 1983 में इंदिरा गांधी और 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी वहां गए थे। साथ ही आतंकवाद के खिलाफ भारत की सफल सैन्य कार्रवाई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद प्रधानमंत्री मोदी की पहली विदेश यात्रा है। साइप्रस ने पहलगाम आतंकी हमले की निंदा की थी और संकेत दिया था कि वह यूरोपीय संघ स्तर की चर्चाओं में पाकिस्तान से उत्पन्न सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे को उठाएगा। विदेश मंत्रालय के अनुसार यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों को गहन करने, भू-मध्यसागरीय क्षेत्र और यूरोपीय संघ के साथ भारत के जुड़ाव को मज़बूत करने के लिए दोनों देशों की साझी प्रतिबद्धता की पुष्टि करेगी।
जानकारों की माने तो प्रधानमंत्री मोदी का साइप्रस दौरा सिर्फ  दो देशों के बीच दोस्ती बढ़ाने के लिए ही नहीं है, बल्कि तुर्की को एक सख्त संदेश भी देना है। दरअसल तुर्की पिछले कुछ समय से भारत के खिलाफ  खुलकर बोलता रहा है, खासकर कश्मीर के मुद्दे पर और पाकिस्तान को सैन्य और कूटनीतिक समर्थन दे रहा है। भारत इसका जवाब तुर्की के विरोधी देशों जैसे ग्रीस, आर्मेनिया, मिस्र और अब साइप्रस के साथ अपनी दोस्ती मज़बूत करके दे रहा है। भारत इन देशों के साथ न सिर्फ व्यापारिक, बल्कि सामरिक संबंध भी मज़बूत कर रहा है। यह एक तरह से तुर्की को चारों तरफ  से घेरने की रणनीति है। भारत और साइप्रस की दोस्ती पुरानी और गहरी है। साइप्रस ने हमेशा भारत का साथ दिया है। 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण के समय, 2008 में भारत-अमरीका परमाणु समझौते में और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए साइप्रस ने खुलकर समर्थन किया। आतंकवाद और कश्मीर जैसे मुद्दों पर साइप्रस ने कभी पाकिस्तान या तुर्की का साथ नहीं दिया। दूसरी तरफ भारत भी साइप्रस की एकता और अखंडता का समर्थन करता है। भारत चाहता है कि साइप्रस का मसला संयुक्त राष्ट्र के नियमों और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत हल हो। प्रधानमंत्री मोदी का दौरा इस दोस्ती को और मज़बूत करेगा। दोनों देशों के बीच व्यापार, संस्कृति और शायद रक्षा सहयोग को भी बढ़ावा मिलेगा।
तुर्की साइप्रस जैसे छोटे द्वीप को बड़ा समुद्री क्षेत्र (ईईजेड) मिलने के पक्ष में नहीं हैं जबकि अंतर्राष्ट्रीय कानून इसके खिलाफ है। तुर्की ने साइप्रस के समुद्री क्षेत्र में अपने जहाज़ भेजकर गैस खोजने की कोशिश की जिससे साइप्रस, ग्रीस और यूरोपीय संघ के साथ उसका तनाव बढ़ गया। भारत का साइप्रस के साथ खड़ा होना तुर्की के लिए साफ संदेश है कि भारत उसके खिलाफ उन देशों का समर्थन करेगा, जो तुर्की की आक्रामकता से परेशान हैं।
साइप्रस की भौगोलिक स्थिति इसे बहुत खास बनाती है। यह भूमध्य सागर में तुर्की के दक्षिण में, लेवांत (सीरिया-लेबनान-फिलिस्तीन.इजरायल) के पश्चिम में और स्वेज नहर के पास है। यानी ये यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बीच एक अहम पड़ाव है। भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (आईएमईसी) में साइप्रस की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। आईएमईसी एक ऐसा व्यापारिक रास्ता है, जो भारत को मध्य पूर्व के रास्ते यूरोप से जोड़ेगा। साइप्रस इस कॉरिडोर का एक अहम हिस्सा बन सकता है, क्योंकि यह व्यापार, ऊर्जा और रणनीतिक प्रभाव के लिए एक शानदार जगह है।
जानकारी के अनुसार साइप्रस के पास 12-15 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस के भंडार हैं। ये भंडार भले ही वैश्विक स्तर पर बहुत बड़े न हों, लेकिन साइप्रस जैसे छोटे देश के लिए बहुत मायने रखते हैं। यूरोप रूस से गैस कम लेना चाहता है और साइप्रस इसमें मदद कर सकता है, लेकिन तुर्की की दखलंदाज़ी की वजह से साइप्रस को अपनी गैस निर्यात करने में दिक्कत होती है। साइप्रस अब ग्रीस या मिस्र के रास्ते गैस निर्यात करने की योजना बना रहा है ताकि तुर्की को बाइपास किया जा सके। भारत अगर साइप्रस के साथ ऊर्जा, व्यापार या बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाता है तो यह तुर्की के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दाआन ने कई बार कश्मीर जैसे मुद्दों पर भारत के खिलाफ  बयान दिए हैं। वह खुद को इस्लामिक दुनिया का नेता दिखाने की कोशिश करते हैं और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत की आलोचना करते हैं। तुर्की ने पाकिस्तान के साथ अपनी सैन्य और कूटनीतिक साझेदारी भी बढ़ाई है। भारत इसका जवाब तुर्की के विरोधी देशों के साथ दोस्ती बढ़ाकर दे रहा है। साइप्रस के अलावा भारत ग्रीस, आर्मेनिया और मिस्र के साथ अपने रिश्ते मज़बूत कर रहा है। ये सभी देश तुर्की के साथ किसी न किसी तरह के विवाद में हैं। मोदी का साइप्रस दौरा तुर्की के लिए साफ  संदेश है कि भारत उसकी हरकतों का जवाब देना जानता है। साइप्रस यूरोपीय संघ का सदस्य है और भारत का पुराना दोस्त है। इस दौरे से दोनों देशों के बीच व्यापार, संस्कृति और रक्षा सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही साइप्रस आईएमईसी में भारत के लिए एक अहम साझेदार बन सकता है।
साइप्रस दौरा और जी-7 में हिस्सा लेना दोनों ही भारत की उस रणनीति का हिस्सा हैं, जिसमें वह वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति मज़बूत कर रहा है। तुर्की जैसे देशों को घेरने के साथ-साथ भारत उन देशों के साथ दोस्ती बढ़ा रहा है, जो उसके हितों का समर्थन करते हैं। साइप्रस के साथ भारत का यह रिश्ता न सिर्फ तुर्की को जवाब है, बल्कि भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत का भी प्रतीक है। (अदिति)

#साइप्रस की धरती से मोदी का तुर्की को सख्त संदेश