नकदी की जांच से न्यायाधीश वर्मा की मुश्किलें बढ़ीं
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आधिकारिक निवास (30 तुगलक क्रीसेंट, नई दिल्ली) के स्टोर रूम में 14 मार्च 2025 की रात को लगभग 11:35 पर आग लगी थी। इस घटना के एक-दो दिन बाद ही यह खबर फैलने लगी कि आग बुझाने के दौरान दमकल विभाग के कर्मचारियों को स्टोर रूम में बोरियों में भरे हुए 500 रुपये के नोट मिले जिनमें से काफी आधे जल चुके थे। इस खबर का जब खंडन किया गया तो घटनास्थल का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें बहुत बड़ी मात्रा में अधजले करंसी नोटों को देखा जा सकता था। उच्च न्यायपालिका का ऐसे गंभीर व चिंताजनक विवाद में लिप्त होना दुर्लभ था। हालांकि न्यायाधीश वर्मा का बचाव तर्क था कि स्टोर रूम पर उनका कोई नियंत्रण नहीं था, लेकिन प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की मांग थी कि घटना व आरोपों की गहन जांच की जाये। इसलिए तीन न्यायाधीशों का एक जांच पैनल गठित किया गया, जिसने अब अपनी रिपोर्ट प्रेषित की है।
दस दिन, 55 गवाह, अनेक बैठकों व घटनास्थल का मौका मुआयना करने के बाद जांच पैनल ने अपनी रिपोर्ट में न्यायाधीश वर्मा के इस बचाव तर्क को खारिज कर दिया है कि उनके आधिकारिक निवास के स्टोररूम पर उनका कोई नियंत्रण नहीं था। पैनल का कहना है कि परिवार के सदस्यों की अनुमति के बिना कोई भी घर के अंदर प्रवेश नहीं कर सकता था। पैनल का सवाल यह है कि अगर आग शोर्ट सर्किट के कारण लगी थी तो पुलिस में शिकायत दर्ज क्यों नहीं करायी गई? पैनल ने हर गवाह के बयान को वीडियो रिकॉर्ड किया है ताकि उसकी सत्यता को भविष्य में कहीं भी चुनौती न दी जा सके और इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए भी कि बयान ‘सम एंड सब्सटांस’ (सार) सही रिकॉर्ड किया गया है। ‘कोठी में कैश’ जांच में सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आयी है कि न्यायाधीश वर्मा के आधिकारिक निवास के स्टोर रूम में जो बोरियों में भरे हुए 500 के अधजले नोट थे, उनको 15 मार्च 2025 को पौ फटने से पहले ‘विश्वसनीय सेवकों’ द्वारा निजी सचिव की निगरानी में वहां से हटा दिया गया। यह काम निजी सचिव द्वारा न्यायाधीश वर्मा से बात करने के बाद किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मज़बूत आनुमानित साक्ष्यों की मौजूदगी में यह कमेटी यह मानने के लिए मजबूर है कि न्यायाधीश वर्मा के घरेलू स्टाफ के सबसे विश्वसनीय कर्मचारी स्टोर रूम से जले हुए नोटों को हटाने में लिप्त थे, जब वहां से दमकल विभाग व पुलिस विभाग के कर्मी चले गये थे।’
जांच पैनल की रिपोर्ट के इतने हिस्से से ही स्पष्ट हो जाता है कि न्यायाधीश वर्मा के आधिकारिक निवास के स्टोररूम में जो बोरियों में भरा हुआ बड़ी मात्रा में बेहिसाब (अनअकाउंटिड) अधजला रुपया था, उसे दमकल व पुलिस विभाग के कर्मचारियों के घटनास्थल से जाने के बाद न्यायाधीश वर्मा से बात करने के बाद उनके निजी सचिव की निगरानी में उनके अति विश्वसनीय घरेलू सेवकों ने वहां से हटाया। यह साक्ष्यों को मिटाना हुआ। इससे यह भी साबित होता है कि न्यायाधीश वर्मा का अपने आधिकारिक निवास के स्टोररूम पर पूर्ण नियंत्रण था और उनके व उनके परिवार के सदस्यों की अनुमति के बिना उनके आधिकारिक निवास में कोई प्रवेश नहीं कर सकता था। इन हालात में उचित तो यही रहेगा कि न्यायाधीश वर्मा तुरंत प्रभाव से अपने पद से इस्तीफा दे दें और महाभियोग की प्रतीक्षा न करें जिसे संसद के मानसून सत्र में लाये जाने की चर्चा ज़ोरों पर है।
गौरतलब है कि मीडिया में जब यह खबर आंधी की तरह फैली कि न्यायाधीश वर्मा के घर से भारी मात्रा में नकदी मिली है, जिसका 15 से 100 करोड़ रुपये का अंदाज़ा लगाया गया, तो सुप्रीम कोर्ट बहुत तेज़ी से हरकत में आया था। उसने न्यायाधीश वर्मा का इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया था, जहां से उन्हें पहले दिल्ली ट्रांसफर किया गया था। इलाहाबाद की बार एसोसिएशन ने इस ट्रांसफर का विरोध किया यह कहते हुए कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ‘ट्रैश बिन’ (कूड़ेदान) नहीं है।
जांच पैनल ने अपनी सिफारिश में कहा है, ‘रिकॉर्ड किये गये सीधे व इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को मद्देनज़र रखते हुए यह कमेटी दृढ़ता के साथ इस दृष्टिकोण की है कि भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश के 22-03-2025 के पत्र में जो आरोप उठाये गये हैं, उनमें पर्याप्त तत्व है और जो अनियमितता पायी गई है वह काफी गंभीर है कि न्यायाधीश यशवंत वर्मा, इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्त्रिया आरंभ की जाये।’
अब देखना यह है कि न्यायाधीश वर्मा स्वयं इस्तीफा देकर हट जाते हैं या संसद के मानसून सत्र में अपने खिलाफ कार्रवाई का इंतजार करते हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर