भाजपा-जजपा गठबंधन से आशाएं

हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की ओर से मनोहर लाल खट्टर के मुख्यमंत्री के तौर पर एवं जननायक जनता पार्टी की ओर से दुष्यन्त चौटाला द्वारा उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ लिये जाने से प्रदेश की राजनीति में एक नये युग की शुरुआत हुई है। मनोहर लाल खट्टर ने निरन्तर दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, और प्रदेश की राजनीति में यह पहली बार है कि जब भाजपा के नेतृत्व में दूसरी बार कोई ़गैर-कांग्रेसी सरकार बनने जा रही है। दुष्यन्त चौटाला हरियाणा में छठे उप-मुख्यमंत्री बने हैं। विगत 24 अक्तूबर को हरियाणा विधानसभा के त्रिशंकु चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद से ही यह स्पष्ट हो गया था कि प्रदेश में एकाकी तौर पर किसी दल द्वारा सरकार न बना पाने पर भाजपा और जननायक जनता पार्टी के बीच गठबंधन होने की प्रबल सम्भावना है, और यही गठबंधन अगली सरकार का गठन करेगा। गठबंधन की विधिवत घोषणा और दोनों दलों द्वारा न्यूनतम सांझा कार्यक्रम पर सहमति बनने के अगले ही दिन दोनों दलों के शीर्ष नेताओं द्वारा पद एवं गोपनीयता की शपथ लिये जाने से बाकायदा सरकार का गठन भी हो गया।
विगत 21 अक्तूबर को प्रदेश विधानसभा हेतु सम्पन्न हुए चुनावों के तत्काल बाद यद्यपि भाजपा के लिए प्रचंड बहुमत की भविष्यवाणियां की गई थीं, परन्तु चुनाव परिणामों की घोषणा ने एक ओर जहां कांग्रेस को पिछली विधानसभा की संख्या के दोगुणा से भी अधिक सीटें प्रदान कर दीं वहीं पहली बार चुनाव लड़ रही नव-गठित जननायक जनता पार्टी के 10 सदस्य चुनाव जीत गये जिनमें से 6 विधायक अकेले चौटाला परिवार से हैं। इन 6 विधायकों में एक जेल में बंद अजय चौटाला की धर्म-पत्नी और जजपा के अध्यक्ष दुष्यन्त चौटाला की माता नैना चौटाला हैं। जैसा कि प्राय: परम्परा है, देश के जितने भी राज्यों में क्षेत्रीय दल सक्रिय हैं, उनमें से अधिकतर पारिवारिक धरातल तक सीमित हैं, और इसी परम्परा की एक और कड़ी सिद्ध हुआ है जजपा प्रत्याशियों में से चौटाला परिवार के 6 सदस्यों का कामयाब हो जाना। चुनाव पूर्व के सर्वेक्षणों को धत्ता बताते हुए बेशक भाजपा को पिछली विधानसभा वाली संख्या से कम सीटें मिलीं, परन्तु यह संख्या इतनी तो अवश्य थी कि सरकार भाजपा के नेतृत्व में ही बनती। अत: दो धुर-विरोधी राजनीतिक दलों के बीच गठबन्धन सरकार बन जाने से नि:संदेह रूप से प्रदेश के विकास पथ पर अनिश्चितता के बादल तो अवश्य दिखाई देते रहेंगे। दोनों दलों की अपनी नीतियां और अपने कार्यक्रम हैं। दोनों की विकास प्राथमिकताएं भी भिन्न हैं जिनका प्रकटावा दोनों दलों के नेताओं ने चुनावों से पूर्व विभिन्न प्रचार धरातलों पर किया भी था। दोनों दलों के नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान एक-दूसरे के विरुद्ध इतना अधिक विष-वमन किया था, कि इनके एक साथ, एक मंच पर एकत्रित होने की कल्पना भी कदाचित नहीं की जा सकती थी। इसके बावजूद यदि ये दल सत्ता-मोह में एक-दूसरे के साथ गलबहियां डालने को बाध्य हुए हैं, तो यह इस देश की राजनीति का एक विडम्बना-पक्ष ही कहा जा सकता है। ऐसे गठबन्धनों के समक्ष प्राय: राष्ट्र-हित, समाज-हित और जन-हित जैसे मुद्दे गौण हो जाते हैं, और सत्ता-समीकरण उभर कर सामने आ जाते हैं। ऐसी स्थितियां बेशक किसी भी लोकतंत्र के लिए स्वस्थ चिन्ह नहीं हो सकतीं, परन्तु लोकतंत्र में व्यवस्था को जैसे-कैसे भी हो, चलना ही पड़ता है। इसी के दृष्टिगत हरियाणा में चुनाव परिणाम बेशक त्रिशंकु रहे हों, परन्तु किसी न किसी धरातल पर सरकार का गठन होना ही था। चौटाला परिवार की हुड्डा परिवार के साथ पुरानी तनातनी है। दुष्यन्त चौटाला और भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बीच निजी वैमनस्य भी है। अत: शेष यही विकल्प बचता था कि भाजपा और जजपा मिल कर सरकार बनायें।
हम समझते हैं कि चुनावी मतभेदों और प्रचार के दौरान एक-दूसरे की टांग खिंचाई के बावजूद, अब जब इन दोनों दलों ने मिल कर चलने का फैसला किया है, तो राजनीति और नैतिकता दोनों की इतनी-सी मांग है, कि कम से कम देश, समाज और आम जन से जुड़े मुद्दों पर ये दल अवश्य सहमति बनाए रखें। लोगों ने अवश्य कुछ आशाओं को जोड़ कर ही मतदान किया था। प्रदेश के विकास हितों की मांग भी यही है कि जहां तक हो सके, दोनों दल निजी हितों को जन-हित पर भारी न पड़ने दें। लोगों की आशाओं, आकांक्षाओं पर खरा उतरना दोनों के लिए पहला कर्त्तव्य समझा जाना चाहिए। प्रदेश में शांति-व्यवस्था बनी रहनी चाहिए, और विकास के कार्यों को प्रभावित नहीं होने देना चाहिए। यह भी एक अच्छा चिन्ह है कि 31 सीटों के साथ कांग्रेस एक सशक्त विपक्ष बन कर उभरी है। हम समझते हैं कि सत्ता-पक्ष और विपक्ष यदि अपनी-अपनी भूमिका को ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ निभाते हैं तो प्रदेश में दो विपरीत-ध्रुवीय गठबन्धन की सरकार होने के बावजूद हरियाणा विकास और उन्नति के पथ पर तेजी से अग्रसर हो सकता है। इस गठबंधन से ऐसी ही आशाएं एवं आकांक्षाएं वाबस्ता की जा सकती हैं। ऐसी ही धारणा के साथ यदि ये दोनों दल राजनीतिक मंच पर आगे बढ़ते हैं, तो न केवल यह कार्य उनके अपने पार्टी-हित में होगा, अपितु प्रदेश में एक नई नज़ीर भी सिद्ध हो सकते हैं।