खतरे की घंटी

धान की कटाई के बाद अब तक दिन-प्रतिदिन खेतों में पराली को जलाने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है। पंजाब भट्ठी में तपता नज़र आ रहा है। वायु की गुणवत्ता का सूचकांक यदि 200 को पार कर जाए तो चिंता पैदा होना स्वाभाविक है। राज्य में कई स्थानों पर यह सूचकांक 200 से बढ़ कर 300 के आस-पास पहुंचने लगा है। पंजाब रीमोट सैंसिंग केन्द्र, जिससे खेतों को आग लगाने संबंधी विस्तृत रिपोर्ट मिल जाती है, के अनुसार अब तक आग लगाने की घटनाएं 20 हज़ार के  आस-पास पहुंच चुकी हैं। अधिकतर अस्पतालों की सूचनाओं के अनुसार सांस और फेफड़ों की बीमारियों के मरीज़ बढ़ते जा रहे हैं। इनमें से अधिकतर मरीज़ ग्रामीण क्षेत्रों से आने शुरू हो गए हैं। इसका बड़ा कारण खेतों में जलाई जा रही धान की पराली है। सूचना के अनुसार पिछले बुधवार 30 अक्तूबर को एक दिन में आग लगाने के 3135 मामले सामने आए हैं। हरियाणा का भी यही हाल दिखाई देता है। करोड़ों की जनसंख्या वाले दिल्ली राज्य में अगर आम आदमी पार्टी पंजाब और हरियाणा भवनों के समक्ष तबाही लाती वायु के रोष स्वरूप प्रदर्शन करने की घोषणा करती है, तो पंजाब के मुख्यमंत्री इस को राजनीतिक ड्रामेबाज़ी कहते हैं। कैप्टन साहिब का बयान है कि दिल्ली में औद्योगिक धुएं और यातायात की भीड़-भाड़ के कारण वायु दूषित हुई है। इसमें पंजाब का कोई दोष नहीं है, जबकि सूचकांक के अनुसार दिल्ली राज्य में हरियाणा और पंजाब में खेतों में पराली को लगाई जाती आग के कारण वायु की गुणवत्ता में 35 प्रतिशत असर पड़ा है। यदि पंजाब सरकार ऐसे दावे करती है तो आज राज्य में किसी भी तरह खेतों को आग लगने पर घने धुएं के बादल इसकी गवाही देते हैं। इसलिए राज्य सरकार के कई माह से यत्न जारी हैं। किसानों को प्रत्येक स्तर पर समझाने के पूरे प्रयास जारी रहे हैं। 500 करोड़ रुपए से अधिक की मशीनरी सस्ते मूल्यों पर किसानों को दी गई परन्तु किसानों की शिकायत वहीं की वहीं रही। किसान यूनियन ने किसानों को समझाने और सरकार को इसका समय पर योग्य हल निकालने की तत्परता दिखाने के बिना ही एक तरह से किसानों को इस काम के लिए प्रोत्साहन दिया, जिस कारण आज पंजाब के प्रत्येक ज़िले से ऐसी ही सूचनाएं मिल रही हैं। किसानों को इस बात हेतु भी समझाया गया कि इस बात का प्रभाव अपने घरों, परिवारों, गांवों और कस्बों पर अधिक पड़ता है। ऐसा करके वह अपने परिवार और लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। परन्तु हम महसूस करते हैं कि जहां सरकार अपने मिशन तंदरुस्ती में पूरी तरह असफल हुई है, वहीं किसानों ने समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझी। वह कुछ न कुछ बहाने बना कर ऐसा सिलसिला जारी रख रहे हैं। 
यह बात सुनिश्चित है कि यदि मन में समाज के स्वास्थ्य के प्रति भावना जाग जाए तो काम करने के रंग-ढंग और ही होते हैं। अगर ऐसा न हो तो प्रत्येक काम में मीन-मेख निकाली जाती है। इस संबंधी राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल भी सुझाव देते हुए थक चुका है परन्तु हम बेहद घातक स्थिति के लिए प्रशासन को भी बड़ा ज़िम्मेदार समझते हैं, जो लगातार पैदा होती इस समस्या का कोई हल नहीं निकाल सका। ऐसा ही हाल जल प्रदूषण का होता रहा है। आज पंजाब का जल किसी भी पीने के योग्य नहीं रहा। आज इसके दरियाओं में इतना विषाक्त मादा पैदा हो गया है, जिससे यह पशुओं तक ही नहीं अपितु खेतों के लिए भी विषाक्त बन गये हैं। लगातार वर्षों तक इसका कोई हल न निकाले जाने के कारण अंतत: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने जालन्धर के चमड़ा रंगाई उद्योग को बंद करने का आदेश दिया है। यह रंगाई उद्योग लाख समझाने के बावजूद और रसायन युक्त पानी को शोधने के निर्देशों के बावजूद अपना यह सिलसिला जारी रख रहे हैं, जिससे अब उच्च न्यायालय के आदेशों ने एक तरह से एक और नया संकट पैदा कर दिया है। इसका सीधा प्रभाव रोज़गार पर पड़ेगा। लुधियाना भी बड़ा कारोबारी शहर है। यहां अनेक उद्योगों का विषाक्त जल नालों द्वारा दरियाओं में जा रहा है, जिस कारण अक्सर जल में पलने वाले जीवों का बड़ा नुकसान होता रहता है। परन्तु समय के प्रशासन दशकों तक इसका कोई हल नहीं निकाल सके। पहले तो हिमाचल प्रदेश से आते दरियाओं का पानी मैदानों तक पहुंचता साफ-स्वच्छ होता था, अब पहाड़ों में भी बड़े उद्योग लगने के कारण और सीवरेज के पानी का कोई प्रबंध न होने के कारण शुरू से ही यह दरिया दूषित होने शुरू हो गए हैं। यदि आने वाले समय में वायु और जल को शुद्ध रखने के प्रयास बेकार हो गए तो यह राज्य रहने योग्य नहीं रहेंगे। जो भी मजबूरीवश इन स्थानों पर रहेगा, उसका शरीर भीतर से पूरी तरह से खोखला हो जाएगा। ऐसी स्थिति आने से पहले सरकारों और समाज को इसके प्रति पूरी तरह सतर्क होने की आवश्यकता होगी, नहीं तो बहुत सारा पानी पुल के नीचे से बह जाएगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द