कोढ़ में खाज न बन जाए ये बढ़ती मंहगाई  

जब से मोदी 2.0 सरकार का मौजूदा कार्यकाल शुरू हुआ है, खुदरा महंगाई लगातार बढ़ रही है। अक्तूबर 2019 में इसकी दर बढ़कर 4.62: पर पहुंच गई। यह जून 2018 (4.92) के बाद सबसे ज्यादा है, साथ ही यह पिछले 15 महीनों में पहली बार आरबीआई के मध्यम अवधि लक्ष्य (4:) से अधिक है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की सबसे बड़ी विशेषता यही रही है कि तमाम बेरोजगारी और नोटबंदी के हल्ले के बावजूद, मंहगाई काबू से बाहर नहीं हुई, लेकिन इस दूसरे कार्यकाल में लगता है मंहगाई नहीं बख्शने वाली, क्योंकि यह सितम्बर 2019 में 3.99: थी जो अक्तूबर 2019 में 4 ही नहीं 4.5 की लिमिट को भी क्रॉस कर गयी। ये आंकड़े किसी और के नहीं खुद सरकार हैं। इन आंकड़ों को 13 नवम्बर 2019 को जारी किया गया है।  वास्तव में पिछले कुछ दिनों से खाद्य वस्तुओं का महंगा होना लगातार जारी है। पिछले कुछ महीनों में विशेष रूप से सब्जियों, दालों, दूध और अंडा की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है। पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ रही बेरोजगारी के बीच अगर किसी चीज से राहत थी, तो वह थी मंहगाई इसलिए मोदी सरकार के तमाम मंत्री भी बेरोजगारी को काउंटर करने के लिए स्थिर महंगाई दरों का सहारा लिया करते थे और इसे सरकार की एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया करते थे, लेकिन अब यह सुविधा नहीं रही। सच तो यह है कि महंगाई जिस तरह लगातार बढ़ रही है, उससे डर लग रहा है कि कहीं बेरोजगारी के कोढ़ में महंगाई खाज न बन जाए? पिछले माह यानी अक्तूबर 2019 में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 7.89: पहुंच गई। जबकि सितंबर 2019 में 5.11: थी। गौरतलब है कि महंगाई की बास्केट में इसका 50: से ज्यादा योगदान होता है। देखने वाली बात यह है कि सामान्य से ज्यादा बारिश होने के बावजूद सभी किस्म के खाद्य पदार्थों में महंगाई लगातार जारी है। ज्यादा बारिश और बाढ़ से सब्जियों में तो बरसात के बाद इन दिनों अक्सर हर साल बढ़ोत्तरी होती है, लेकिन दालों, विशेषकर अरहर में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी कहीं न कहीं इसकी फ्यूचर ट्रेडिंग की समस्या लग रही है। बहरहाल पिछले महीने सब्जियों की दर में  26.10: का इजाफा हुआ और यह तब है जब इसमें रुलाती प्याज की मौजूदा कीमतें अभी शामिल नहीं हैं। जो कि पिछले दिनों पूरे देश में 80 से 100 रुपये प्रति किलो तक में बिक रहा था।सब्जियों के साथ ही हाल में फलों की कीमतों में भी 4.08 से ज्यादा की वृद्धि हुई है। वैसे तो हर साल पितृपक्ष के बाद नवरात्र से शुरू होने वाले त्योहारी सीजन में फलों की कीमतों में इजाफा होता है, क्योंकि इन दिनों देश के लगभग समूचे हिस्से में फलों की मांग बढ़ जाती है, लेकिन हमेशा त्यौहार जाते ही फलों की ये बढ़ी हुई दरें भी विदा हो जाती थीं, लेकिन इस साल ऐसा नहीं हुआ। इस साल यह त्योहारी श्रृंखला खत्म होने के बावजूद जारी है। फलों की कीमत के  अलावा प्रस्तुत सरकारी आंकड़ों में धान में 2.16:, मांस-मछली में 9.75:, अंडा में 6.26: और सबसे ज्यादा दालों में 11.72: मंहगाई का उछाल आया है, जबकि बिजली ईंधन की खपत में 2.02: की गिरावट आयी है। मालूम हो कि आरबीआई मौद्रिक नीति की समीक्षा के वक्त ब्याज दरें तय करने के लिए खुदरा महंगाई दर को भी ध्यान में रखता है, लेकिन वह इसके लिए एक लिमिट लाइन भी बनाता है। इस महीने मंहगाई ने वह लिमिट लाइन पार कर ली है।            दरअसल खुदरा या रीटेल महंगाई दर (कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स) महंगाई की वह दर है जो प्रभावित तो हर किसी को करती है, लेकिन इससे प्रभावित होते हुए सबसे ज्यादा आम आदमी ही दिखता है, क्योंकि जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि खुदरा महंगाई दर में खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 50 फीसदी तक होती है और आम आदमी खाद्य पदार्थों का निरंतर सक्रिय ग्राहक होता है। इसीलिए दुनियाभर के ज्यादातर देशों में खुदरा महंगाई के आधार पर ही मौद्रिक नीतियों का निर्माण होता है। भारत में पहले यह अनिवार्यता से लागू नहीं था, लेकिन मौजूदा आरबीआई गवर्नर ने स्पष्ट कहा है कि ब्याज दरें तय किए जाने से पहले रीटेल महंगाई दर पर नजर रखी जाएगी। चूँकि महंगाई दर इस साल मई  में बढ़कर 3.05 दर्ज हुई थी जो वैसे तो पिछले 8 महीनों में सबसे ज्यादा थी। लेकिन चूंकि आरबीआई ने इसकी एक मध्यम लिमिट लाइन 4: बनाई हुई है इसलिए इससे यह कम थी। इसलिए अर्थ-शास्त्रियों के लिए ज्यादा चिंता की  बात नहीं थी। शायद इसके पीछे एक अनुमान यह भी रहा हो कि मानसून के बाद काबू में आ जायेगी। मई महीने के औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) के आंकड़े भी जारी किए। ये आंकड़े भी अर्थव्यवस्था के लिए नकारात्मक माहौल दर्शा रहे थे। क्योंकि मई में आईआईपी ग्रोथ घटकर 3.1: रह गई थी। जबकि अप्रैल में यह 3.4: थी। जबकि पिछले साल मई में 3.8: रही थी। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की सुस्ती का आईआईपी ग्रोथ पर असर पड़ना स्वाभाविक है, क्योंकि  यह सेक्टर जून में तो महज 2.5: की रफ्तार से बढ़ा। आईआईपी की दर से देश में उद्योग सेक्टर की गतिविधियों का तो पता चलता ही है, इसकी सकारात्मक दर अर्थ-व्यवस्था के सम्पूर्णता में सकारात्मक होने की कसौटी होती है। पर चूँकि ऐसा नहीं था, इसलिए हम उपभोक्ता सूचकांक को भी लगातार डराते देख सकते हैं। फरवरी-2019 से ही इसमें लगातार जो इजाफा हो रहा है, वह अभी भी होता ही जा रहा है। जून में यह दर 3.18: हो गयी। लेकिन आरबीआई की कट लाइन 4:से चूँकि अब भी कम थी। इसलिए एक बार फिर इसकी अनदेखी की गयी। लेकिन अब ऐसा नहीं किया जा सकता। इस बार की मौद्रिक समीक्षा में आरबीआई को इस पर ध्यान रखना ही होगा। अत: सरकार जितना जल्द हो इस मंहगाई को स्लो डाउन करने के उपाय करे। कहीं इतनी देर न हो जाये कि यह बेरोजगारी के कोढ़ की जानलेवा खाद बन जाए।  

              
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