बुखार में न खाएं दही

शायद ही कोई व्यक्ति होगा, जिसने दही न चखा हो। दही के बिना कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं होता। पर्व, त्यौहार या शादी ब्याह के मौके पर दही की महत्ता देखते बनती है। भोजन में यदि दही न परोसा जाए तो वह भोजन अधूरा माना जाता है। इसमें संदेह नहीं कि गाय के दूध का दही मीठा, पुष्टिकारक, वातनाशक एवं सर्वश्रेष्ठ होता है जबकि भैंस के दूध का दही कफकारक, अत्यंत चिकना,  भारी और रक्त विकारी होता है। बकरी के दूध का दही अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक होता है। इसमें श्वास, खांसी, बवासीर, कमजोरी एवं क्षयरोग का नाश होता है।   ऊंटनी के दूध का दही उदर रोग, कोढ़, बवासीर, पेट के रोग दस्त व कब्ज में लाभदायक होता है। दही को जमाने के कई तरीके हैं। इसे जमाने के ढंग के आधार पर भी इससे लाभ पाया जाता है। दूध को खूब उबालकर जो दही जमाया जाता है, वह भूख को बढ़ाता है लेकिन पित्तकारक होता है। दूध में शक्कर मिला कर जो दही जमाया जाता है, वह रक्त विकार का नाश करता है और प्यास बढ़ाता है। दूध से मलाई निकालकर जो दही जमाया जाता है, वह मल बांधने वाला होता है और संग्रहणी रोग में भी खूब फायदा करता है। मलाई वाले दही से दस्त होने की संभावना रहती है। इसी प्रकार दही दस्त, कब्ज, पीलिया, दमा, तिल्ली रोग, वायु विकार और बवासीर में आराम देता है लेकिन जिन व्यक्तियों को खांसी हो तथा कफ हो तो दही खाने पर वह और बढ़ती है। दही को रात में नहीं खाना चाहिए हालांकि प्रीतिभोज आदि में रात्रि में भी दही खिलाया जाता है। ऐसी स्थिति में दही खाने के साथ घी, मूंग की दाल, आंवला आदि खाना चाहिए। जिन व्यक्तियों में रक्त संबंधी कोई गड़बड़ी हो तो उन्हें रात्रि में दही खाने से परहेज करना चाहिए। ठंड और बरसात में दही खाने से लाभ कम, हानि अधिक होती है। अधिक दस्त व पेट के दर्द में गाय के दूध से बना दही अधिक फायदा करता है। बुखार हो तो दही खाने से परहेज करना जरूरी है।

(स्वास्थ्य दर्पण)