भुखमरी के आंकड़ों में भारत की चिंताजनक स्थिति

हंगर इंडेक्स में जहां भारत पहले से भी निचले पायदान पर आ गया है, जो बेहद चिंताजनक और गंभीर मामला है। वहीं दूसरी तरफ  डिपार्टमेन्ट ऑफ  पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन ने एम.ई.ए. से कहा है कि उनके खाद्य भंडार पूरी तरह से भरे हुए हैं और वो कोई ऐसा रास्ता निकालें कि इस अनाज को इन्सानियत के लिए किसी अन्य देश को दे दें। अर्थात हमारे खाद्य भंडार पूरी तरह भरे हुए हैं। इससे पहले भी भारत ने म्यांमार, श्रीलंका जैसे देशों को लाखों मीट्रिक टन अनाज इन्सानियत के रिश्ते से दिया भी है। अब ये विरोधाभास नहीं तो क्या है?
कृषि प्रधान देश जहां अकूत अनाज है उसी देश को विश्व के भूखे देशों में 102 पायदान पर जगह मिली है। हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश आदि की स्थिति भी हमसे कई गुना अच्छी है। फि र ऐसा क्या कारण है कि सब कुछ होते हुए भी देश का नागरिक भूखा है? क्या ये व्यवस्था की अनदेखी नहीं है? क्यों नहीं सरकारें ऐसे परिवारों, ऐसे नागरिकों को ईमानदारी से चिन्हित कर पाती जो वास्तव में इस अनाज के योग्य हों? प्राचीन काल से ही भारत कृषि के क्षेत्र में अग्रणी स्थान रखता है। ऐसे वक्त में जब हम दुनिया की नामी अर्थव्यवस्था होने का दावा कर रहे हैं, भूख के ये आंकड़े उनकी पोल खोलते नजर आते हैं। क्योंकि गरीबी और भूख आपस में जुड़े हुए हैं, इनमें एक अटूट बन्धन है जो भारत जैसे विकासशील देश के लिए अच्छा नहीं है। देश में आर्थिक असमानता इस हद तक है कि बीते वर्षों में कुछ विशेष व्यक्तियों की पूंजी कई गुना बढ़ी है। कुछ व्यवसायी अपने पास अकूत धन संपत्ति रखे हुए हैं और कुछ गरीब रोटी के लिए भी मोहताज हैं। 
देश में कोई भी सरकार हो उसका पहला कर्तव्य उसके नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाना होता है, परंतु देश में नेता बनने के बाद अल्प समय में नेता कई गुना संपत्ति एकत्र कर लेता है। इसके विपरीत गरीब और अधिक लाचार होता है। विश्व भूख सूचकांक में भारत 100 में से 30.3 अंक ही पा सका, यह भयावह स्थिति को दर्शाता है। वैश्विक भूख सूचकांक ने चार पैमानों पर अपनी रिपोर्ट का आधार तैयार किया, जिसमें पहला बिंदु है पोषण कम मिलना, दूसरे में 5 वर्ष से कम बच्चों का उनकी उम्र के हिसाब से  कम वजन, तीसरा आधार भी 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की जिनकी ऊंचाई उम्र के हिसाब से कम है और चौथा महत्वपूर्ण आधार 5 वर्ष से कम बच्चों की शिशु मृत्यु दर। इन आधारों पर ही ये सूची तैयार की गयी, जिसमें भारत बहुत पीछे आ गया है। इसमें यह बात चिंता की है कि भारत लगातार इसमें पिछड़ रहा है। 2014 में 55 पायदान पर था और 2019 में भारत 102वें नंबर पर आ गया। जब हर क्षेत्र में प्रगति होती है तो ही विकास माना जाता है। विकास का पैमाना कोई एक क्षेत्र तय नहीं करता और न ही ये विकास कुछ दिनों या वर्षों में होता है। विकास अनवरत चलने वाली एक प्रक्रिया है जिसके बहुत चरण होते हैं। देश के हर व्यक्ति का विकास ही विकास कहलाता है। चुनावी भाषणों व रैलियों में पानी की तरह बहाया जाने वाला पैसा अगर गरीब कल्याण योजनाओं में लगता तो देश का विकास होता। हालांकि चुनाव आयोग ने चुनावी खर्चे के लिए एक सीमा बनाई है परंतु इस सीमा को कौन मानता है। हर रोज इस नियम कानून की धज्जियां उड़ती हैं परंतु आयोग खामोशी से सब देखता है। दरअसल वर्तमान में राजनीति नैतिकता और ईमानदारी से कोसों दूर स्वार्थी और लालची हो गयी है यही कारण है कि गरीबों के लिए बनने वाली नीतियां और कार्यक्रम पूर्ण रूप से लागू हो नही पाते या फि र वो सही व्यक्ति तक पहुंच भी नहीं पाते,वरना ऐसी कौन-सी परिस्थिति है जो इतना अन्न भंडारण होते हुए भी एक बहुत बड़ा वर्ग रोटी को मोहताज है। एक बच्ची भात-भात करके मर जाती है। असंख्य लोग सिर्फ  और सिर्फ  भूख से ही मर जाते हैं, बीमारी से नहीं। व्यवस्था जब तक अंतिम व्यक्ति तक भोजन और आवश्यक मूलभूत सुविधाएं नहीं पंहुचा पाती तब तक ये मौतें होती रहेंगी। तब तक कृषि प्रधान देश अनाज के अभाव में दम तोड़ता रहेगा।

—आरती लोहनी