मंदिरों की नगरी-वृंदावन
वृंदावन मथुरा से लगभग 15 किलोमीटर दूरी पर है। वृंदावन भगवान श्री कृष्ण की बाललीलाओं का साक्षी है। इस पावन स्थली का नामकरण वृंदावन कैसे हुआ, इसके बारे में अनेक मत हैं। वृंदा तुलसी को कहते हैं। पहले यहां तुलसी का घना वन था, इसलिए इसे वृंदावन कहा जाने लगा।वृंदावन की अधिष्ठात्री देवी वृंदा अर्थात राधा हैं। ब्रह्मवैर्वत पुराण के अनुसार श्री राधा रानी के सोलह नामों में से एक नाम वृंदा भी है। वृंदा अपने प्रिय श्री कृष्ण से मिलने की आकांक्षा लिए इसी वृंदावन में निवास करती हैं तथा वृंदावन के कण-कण को पावन तथा रसमय करती हैं। वृंदावन की गलियां भी बड़ी प्रसिद्ध हैं। वृंदावन की इन गलियों को कुंज गलियां कहा जाता है। वृंदावन का प्रमुख दर्शनीय मंदिर श्री बांके बिहारी का मंदिर है। स्वामी हरिदास जी द्वारा निर्मित यह मंदिर अति प्राचीन है। मंदिर में स्थापित श्री विग्रह निधिवन से प्रकट हुए थे जिसे स्वामी हरिदास ने यहां स्थापित किया था। श्री बिहारी जी के चरण दर्शन केवल अक्षयतीज को ही होते हैं तथा सावन में हिंडोले के दर्शन होते हैं। श्री गोविंद देव जी का मंदिर लाल पत्थरों से निर्मित एक सुंदर मंदिर है। इसका निर्माण जयपुर के राजा मानसिंह ने करवाया था। आततायियों ने इसकी ऊपरी मंजिलें नष्ट कर दीं थी। कहते हैं कि पहले यह सात मंजिला था, अब केवल चार मंजिल ही रह गया है।
रंग जी मंदिर दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। यह मंदिर अपनी भव्यता तथा मंदिर प्रांगण में खड़ा 6 फुट सोने के खंभे के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का प्रांगण भी विशाल है। रंगजी मंदिर का रथ उत्सव, वैकुंठ उत्सव तथा जन्माष्टमी उत्सव देखने योग्य होता है। यमुना तट पर बना शाह जी का मंदिर अपने संगमरमर के खंभों के लिए प्रसिद्ध है। इसे टेढ़े-मेढ़े खंभों वाला मंदिर भी कहते हैं। वास्तव में इसका नाम ललित कुंज है। वसंत पचंमी को यहां मेला लगता है। निधिवन स्वामी हरिदास जी का समाधि स्थल है। यहां तुलसी के पौधे बहुत हैं। यहां राधारानी का सिंगार रूपी सिंदूर प्रसाद है। इसे इस्कॉन संस्था द्वारा बनवाया गया है। यह मंदिर अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। अनेक विदेशी यहां हिंदू वैष्णव धर्म की दीक्षा लेते हैं। मंदिर में गौरनिताई, राधाकृष्ण युगल तथा कृष्ण बलराम के मनोहर दर्शन हैं। सेवा कुंज को निकुंजवन भी कहते हैं। यहां ताल और एक कदंब का पेड़ हैं। कोने में एक छोटा सा मंदिर है। कहा जाता है कि रात्रि में यहां भगवान श्री कृष्ण राधाजी के साथ विहार करते हैं। यहां रात्रि में रहना वर्जित है। शाम ढलते ही मंदिर से सभी जीव जंतु स्वत: ही अपने आप चले जाते हैं। यह अपने आप में अचरज की बात हैं। वृंदावन वह जगह है जहां श्री कृष्ण ने महारास किया था। यहां के कण -कण में राधा कृष्ण के प्रेम की आध्यात्मिक धारा बहती है। वृंदावन में जन्माष्टमी मथुरा से अगले दिन मनाई जाती है तथा छप्पन भोग लगाया जाता है। यहां लगाने वाले छप्पन भोग को देखने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।