मनु के निवास स्थान मनाली में बर्फबारी का आनंद
हालांकि मनाली में सारे साल पर्यटकों की आवाजाही लगी रहती है, लेकिन यहां जाने का सबसे अच्छा समय अक्तूबर से फरवरी तक है क्योंकि उस वकत गिरती बर्फ को देखने का आनंद ही कुछ और है। इसलिए कुछ दिन पहले मैंने अपना बैग पैक किया, जो अक्सर तैयार ही रहता है, और मनाली की तरफ निकल लिया। पहले मैंने ट्रेन से जाने की सोची, लेकिन फिर इरादा छोड़ दिया क्योंकि निकटतम रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ या पठानकोट हैं, जिनसे मनाली क्रमश: 315 किमी व 290 किमी के फासले पर है, यानी समय बहुत अधिक लगता। इसलिए मैंने नई दिल्ली से कुल्लू-मनाली एयरपोर्ट के लिए फ्लाइट ली। इस एयरपोर्ट पर फ्लाइट लैंड कराना चुनौतीपूर्ण है; क्योंकि एक ही रनवे है और वह भी गहरी घाटी में है, जिसके दोनों तरफ हज़ारों फीट ऊंची ऊंची पहाड़ियां हैं और पास में ही ब्यास नदी बहती है। यह प्राकृतिक नज़ारा दिलकश तो था, मौसम भी अच्छा था, जिससे फ्लाइट लैंड हो गई, वर्ना अक्सर मौसम खराब होने की वजह से फ्लाइट का लैंड कराना कठिन हो जाता है, फ्लाइट रद्द भी हो जाती हैं, इसलिए फ्लाइट से जाने का सुझाव विशेषज्ञ नहीं देते हैं। मैंने समय बचाने के चक्कर में फ्लाइट का विकल्प लिया था, जो किस्मत से बच भी गया।
एयरपोर्ट से मनाली तक का फासला 50 किमी का है, जिसे तय करने के लिए मैंने एक कैब हायर कर ली, विशेषकर इसलिए कि रास्ते के खूबसूरत नज़ारों का आनंद लेते हुए जाऊं। पहाड़ी क्षेत्रों में सड़कें अक्सर रॉकी होती हैं, जिन पर एडवेंचर तो खूब होता है, लेकिन कोई माहिर व अनुभवी ही इन पर ड्राइव कर सकता है। इसलिए अगर आप अपनी कार से मनाली जाने की सोच रहे हैं, तो इन बातों का अवश्य ध्यान रखें। मनाली लद्दाख क्षेत्र और फिर काराकोरम दर्रे के पार तारिम द्रोणी में यारकंद व खोतान जाने के प्राचीन व्यापारिक मार्ग का आरंभ स्थल है, जो 6,398 फीट की ऊंचाई पर ब्यास नदी के किनारे कुल्लू घाटी के उत्तरी छोर पर बसा है और हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िले में आता है। पर्यटक लाहौल, स्पीति व लेह भी अक्सर मनाली होते हुए ही जाते हैं।
मनाली गर्मियों में हल्का ठंडा और जाड़े में बहुत अधिक ठंडा रहता है, लेकिन चूंकि मैं अक्तूबर में गया था तो ऐसी ठंड नहीं पड़ रही थी जिसे बर्दाश्त न किया जा सके। हां, हल्की हल्की बर्फबारी होनी शुरू हो गई थी। मनाली का अर्थ है ‘मनु का निवास स्थान’ यानी इस शहर का नाम मनु के नाम से प्रेरित है। ये पौराणिक कथा तो आपको मालूम ही होगी कि जब जल-प्रलय से दुनिया तबाह हो गई थी और मानव जीवन को पुन: निर्मित करना था, तो मनु अपने जहाज़ से यहीं ‘देवताओं की घाटी’ मनाली में ही उतरे थे। पुराने मनाली गांव में मनु को समर्पित एक मंदिर भी है। मनाली व उसके आस-पास का इलाका सप्त ऋषियों का घर भी है, इसलिए भारतीय संस्कृति व परम्परा में इसका महत्व है। मनाली में सेब के बागान व ट्राउट मछली ब्रिटिश राज की देन हैं और परम्परागत पेड़-पौधों व जीवों का हिस्सा नहीं। वैसे अब मनाली में सेब बहुत अच्छे होते हैं और बेर व नाशपाती के साथ किसानों की आय का मुख्य स्रोत हैं। मनाली गांव जो कभी सुनसान रहा करता था, अब शहर बन गया है और इसमें जगह-जगह होटल व रेस्टोरेंट खुल गये हैं, जिनमें अब देश विदेश के व्यंजन मिलने लगे हैं, लेकिन परम्परागत स्थानीय फूड के सेवन का आनंद कुछ और ही है।
आज मनाली हिमाचल प्रदेश के पर्यटक स्थलों में केवल अपनी सुंदरता के लिए ही विख्यात नहीं है बल्कि यहां स्कीइंग, हाईकिंग, पर्वतारोहण, पैराग्लाइडिंग, राफ्टिंग, ट्रैकिंग, कायाकिंग और माउंटेन बाइकिंग के भी अवसर उपलब्ध हैं। मनाली में एक अनोखा खेल याक स्कीइंग के रूप में भी देखने को मिला। अब यह ‘एक्सट्रीम याक स्पोर्ट्स’ के लिए विख्यात है और इस संदर्भ में एशिया में सर्वश्रेष्ठ है। यहां तीर्थस्थल व तिब्बती बौद्ध मंदिर भी हैं, जिनके दर्शन करने के लिए तो श्रद्धालु आते ही हैं, लेकिन गर्म बसंत का यह शहर अब हनीमून स्थल भी बन गया है। डाटा बताता है कि मई-जून व दिसम्बर-जनवरी में औसतन 550 नवविवाहित जोड़े रोज़ाना मनाली आते हैं। मुझे भी कई जोड़े मिले और मुझे अफसोस हुआ कि इस रमणीक स्थल पर मैं अकेला क्यों आया, कोई साथी होता तो होटल की बालकनी से कॉफी पीते हुए बर्फबारी देखने का आनंद दोगुना हो जाता या हम बर्फबारी में ही निकल जाते और एक-दूसरे पर बर्फ के गोले बनाकर फेंकते। हाय! ये न थी हमारी किस्मत।पर्यटकों से अधिक मुझे मनाली में तिब्बती शरणार्थी देखने को मिले, जो हस्त निर्मित कालीन बेचकर अपने मठों के रख रखाव की व्यवस्था कर रहे थे, जिनकी संख्या कुल्लू घाटी में काफी है और 1969 में निर्मित गदन थेकोकलिंग गोम्पा बहुत मशहूर है। सबसे छोटा व अति आधुनिक हिमालयन नियंगामापा गोम्पा बाज़ार के पास सूर्यमुखी के खिलते बगीचे में है। मनाली के दक्षिण में पाल साम्राज्य का स्मारक नाग्गर किला है, जो देखने लायक है।