सरोगेसी विधेयक  बिना इच्छा के कोई महिला सरोगेट मां क्यों बनेगी ?

कमर्शियल सरोगेसी (किराये पर कोख) पर प्रतिबंध का अनुमोदन करते हुए संसदीय तदर्थ समिति ने सरोगेसी (नियमन) विधेयक 2019 में कुछ महत्वपूर्ण बदलावों की सिफारिश की है, जैसे न केवल ‘करीबी रिश्तेदार’ को बल्कि किसी भी ‘इच्छुक महिला’ को सरोगेट मां बनने दिया जाये, कोख किराये पर लेने से पहले पांच वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को निकाल दिया जाये, 35 से 45 वर्ष की सिंगल महिला (चाहे तलाकशुदा हो या विधवा) व भारतीय मूल के व्यक्तियों (पीआईओ) को सरोगेसी की सुविधा लेने दी जाये और सरोगेट मां के लिए बीमा कवर 16 माह से बढ़ाकर 36 माह कर दिया जाये। समिति ने इस विकल्प को भी खुला रखा कि सरोगेट मां को मेडिकल खर्च व बीमा कवर (जिसमें पौष्टिक फूड जरूरतें आदि शामिल हैं) के अलावा भी मुआवजा दिया जाये।भाजपा सांसद भूपेन्द्र यादव के नेतृत्व वाली 23-सदस्यों की समिति ने दस बैठकों के बाद अपनी यह सिफारिशें 5 फरवरी 2020 को दीं। अब इन सिफारिशों पर स्वास्थ्य मंत्रालय विचार करेगा और विधेयक में संभवत: इनके अनुरूप परिवर्तन करके विधेयक को एक बार फिर संसद में पेश करेगा। सरोगेसी (नियमन) विधेयक 2019 में सरोगेसी के जरिये जन्मे बच्चे के अधिकारों को सुरक्षित रखने का भी प्रस्ताव है। गौरतलब है कि लोकसभा ने 5 अगस्त 2019 को जो सरोगेसी (नियमन) विधेयक पारित किया था उसमें कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने के अलावा केवल नजदीकी रिश्तेदार के जरिये परमार्थ सरोगेसी की अनुमति दी गई थी। सिंगल महिला पर सरोगेसी सुविधा लेने पर प्रतिबंध था। इन्हीं कारणों से यह विधेयक राज्यसभा में अटक गया था और इसे पुन:मूल्यांकन के लिए तदर्थ समिति के पास भेजा गया था। यह पहला अवसर नहीं है जब सरोगेसी (नियमन) विधेयक तदर्थ समिति के पास भेजा गया। सरोगेसी (नियमन) विधेयक 2016 लोकसभा में 21 नवम्बर 2016 को पेश किया गया था, लेकिन राज्यसभा चेयरमैन व लोकसभा स्पीकर के आपसी मशवरे से इसे12 जनवरी 2017 को तदर्थ समिति को सौंप दिया गया। उस समिति के अध्यक्ष समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सदस्य राम गोपाल यादव थे और उसमें भाजपा के 12 सांसद शामिल थे। राम गोपाल यादव के नेतृत्व वाली समिति सरकार के इस ‘संस्कारी’ दृष्टिकोण से सहमत नहीं थी कि ‘केवल संतानहीन विवाहित जोड़ों के लिए ही सरोगेसी की व्यवस्था हो और वह भी परमार्थ’ यानी मुफ्त में। इसलिए उसने कहा था, ‘एक महिला को यह तो अनुमति हो कि वह दूसरे व्यक्ति को मुफ्त में प्रजनन श्रम उपलब्ध कराये, लेकिन उसे अपने प्रजनन श्रम के लिए आर्थिक मेहनताना लेने से रोकना अत्याधिक अनुचित और मनमाना है। सरोगेसी यानी परमार्थ या मुफ्त में कोख किराये पर देना एक अतिवाद है। सरोगेट बनने की इच्छुक महिला से बहुत अधिक आशाएं लगाई जाती हैं कि वह बिना किसी मुआवजे या मेहनताने के केवल नेक इरादों और दया पर आधारित निर्णय ले व नि:स्वार्थ प्रजनन श्रम प्रदान करे। गर्भधारण कुछ पल का जॉब नहीं है बल्कि नौ माह का श्रम है, जिसमें संबंधित महिला के स्वास्थ्य, समय व परिवार पर दूरगामी प्रभाव पड़ते हैं। परमार्थ व्यवस्था में सन्तान के इच्छुक जोड़े को बच्चा मिल जाता है। डाक्टर, वकील व अस्पताल को अपना पैसा मिल जाता है, लेकिन सरोगेट मां से आशा की जाती है कि वह बिना एक पैसा पाए परहितवाद का पालन करे। राम गोपाल यादव समिति सरकार के प्रस्तावों के विपरीत सरोगेसी पर अधिक उदार कानून के पक्ष में थी, जिसमें लिव-इन जोड़ों, तलाकशुदा महिलाओं व विधवाओं को भी सरोगेट चयन करने का अधिकार था। भारतीय परिवार में महिला विरोधी शक्ति संरचना की निंदा करते हुए समिति ने सरोगेसी के लिए परमार्थ पर मुआवजे को वरीयता दी। समिति के अनुसार परमार्थ सरोगेसी में शोषण की आशंका अधिक है और लिव-इन जोड़ों सहित सभी को दोनों परिवार के भीतर व बाहर से सरोगेट चयन का अधिकार होना चाहिए। दूसरे शब्दों में समिति इस पक्ष में नहीं थी कि सरोगेसी ‘परिवार की निजी बपौती’ बनकर रह जाये।लेकिन सरकार ने राम गोपाल यादव समिति की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया और सरोगेसी (नियमन) विधेयक 2016 में कुछ गैर जरूरी से परिवर्तन करके उसे सरोगेसी (नियमन) विधेयक 2019 के रूप में लोकसभा में पारित करा दिया, जोकि राज्यसभा में अटका और भूपेन्द्र यादव समिति का गठन हुआ। भूपेन्द्र यादव समिति ने भी लगभग राम गोपाल यादव समिति जैसी ही सिफारिशें की हैं, केवल इस मुख्य अंतर के साथ कि इसने कमर्शियल सरोगेसी पर रोक की इच्छा व्यक्त की है, लेकिन सरोगेट मां के लिए अतिरिक्त मुआवजे का विकल्प खोलने का प्रयास भी किया है। दूसरे शब्दों में भूपेन्द्र यादव समिति भी स्वीकार करती है कि परामर्थ या मुफ्त सरोगेसी व्यवहारिक नहीं है। भला एक महिला दूसरों को संतान सुख देने के लिए नौ महीने मुफ्त में क्यों कष्ट उठाये? ‘इच्छुक महिला’ किसी ‘इच्छा’ से ही तो सरोगेट बनने की ‘इच्छा’ व्यक्त करेगी और अधिकतर मामलों में पैसे से बड़ी कोई इच्छा नहीं होती। इसलिए कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध व्यवहारिक नहीं है। हां, गरीब महिलाओं के शोषण को रोकने के लिए कानून अवश्य होना चाहिए, जिसके लिए सरोगेसी को व्यवस्थित व संगठित करने की भी जरूरत है।

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