डाकिया दवाई लाया

कुछ वर्ष पूर्व लाल रंग की डाक वाली गाड़ियां सड़कों पर अक्सर दिखाई देती थीं। ये लाल रंग की गाड़ियां, भारतीय डाक के पत्रों एवं पार्सल लाने-ले जाने का कार्य करती थीं। भारतीय डाक सेवा विश्व की सबसे बड़ी डाक सेवा है। यह एक बैंक के तौर पर, पैंशन फंड के रूप में एवं बचत खातों के रूप में करोड़ों भारतीयों को सुविधाएं प्रदान करती है तथा आज इसने जीवन-रक्षक सेवा का रूप धारण कर लिया है। अब ज़िन्दगी बचाने वाली विशेष दवाइयां एवं उपकरण, कोरोना वायरस के कहर के दृष्टिगत देश में किये गये लॉकडाऊन के दौरान इन लाल रंग की डाक गाड़ियों के माध्यम से ही पहुंचाये जाएंगे। भारतीय डाक सेवा ने ‘इंडियन ड्रग्स मैन्यूफैक्चरज़र् एसोसिएशन’ (आई.डी.एम.ए.) के साथ संकट की इस घड़ी में सबसे पहले गुजरात में समझौता किया है। जिसमें जीवन- रक्षक औषधियां, कोविड-19 टैस्ट किटें, एन.-95 मास्कस एवं वैंटीलेटर भिन्न-भिन्न स्थानों पर पहुंचाये जा रहे हैं। इस समझौते के परिणाम-स्वरूप उत्तर प्रदेश में भी ये सेवाएं उपलब्ध करवाना शुरू हो गई हैं।भारतीय डाक अथवा डाक विभाग भारत सरकार का एक अहम अंग है। इस विभाग का कर्ता-धर्ता भारत सरकार का दूर-संचार मंत्रालय है। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि भारतीय डाक का नैटवर्क दुनिया में सबसे बड़ा एवं विशाल नैटवर्क है, जिसमें 1,55,015 डाक घर शामिल हैं। केवल यही नहीं, अपितु विश्व में सबसे ऊंचा डाक घर, हिक्किम (हिमाचल प्रदेश) में है, जोकि 14,567 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। भारत में आधुनिक डाक सेवाओं की स्थापना अंग्रेज़ी शासन के समय लार्ड डल्हौज़ी ने 1854 में की थी जिसके कुछ विशेष कार्य डाक पहुंचाना, मनीआर्डर के माध्यम से पैसे पहुंचाना, बचत खातों में पैसे जमा करवाना, डाक जीवन बीमा के माध्यम से जीवन बीमा करना, वृद्धावस्था पैन्शन खातों में पैन्शन जमा करना एवं टैलीग्राम की सेवाएं प्रदान करना था। इतिहास में सबसे पहले डाक सेवाओं का ज़िक्र मिस्र में लगभग 2000 बी.सी. में पाया जाता है तथा इसके बाद चीन में चाऊ राज-घराने के शासन के दौरान लगभग एक हज़ार वर्ष बाद, आधुनिक डाक प्रणाली का विकास शुरू हुआ। छठी शताब्दी के ईरानी शासकों के अधीनस्थ एवं उसके बाद यूनानी शासकों की बदौलत यह प्रणाली विकसित होती गई, परन्तु कहा जाता है कि पुरातन युग में सर्वाधिक विकसित डाक प्रणाली की शुरुआत रोमन साम्राज्य में हुई। फिर यह प्रणाली तुर्की के ओटोमन साम्राज्य से इस्लामिक देशों तक पहुंच गई। हिन्दुस्तान में दिल्ली सल्तनत के शासन के समय डाक ले जाने की सेवा को ‘बारिद’ कहा जाता था। इसमें डाक लाने-ले जाने का कार्य प्यादों (पैदल यात्रा करने वाले) की ओर से किया जाता था तथा इसके बाद घुड़सवारों की ओर से, यह कार्य अपनाया गया। म़ुगल साम्राज्य में बाबर ने इस सेवा को और विकसित किया एवं प्रत्येक 18 कोस (लगभग 32 किलोमीटर) पर डाक चौकियां बनवाईं। अकबर के शासन में प्रत्येक डाक चौकी पर घुड़सवार एवं घोड़े तैनात किये गये, जिसके कारण आवश्यक ़खबरनामे एवं शाही आदेश बड़े श्रेष्ठ ढंग से कई मील दूर आसानी से पहुंचाये जाते। इसमें सन्देश के चौकी तक पहुंचने पर चौकी वाला घुड़सवार एकदम यह सन्देश अगली चौकी तक पहुंचाने के लिए निकल जाता। शेरशाह सूरी ने इस प्रणाली की नियोजना को बढ़िया सड़कें बना कर और सफल किया।  मोबाइल फोन एवं कम्प्यूटर युग से पहले पत्र लिखना एवं लिख कर भेजना, संचार का नव्यतम साधन था। कहा जा सकता है कि विश्व के सबसे पहले पोस्टमाटर, पक्षी कबूतर ही थे। फिर डाक लाने-ले जाने का कार्य प्यादों की ओर से किया जाने लगा तथा इसके बाद घुड़सवारों की ओर से। धीरे-धीरे इसे रेलगाड़ियों में तथा इसके बाद सड़क मार्ग से पहुंचाया जाने लगा। यह डाक सेवा विकसित होते-होते आज इंटरनेट के माध्यम से ई-मेल के रूप में तथा हवाई जहाज़ों के माध्यम से भेजे जाते कोरियर तक आ पहुंची है। चाहे इस सेवा के पुरातन रूप से हम दूर हो गए हैं, परन्तु फिर भी मौजूदा समय में देश में फैली महामारी के दौरान उपजे संकट में इस सेवा ने एक नया रूप धारण करके देशवासियों के जीवन को बचाने के लिए आगे आ कर एक अहम भूमिका निभानी शुरू कर दी है। 

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