महामारियों का चक्रव्यूह

इतिहास गवाह है कि मानव ने प्राकृतिक आपदा शक्तियों या फिर विश्व युद्धों से कहीं अधिक बीमारी फैलाने वाले वायरस, बैक्टीरिया और पर-जीवियों से जानें गवाईं हैं। मानव सभ्यताओं के विकसित होने के साथ-साथ बीमारियां भी बढ़ती रही हैं और जब इनके फैलने में देशों की सीमाएं भी कोई बाधा न बन सकीं तो इन्होंने महामारियों का रूप धारण कर लिया। कई बार इन महामारियों ने मानवीय इतिहास का रुख बदल कर नये इतिहास का सृजन किया और कई बार इन्होंने मानवीय अस्तित्व पर भी प्रश्न-चिन्ह लगाये। कई बार इन बीमारियों ने ब़गावतों और दंगों को भी चिंगारियां लगाईं, परन्तु इन महामारियों ने डाक्टरी विज्ञान के आविष्कारों को भी जागृत करके उनको विकसित किया है।वैक्सीन, दवाइयां और डाक्टरी उपचार के नये आविष्कारों ने मनुष्य का जीवन ही बदल कर रख दिया। 1928 में पैन्सलीन का आविष्कार और उसके बाद वर्ष-दर-वर्ष नये एंटी बायोटिक्स की खोज और दिन-प्रतिदिन इनका और विकसित होना, मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धियां कही जा सकती हैं।महामारी कोविड-19 के फैलने से यह साबित हो गया है कि आज के युग में भी वायरस और बैक्टीरिया से फैलने वाली बीमारियां खत्म नहीं हुईं। आर्श्चयजनक बात यह है कि अब नये से नये किस्म के वायरस, जोकि पहले के वायरसों से काफी ताकतवर और ़खतरनाक हैं, उजागर हो गए हैं, परन्तु पुरानी महामारियों को फैलाने वाले तथ्य अभी भी हमारे वायुमंडल में मौजूद हैं, जैसे कि मलेरिया जो हज़ारों वर्षों से पृथ्वी पर इन्सानी ज़िन्दगियों को खत्म कर रहा है। हालांकि मलेरिया से मरने वालों की संख्या पहले से बहुत कम है परन्तु फिर भी पिछले लगभग 20 वर्षों में 50 लाख के करीब मलेरिया से पीड़ितों ने अपनी जान गंवाई। विगत एक दशक में डेंगू और चिकनगुनिया जैसी, मच्छरों से फैलाई गई बीमारियों वाले वायरस भी उजागर हुए हैं।इतिहास में तीन बार फैलने वाली भयानक महामारी, ‘प्लेग’, एक बैक्टीरिया द्वारा ही फैली थी। सबसे पहले प्लेग 541 बी.सी. में, आज के इस्तानबुल्ल शहर में फैली। इसको लाने वाले चूहे मिस्र से समुद्री जहाज़ों द्वारा यहां पहुंचे और फिर इसके बाद यह महामारी जंगल की आग की तरह यूरोप, एशिया, अरब और उत्तरी अफ्रीका के देशों में फैली जिसने लगभग अढ़ाई करोड़ लोगों की जान ली। प्लेग लगभग 800 वर्ष बाद वर्ष 1344 में यूरोप में वापस फैली और उस समय चार वर्षों में ही इस महामारी ने 5 करोड़ जानें ले लीं। उस समय फैली इस भयानक महामारी को ‘ब्लैक डैथ’ भी कहा जाता है। कहा जाता है कि पिछले 300 वर्षों में प्लेग करीब 40 बार फैली है।  वर्ष 1720 में फ्रांस और वर्ष 1855 में एशिया के कई देशों जिनमें भारत भी शामिल था, में भी करोड़ों लोग इस महामारी की भेंट चढ़े। आज भी प्रत्येक वर्ष लगभग 600 जानें प्लेग के कारण चली जाती हैं।इसके अलावा चेचक (स्माल पॉक्स) महामारी ने लगभग 10 में 3 लोगों की जान ली। 1801 में इस वायरस से फैलने वाली महामारी का उपचार वैक्सीन द्वारा निकाला गया, लेकिन इसको जड़ से खत्म करने के लिए लगभग 200 वर्ष और लगे। वर्ष 1980 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) ने घोषणा की कि चेचक विश्व से पूरी तरह खत्म है। फिर 19वीं शताब्दी में दूषित पानी में पलने वाले बैक्टीरिया ने  हैज़ा (कोलरा) महामारी को जन्म दिया।  इस महामारी ने स़ाफ-स़फाई और स्वच्छ पेय-जल की योजनाबंदी की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। हालांकि विकसित देशों में कोलरा बीमारी जड़ से खत्म कर दी गई है परन्तु अविकसित देशों में स़ाफ  पेय-जल की सप्लाई और सीवरेज की उचित योजनाबंदी न होने के कारण बहुत लोग कोलरा का शिकार होते हैं।विश्व में लगभग 35 करोड़ लोगों ने एड्स से अपनी जान गंवाई है। यह एच.आई.वी. वायरस जोकि चिंपैंजी (विशेष किस्म के बंदर) में पाया जाता है, से फैला और आज तक यह बीमारी लाइलाज है।11वीं शताब्दी में फैली कुष्ठ (लैपरोसी) की बीमारी से लेकर 1875 में मंगल (मीज़ल) महामारी और फिर 1889 में रशियन फ्लू और 1918 में स्पैनिश फ्लू (इन्फल्यूएंज़ा) से लेकर 1957 में एशियन फ्लू और 2003 में सार्स (स्वीयर एक्यूट रैस्पीरेटरी सिंड्रोम)। सार्स एक किस्म के कोरोना वायरस से फैलता है जोकि चमगादड़ों में पाया जाता है, और फिर उनसे बिल्लियों में और फिर इन्सान में आया। यह महामारी चीन से शुरू हुई और फिर 26 देशों में फैली। सार्स के बाद एच1 एन1 (स्वाईन फ्लू), बर्ड फ्लू, इबोला और ज़ाइका जैसी महामारियों ने जन्म लिया और हाल के समय में कोविड-19 ने अपने पांव पूरे विश्व में पसारे हुए हैं।इससे यह साबित हो जाता है कि चाहे इन्सान ने मैडीकल साईंस में बहुत उन्नति की परन्तु हमारी अपनी उन्नति ने हमें एक नई किस्म के वायरस और बैक्टीरिया के समक्ष बेबस कर दिया है। हमने अभी तक पहले से फैली बीमारियों और महामारियों से पूरी तरह निजात नहीं पाई थी परन्तु अब फैले नोवल कोरोना वायरस से कोविड-19 महामारी ने मनुष्य के मन की सोच से दूर, विश्व भर के देशों में ऐसी तबाही मचाई हुई है कि हमारी अपनी ही सूझबूझ तुच्छ हो कर गई है। इन हालात के ज़िम्मेदार भी हम स्वयं ही हैं।मनुष्य तकनीकी एवं वैज्ञानिक उन्नति करते-करते इतना स्वार्थी हो गया था कि उसने प्रकृति के साथ भी खिलवाड़ करना शुरू कर दिया था। इसी कारण वातावरण असंतुलन और जलवायु परिवर्तन जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो गईं। इनसे नये किस्म के वायरसों ने पैदा होना शुरू कर दिया है जिनके अस्तित्व ने वैज्ञानिकों के समक्ष एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। इन शक्तिशाली हमलावरों ने पहले आविष्कारों और डाक्टरी उपचार को पूरी तरह विफल कर दिया है।लेकिन आज इस महामारी ने हमें यह सबक सिखा दिया है कि हम वैज्ञानिक उन्नति के साथ-साथ प्राकृतिक संतुलन भी बरकरार रखें क्योंकि प्रकृति के पास ही, इस ब्रह्मांड में प्रत्येक विनाशकारी कण हेतु सृजनात्मक कण मौजूद हैं।