कालाबाज़ारी का बोलबाला

नित्य-प्रति मनुष्य की लालसा के बढ़ते जाने के कारण समाज को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। लालची मनुष्य ही अन्य मनुष्यों की ज़िन्दगी का हृस कर रहा है। ऐसा कुछ सभी ओर होते हुये दिखाई दे रहा है, जिससे पहले ही कमज़ोर हुआ समाज रसातल की ओर अग्रसर होने लगा है। परचून की अनेक दुकानों से लेकर अनेक बड़ी कम्पनियों की ओर से खाद्य पदार्थों में मिलावट करके नकली सामान लोगों को बेचा जा रहा है चाहे इससे मनुष्य का स्वास्थ्य पूरी तरह जर्जर हो जाता है। दूध में अनेक प्रकार से मिलावट करके लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जाता है। त्यौहारों के दिनों में नकली मिठाइयां, पनीर एवं नकली घी को बड़े स्तर पर बेचा जाता है। सरकारों की ओर से मिलावटखोरों एवं नकली सामान तैयार करने वालों के लिए अनेक प्रकार के कड़े कानून भी बनाये गये हैं, परन्तु उन पर पूर्णतया अमल न किये जाने के कारण ये काले धन्धे निरन्तर चलते रहते हैं।पिछले दिनों प्रदेश में बड़े स्तर पर नकली शराब के धंधे का रहस्योद्घाटन भी हुआ। इससे संबंधित कई अन्य शराब फैक्टरियों का पर्दाफाश हुआ परन्तु अधिकतर ऐसे काम इसलिए आंखें पोंछने के तौर पर बन कर रह जाते हैं  क्योंकि ऐसे मुनाफाखोरों के तार दूर तक जुड़े होते हैं, जो समय की राजनीति, अफसरशाही एवं पुलिस तक भी जा पहुंचते हैं। इसीलिए सरकारी कार्रवाइयां प्रशासनिक प्रक्रिया से हीन और कागज़ी बन कर रह जाती हैं। पिछले दिनों शराब बनाने वाली एक फैक्टरी में बिना लाइसैंस के ही बड़ी मात्रा में शराब बाहर भेजी जाती रही, जिससे सरकार के खज़ाने को भारी चूना लगा। तालाबन्दी के दौरान शराब का यह धंधा पिछले दरवाज़े से निर्बाध रूप से चलता रहा। ऐसे कार्य में प्रत्येक स्तर पर हिस्सेदारी भी कायम थी। यही कारण है कि आज प्रदेश के आबकारी विभाग को शराब की बिक्री में से बहुत कम आय होने से निराशा झेलनी पड़ रही है। कृषि के क्षेत्र में भी अक्सर नकली दवाइयों एवं नकली खादों की बिक्री पूरे ज़ोर-शोर से होती रही है। इस संबंध में किसानों के साथ किये गये अनेक घपले भी सामने आते रहे हैं परन्तु किसी प्रकार की कोई कड़ी प्रशासनिक कार्रवाई न होने के कारण प्राय: ऐसे धंधे बिना रोक-टोक चलते रहते हैं। अब धान की बुआई के समय बड़े स्तर पर नकली बीज बेचे जाने के घोटाले सामने आ रहे हैं। पिछले दिनों अवैध ढंग से बड़े स्तर पर अनाधिकृत बीजों की बिक्री के कारण आज पंजाब का माहौल गर्म हुआ दिखाई देता है। पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी की ओर से तैयार किये गये धान के बीजों की दो किस्में जिन्हें विश्वविद्यालय एवं कुछ सरकारी अधिकृत स्टोरों से ही बेचा जाता था, की बाज़ारों में बड़े स्तर पर आमद एवं उनकी बिक्री ने सब को हैरान कर दिया। बाद में पता चला कि बाज़ार में बिक रहे ये बीज जाली हैं। किसानों को ये जाली बीज बेचने के संबंध में कुछ राजनीतिक दलों एवं किसान यूनियनों की ओर से भी आवाज़ें उठाई गई हैं, परन्तु पहले तो सरकार की ओर से इस मामले को दृष्टिविगत किया गया परन्तु जब मामला उग्र हो गया, तो अंतत: सम्बद्ध विभागों को इस संबंध में कदम उठाने पड़े। बहुत से स्थानों पर छापे मार कर बड़ी संख्या में अनाधिकृत बीजों के भंडार ज़ब्त किये गये। कुछ डीलरों को इस संबंध में गिरफ्तार भी किया गया तथा बहुत से दुकानदारों के बीज बेचने के लाइसैंस रद्द कर दिये गये। इस संबंध में और भी रहस्योद्घाटन सामने आ रहे हैं तथा जालसाज़ों पर बीज नियन्त्रण कानून एवं आवश्यक वस्तु कानून के अन्तर्गत कार्रवाइयां भी की जाने लगी हैं। परन्तु आगे से समाज के ऐसे तत्वों पर तभी अंकुश लग सकता है यदि इसके लिए दोषियों को कड़ी सज़ाएं दी जाएं। राजनीतिक धरातल पर इस गम्भीर समस्या के प्रति जो आरोप लगते रहे हैं, उनका भी निराकरण किया जाना आवश्यक है। नि:सन्देह ऐसे घोटाले दिन-प्रतिदिन दूषित होती जाती राजनीति का ही परिणाम हैं। आज समाज के कल्याण हेतु साफ छवि वाले एवं प्रतिबद्ध राजनीतिज्ञों की आवश्यकता है, जो फैल बढ़ रहे इस प्रदूषण को स़ाफ करने में सहायक हो सकें।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द