मौजूदा समय में सिख मानसिकता को समझने की ज़रूरत

चाहे आप्रेशन नीला तारा जैसी महा त्रासदी को घटित हुए 36 वर्ष का समय गुज़र चुका है परन्तु फिर भी जब हर वर्ष इसकी बरसी आती है तो सिख भाईचारे के बड़े हिस्से को एक गहरी पीड़ा का अहसास होता है और उनके मनों में से यह हूक निकलती है कि इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी केन्द्र सरकार ने इस बड़ी गलती के लिए सिख भाईचारे से माफी नहीं मांगी। पिछले लगभग तीन दशकों से अधिक समय के दौरान इस बड़ी घटना बारे बहुत कुछ लिखा तथा बोला गया है। आरंभ में उस समय की केन्द्रीय सरकार ने अपने सभी साधनों के द्वारा यह बात उभारने की कोशिश की कि संत जरनैल सिंह भिंडरावालों तथा उनके श्रद्धालुओं ने श्री हरिमंदिर साहिब परिसर में ऐसे हालात पैदा कर दिए थे, जिनके कारण सरकार को यह सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी। सरकार द्वारा यह भी कहा गया था कि श्री हरिमंदिर साहिब में पैदा हुए हालात देश की एकता व अखंडता के लिए बड़ा खतरा थे। इसलिए तुरंत निर्णायक कर्रवाई करने की ज़रूरत थी। सरकार तथा उसके समर्थकों ने लम्बे समय तक अपने इस पक्ष को बड़े ज़ोरदार ढंग से लोगों पर थोपने की कोशिश की परन्तु धीरे-धीरे अब दूसरा यह पक्ष भी सामने आने लग पड़ा है कि श्री हरिमंदिर साहिब में जो हालात पैदा हुए थे, उससे पहले अमृतसर में दमदमी टकसाल के सिंहों व निरंकारियों के मध्य हुए टकराव तथा उसके बाद लगातार ऐसी घटनाएं घटित हुईं, जिन्होंने देश को बेहद प्यार करने वाले तथा देश के लिए बड़ी कुर्बानियां करने वाले सिख भाईचारे को देश की सत्ता के खिलाफ खड़ा कर दिया। इस समय के दौरान अनेक अवसर आए जब केन्द्र सरकार सिख भाईचारे के प्रतिनिधियों से बात करके बढ़ रहे इस टकराव को रोक सकती थी। परन्तु केन्द्र सरकार द्वारा ऐसा कोई भी बड़ा यत्न नहीं किया गया और न ही उस समय पंजाब में कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों ने निरंतर बढ़ रहे टकराव को रोकने हेतु स्थानीय स्तर पर कोई प्रभावशाली यत्न किए। इस तरह एक-एक घटना आगे बढ़ती हुई बड़े टकराव का रूप लेती गई। इसी का ही नतीजा था कि संत जरनैल सिंह भिंडरावाले तथा उनके समर्थक श्री हरिमंदिर साहिब में चले गए और वहां स्थितियां नाखुशगवार और तनावपूर्ण बन गईं। पंजाब के बाहर भी निर्दोष हिन्दुओं और सिखों के कत्लों सहित अनेक अप्रिय घटनाएं घटीं। इस समय भी केन्द्र सरकार सिख भाईचारे के साथ बातचीत करके या अन्य कूटनीतिक ढंग-तरीके प्रयोग कर समूचे मसले का कोई आसान समाधान कर सकती थी परन्तु इसमें भी वह बुरी तरह नाकाम रही और दरबार साहिब परिसर में सैन्य कार्रवाई कर दी गई। फिर यह घटनाक्रम यहीं ही नहीं रुका। इसके बाद सिख भाईचारे का एक हिस्सा हथियारबंद होकर केन्द्र तथा राज्य की सत्ता को चुनौती देने हेतु सामने आ गया और यह खूनी टकराव लम्बे समय तक चला। इसी टकराव के दौरान श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और उसके तुरंत बाद हुआ नवम्बर 1984 का सिख कत्लेआम भी इसी घटनाक्रम का हिस्सा था, क्योंकि इंदिरा गांधी की हत्या के लिए पूरे सिख भाईचारे को दोषी ठहरा कर कांग्रेस ने उनको सबक सिखाने की कोशिश की थी। इसके बाद भी कितने ही वर्षों तक यह खूनी टकराव चलता रहा और बड़े स्तर पर केन्द्र सरकार की मिलीभगत से राज्य सरकारों ने झूठे पुलिस मुकाबले बना कर इस हथियारबंद संघर्ष को कुचलने का यत्न किया। निसंदेह: केन्द्र तथा राज्य सरकारों के अथाह साधनों से इस हथियारबंद संघर्ष को दबाने में सत्ताधारी पक्षों को सफलता मिल गई परन्तु इस पूरे घटनाक्रम के दौरान जो कुछ सिख भाईचारे को तथा समूचे देश को सहन करना पड़ा और जो कुछ भाईचारे के साथ घटित हुआ, उसकी पीड़ा अभी इस कारण बाकी है क्योंकि केन्द्र सरकार ने न तो वर्षों में फैले इस पूरे घटनाक्रम से सही ढंग से निपटने में अपने द्वारा हुईं लापरवाहियों का कोई अहसास किया और न ही उन मांगों व मसलों के समाधान ढूंढने का यत्न किया जिनके कारण धर्म युद्ध मोर्चा लगा था या यह हथियारबंद संघर्ष तीव्र हुआ था। 36 वर्ष पहले घटित हुए इस पूरे घटनाक्रम ने आज भी सिख भाईचारे की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डाला हुआ है। इसका यह नतीजा निकला है कि सिख भाईचारा जो पहले इस देश को बेहद प्यार करता था और इस देश के लिए हर कुर्बानी करने हेतु सदा तैयार रहता था, उस में पहले के मुकाबले उदासीनता और बेगानगी के भाव पैदा हुए हैं। इसी कारण बड़ी संख्या में गड़बड़ करने वाले समय के दौरान और उसके बाद सिख भाईचारे के लोगों ने देश से बाहर जाने को प्राथमिकता दी है। इस प्राथमिकता का एक कारण बेरोज़गारी तथा पंजाब के देहाती क्षेत्रों में कृषि का संकट भी है परन्तु इसके साथ-साथ भारत से विदेशों को जाने के बढ़ रहे रुझान के पीछे सिख भाईचारे की सत्ताधारियों के प्रति उपजी निराशा और उदासीनता भी एक बड़ा पहलू है। दूसरे देशों विशेष कर कनाडा की सरकारें यह जानती हैं कि सिख भाईचारा बेहद बहादुर व मेहनती है। इसी कारण उनके द्वारा सिख भाईचारे को विशेष सम्मान तथा मान दिया जा रहा है और इस मेहनती भाईचारे की आमद के लिए उन्होंने अपने प्रवास संबंधी नियम भी काफी नर्म रखे हुए हैं। चाहे कनाडा  सरकार की प्रवास संबंधी नीति दूसरे देशों से आने वाले सभी लोगों के लिए ही नर्म है परन्तु इस बारे कोई दो राय नहीं है कि कनाडा सरकार विशेष तौर पर सिख भाईचारे के प्रति उदार है। इसे इस पक्ष से भी देखा जा सकता है कि कनाडा की जस्टिन ट्रडो की पहली सरकार में 5 केन्द्रीय मंत्री सिख भाईचारे या पंजाब से संबंधित थे और अब की सरकार में भी 4 मंत्री सिख भाईचारे से संबंधित हैं। वैसे भी कनाडा की राज्य सरकारों तथा केन्द्रीय सरकार द्वारा अनेक बार विशेष तौर पर सिख भाईचारे के प्रति सम्मान दिखाया जाता है। कामागाटामारू जहाज़ की त्रासदी के लिए इतने वर्षों बाद कनाडा सरकार द्वारा माफी मांगनी भी  कनाडा सरकार के इसी उदार और न्यायशील व्यवहार का प्रगटावा है। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मन और अमरीका आदि जैसे अहम देशों में सिख भाईचारे ने अपनी कड़ी मेहनत और हर स्थिति में ज़रूरतमंदों की मदद करने के लिए तैयार रहने की अपनी खूबी के कारण अपनी विशेष पहचान बना ली है। धीरे-धीरे इन देशों में सिख भाईचारे के लोग निचले स्तर के कामकाजों से ऊपर उठ कर बड़े कारोबार बनाने की तरफ बढ़ रहे हैं और इसके साथ-साथ इन देशों की राजनीति में भी धीरे-धीरे सिख भाईचारे का प्रभाव बढ़ना शुरू हो गया। कोरोना वायरस के इस समय में जिस तरह देश-विदेश में सिख भाईचारे के लोगों ने ज़रूरतमंदों की दृढ़ता तथा साहस से लंगर चला कर मदद की है और गुरुघर के दरवाज़े ज़रूरतमंदों के लिए खोल रखे हैं, उसने सिख भाईचारे के मान-सम्मान में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और भी बड़ी वृद्धि की है। परन्तु हम इस बात को नहीं भूल सकते कि भारत और विशेषकर पंजाब सिख भाईचारे की जन्म तथा कर्म भूमि है। यह गुरु साहिबान का वरदान प्राप्त धरती है और यहां सिख भाईचारे के धार्मिक तथा ऐतिहासिक स्थान हैं। यहां से सिख भाईचारे का बड़े स्तर पर पलायन न तो इसके अपने हित में है और न ही भारत के हित में है। एक ऐसा भाईचारा जिसने म़ुगल काल से  लेकर अंग्रेज़ी साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष में आगे होकर कुर्बानियां दी हैं। जिन्होंने देश के विभाजन के समय भारत के साथ रहने का फैसला लेकर पंजाब का विभाजन  करवाया और इस तरह मौजूदा पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश को भारत में बनाए रखने के लिए बड़ी भूमिका निभाई। यह बात सभी को स्पष्ट होनी चाहिए कि अगर सिख भाईचारा विभाजन के समय पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला कर लेता और पंजाब का विभाजन न होता तो पाकिस्तान की सीमा दिल्ली के साथ लगती होती। इसलिए उपरोक्त तीन राज्य भारत को सिख भाईचारे का तोहफा है। आज़ादी के बाद भी देश की सुरक्षा हेतु यह भाईचारा आगे होकर खड़ा हुआ और कृषि के रूप में भाईचारे के लोगों ने देश को अन्न सुरक्षा मुहैया करने के मामले में बड़ा योगदान डाला है। इसलिए सिखों का विदेशों की तरफ पलायन करना बेहद गम्भीर मामला है। यह स्थिति आज की केन्द्र सरकार और देश के अलग-अलग राज्यों में शासन कर रही राज्य सरकारों पर विशेष रूप से ज़िम्मेदारी डालती है कि वह देश में सिख भाईचारे की समूची भूमिका पर पुन: विचार करें। हम देखते हैं कि भारत के अलग-अलग राज्यों से अक्सर ऐसे समाचार आते रहते हैं कि सिखों के ऐतिहासिक धार्मिक स्थानों पर  कई स्थानों पर नाजायज़ कब्ज़े करने के प्रयास किए जाते हैं या उनको नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। हम यह भी देखते हैं कि कई दशक पूर्व पंजाब की धरती से जो सिख भाईचारे के लोग मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात आदि राज्यों में जा कर आबाद हो गए थे और वहां उन्होंने बंजर ज़मीनों को खून-पसीना बहा कर  उपजाऊ बनाया था। किसी न किसी बहाने आज राज्य सरकारों द्वारा वह ज़मीनें उनसे छीनने के प्रयास किए जा रहे हैं।अगर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के अपने राज्य गुजरात की बात करें तो वहां भी कच्छ के क्षेत्र में किसानों को उजाड़ने के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा निरन्तर प्रयास किए जा रहे हैं। इस संबंधी जब किसानों ने हाईकोर्ट में केस जीत लिया तो गुजरात सरकार ने उस फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। कई बार पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा से भी इस तरह के समाचार आते रहते हैं। हमारी ओर से आज के दिन यह पूरी चर्चा करने का उद्देश्य यह है कि आप्रेशन ब्लू स्टार, नवम्बर 1984 के सिख कत्लेआम और उसके बाद सिख अल्पसंख्यकों पर जाने-अनजाने में देश भर में हो रहे अत्याचारों के कारण जो इस गौरवमय भाईचारे में बेगानापन और उदासीनता की भावनाएं पैदा हो रही हैं, उनको रोका जाना चाहिए और इस महान देश में सिख भाईचारे का पहले वाला रुतबा बहाल किया जाना चाहिए।केन्द्र सरकार को यह बात भी अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक ऐसी ताकतें सक्रिय हैं जो सिख भाईचारे को बार-बार देश से टकराने के लिए उत्साहित करने का प्रयास करती रहती हैं, क्योंकि उन ताकतों के पास भारत के प्रति अपने योजनाएं हैं। अपनी इन योजनाओं की पूर्ति के लिए वह सिख भाईचारे का इस्तेमाल करने का प्रयास करती रहती हैं। इसलिए यह और भी बेहद ज़रूरी हो जाता है कि केन्द्र सरकार और देश की अलग-अलग राज्यों की सरकारें सिख अल्प-संख्यकों के प्रति अपने व्यवहार में शीघ्र सुधार करें ताकि ज़िन्दगी के प्रत्येक क्षेत्र में देश के विकास के लिए सिख भाईचारा पहले की तरह अपना अहम योगदान डाल सके।