वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में छा जाने का मौका भी है, ज़रूरत भी

हाल में विश्व अर्थव्यवस्था की जो नई रैंकिंग सामने आयी है, उसमें पिछले कई सालों से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था रहा जापान अब फिसल कर चौथे  पायदान पर पहुंच गया है। अक्तूबर से दिसम्बर 2023 की तिमाही में जापान का जीडीपी वार्षिक आधार पर 0.4 फीसदी गिर गया, जिस कारण जापान का सकल घरेलू उत्पाद 4.23 ट्रिलियन डॉलर से घटकर 4.19 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गया। नतीजतन दुनिया की आर्थिकी में अमरीका और चीन के बाद 4.73 ट्रिलियन डॉलर के साथ अब जर्मनी तीसरी अर्थव्यवस्था बन गया है।
जापान से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा छिन जाना भारत के लिए एक अच्छी खबर है। इससे ये आसार बन गये हैं कि अब हमारी अर्थव्यवस्था अनुमान से पहले जर्मनी और जापान दोनों अर्थव्यवस्थाओं को मात देकर तीसरे पायदान पर पहुंच सकती है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में इन दिनों तेज़ी से वृद्धि हो रही है, जो जापान और जर्मनी दोनों के मुकाबले ज्यादा है। पहले जहां अनुमान था के भारत साल 2029 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जायेगा, वहीं मौजूदा समय में जो विकास दर के चलते विश्व आर्थिकी के समीकरण उभर कर सामने आये हैं, उससे यह अनुमान बना है कि भारत साल 2026 तक ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। मौजूदा समय में जो दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं, उनका आकार सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लिहाज से देखें तो जहां अमरीका की अर्थव्यवस्था 27.09 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी की हैसियत के साथ पहले नम्बर पर है, वहीं दूसरे नम्बर पर चीन का जीडीपी 18.56 ट्रिलियन, जर्मनी का 4.73 ट्रिलियन, जापान का 4.19 ट्रिलियन और भारत का सकल घरेलू उत्पाद 4.11 ट्रिलियन डॉलर है।
आईएमएफ के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में जिस तरह से भारत तेजी से विकास कर रहा है, उससे साल 2026 के अंत में हम जर्मनी को पार करते हुए, दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकते हैं। उस समय विश्व की कई अनुमान लगाने वाली एजेंसियाें के मुताबिक भारत का कुल जीडीपी 5.5 ट्रिलियन डॉलर के करीब होगा, जो अमरीका और चीन  के बाद सबसे अधिक होगा। 
वैसे फिलहाल भारत की अर्थव्यवस्था भले दुनिया की पांच अर्थव्यवस्थाओं में से एक हो, लेकिन आम भारतीयों की सालाना आय के मामले में  हम दुनिया के 194 देशों में से 144वें स्थान पर आते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत की दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी का होना है। ज्यादा आबादी का मतलब है कि कमाई का ज्यादा लोगों के बीच बंट जाना। हालांकि भारत की एशिया के स्तर पर प्रतिव्यक्ति आय 33वें पायदान पर है यानी एशिया के 76 देशों में से हम 33वें  नम्बर पर हैं। भारत में प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन की आय औसतन 2.16 डॉलर है यानी एक महीने में भारतीय औसतन 65 डॉलर कमाते हैं। इस तरह देखा जाए तो आंकड़ों के लिहाज से जहां हम एक तरफ दुनिया की पहली पांच अर्थव्यवस्थाओं से, पहली तीन अर्थव्यवस्था में शुमार होने की तरफ  बढ़ रहे हैं। वहीं औसतन भारतीयों की आय काफी कम है। इसलिए जैसे एक जमाने में कहते थे गरीब भारत में अमीर लोग रहते हैं, उसी तरीके से अब यह भी कहा जा सकता है कि अमीर भारत में काफी गरीब लोग रहते हैं।
लेकिन इस समूचे परिदृश्य में जो सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि विश्व आर्थिकी में तीसरे पायदान पर पहुंचने में आखिर हमें कितना फायदा होगा? यह इसलिए ज़रूरी है क्योंकि भारत आने वाले सालों में लगातार आर्थिक प्रगति के हाईवे पर अगर तेज़ रफ्तार चलेगा तो न सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के बहुचर्चित मिशन साल 2047 तक देश को विकसित देश के रूप में परिवर्तित करना आसान होगा, बल्कि यही रफ्तार रही है तो हम 2035 और 37 के बीच में ही विकसित देशों की कैटगरी में शामिल हो जाएंगे। वास्तव में भारत के लिए यह इसलिए संभव है, क्याेंकि हिन्दुस्तान दुनिया का वह अकेला देश है, जिसके पास अगले 40 सालों से भी ज्यादा समय तक के लिए यानी 2067-68 तक लगातार न सिर्फ  दुनिया की बेहतरीन युवा कार्यबल की मौजूदगी रहेगी बल्कि इस पूरे समय भारतीय अर्थव्यवस्था में मांग का स्तर भी कम नहीं होगा बल्कि लगातार मांग मौजूद रहेगी।
दुनिया के बाकी विकसित देश जहां अपनी कम जनसंख्या और बूढ़ी हो रहे कार्यबल के कारण अर्थव्यवस्था में मांग के स्तर पर भी उल्टी दिशा में चल पड़े हैं या आने वाले सालों में चल पड़ेंगे, वहीं भारत में अगले साढ़े तीन से चार दशकों तक लगातार बुनियादी वस्तुओं की मांग में कोई कमी नहीं आने वाली। जहां दुनिया के विकसित देश रियल एस्टेट के मामले में या तो सेचुरेटिंग प्वाइंट पर पहुंचे गये हैं या पहुंचने वाले हैं, वहीं भारत में अगले चार दशकों तक भी बड़े, मझौले और छोटे शहरों में घरों की मांग बरकरार रहेगी। हालांकि यह बात भी सच है कि इन दिनों देश के सारे महानगरों में कुल मिलाकर 35-40 लाख फ्लैट या तो बने पड़े हैं या बनने की दिशा में अग्रसर हैं। जिस कारण रियल एस्टेट के बाज़ार में अनुमानित तेजी दूर दूर तक नहीं दिख रही, लेकिन अगर दूसरी तरफ देश के बढ़ते उपभोक्ता वर्ग और मकानों की ज़रूरत के अनुपात को देखें तो अगले चार दशकों में भारत में कम से कम 4 से 5 करोड़ मकानों की ज़रूरत पड़ेगी, जिसमें डेढ़ से दो करोड़ तक पुराने मकानों की जगह नये मकान लेंगे।
क्योंकि भारत में लगातार युवा कार्यबल की मौजूदगी बनी हुई है, इसलिए उपभोक्ता समान की मांग में आने वाले दिनों में किसी भी क्षेत्र में कमी नहीं होने वाली। चाहे फैशन का क्षेत्र हो, चाहे खाद्यन्न उत्पादों का क्षेत्र हो या वाहनों का। भारत में लगातार डिमांड सकारात्मक स्तर पर अगले दो दशकों से ज्यादा तक बनी रहेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि अगले तीन दशकों में 18 से 20 करोड़ युवक भारत की स्किल कार्यबल का हिस्सा बनेंगे और इन सबके तेज़ रफ्तार विकास करने की उम्मीद है यानी इनकी आर्थिक हैसियत तेजी से बढ़ेगी।
अगर भारत लगातार अपनी आर्थिक प्रगति दर बरकरार रखता है तो साल 2025-26 तक करीब करीब सभी भारतीयाें को गरीबी रेखा से ऊपर ऊठा लिया जायेगा और साल 2030 तक 10 करोड़ से ज्यादा ऐसे लोग खुशहाल मध्यवर्ग का हिस्सा होंगे, जो अभी निम्न मध्यवर्ग के खांचे में मौजूद हैं। इसलिए भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था के ऊंचे पायदान पर पहुंचना सिर्फ विकास का दस्तूर ही नहीं बल्कि हमारी महती ज़रूरत भी है।

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