परिपक्व राजनीतिज्ञ थे प्रणब मुखर्जी

प्रणब मुखर्जी नहीं रहे। भारतीय राजनीति में अब तक जितने भी सूझवान, परिपक्व एवं विद्वान व्यक्ति विचरण करते रहे हैं, प्रणब मुखर्जी को उनमें से एक माना जा सकता है। प्रणब मुखर्जी का लम्बा राजनीतिक जीवन रहा है। उन्होंने इस दौरान अनेक बड़े पदों का गौरव हासिल किया परन्तु उन पर कभी भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा। राजनीति की अतीव छोटी एवं टेढ़ी गलियों में से वह बच कर निकलते रहे। उनकी बड़ी विशेषता यह थी कि चाहे वह जन-नेता के तौर पर न उभर कर सके परन्तु दशकों तक उनकी राजनीति में चर्चा बनी रही।  उन्होंने अपने लगभग 50 वर्ष के राजनीतिक जीवन में अधिक समय कांग्रेस में ही गुज़ारा। कांग्रेस की उपलब्धियों के साथ-साथ इसकी समय-समय पर उभरी त्रुटियां भी उनकी झोली में पड़ती रहीं। श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें वर्ष 1969-70 के दौरान राजनीति में प्रविष्ट करवाया था। वर्ष 1975 में वह पहली बार राज्यसभा के सदस्य बने थे। इसके साथ शीघ्र ही वह इंदिरा गांधी के विशेष व्यक्ति माने जाने लगे थे। इंदिरा गांधी की ओर से 1975-77 तक लगाई गई आपात् स्थिति की आलोचना भी उनकी झोली में पड़ी। इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर दोनों के आपसी मतभेद बढ़े तथा तकरार भी शुरू हो गई थी। 1986 में उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस पार्टी बनाई परन्तु जन-जीवन में अधिक विचरण न होने के कारण अंतत: वह पुन: कांग्रेस में ही शामिल हो गये थे। कांग्रेस की भिन्न-भिन्न समय पर बनी सरकारों में वह हमेशा मुख्य पदों पर ही बने रहे। डा. मनमोहन सिंह की सरकार के समय केन्द्रीय वित्त मंत्री के रूप में उनकी पूरी धाक जम गई थी। उन्होंने सात बार लोकसभा में बजट पेश किया। इस काल के दौरान वह विश्व भर में श्रेष्ठ वित्त मंत्री के रूप में पहचाने जाने लगे थे। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री होते हुये शाहबानो मामले को लेकर उनके राजीव गांधी के साथ मतभेद भी उभरे थे। इसी प्रकार बाबरी मस्जिद को गिराये जाने के मामले में वह प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से भी नाराज़ हो गये थे तथा बड़ी बेबाकी के साथ उनसे पूछा था कि अपनी इस भारी नमोशी का वह क्या उत्तर देंगे,  था देश में एक बार फिर पैदा हुये साम्प्रदायिक माहौल को कैसे सम्भाल सकेंगे? परन्तु इसके बावजूद वह सदैव कांग्रेस में संकटमोचक के रूप में ही जाने जाते रहे। जिन लोगों ने भी राज्यसभा में उनके भाषण सुने, वे सदैव उनकी विद्वत्ता के कायल बने रहे हैं। विपक्ष के नेता भी उन्हें अतीव ध्यानपूर्वक सुनते थे। इसीलिए उन्होंने कांग्रेसी नेता होते हुये भी विपक्षी गुटों के साथ पुल निर्मित किये हुये थे। किसी भी संकट के समय सभी को प्रणब मुखर्जी की याद आती रही। चाहे प्रणब मुखर्जी ने एक क्लर्क से शुरू होकर राष्ट्रपति बनने तक का स़फर किया, अपनी अंतिम आयु में उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया, परन्तु प्रधानमंत्री बनने की उनकी इच्छा कभी पूर्ण नहो सकी। चाहे तीन बार उनके इस पद हेतु बनने के अवसर भी आये परन्तु प्रत्येक बार वह इससे किसी न किसी
कारण वंचित होते रहे। यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि प्रधानमंत्री के तौर पर वह कितना सफल रहते तथा देश को किस सीमा तक देन दे सकते थे। कांग्रेस के शासनकाल के दौरान वह वर्ष 2012 में राष्ट्रपति बने थे।  2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार बनी। उस समय भी अपने व्यक्तित्व एवं अपनी प्रतिभा के कारण उन्होंने इस पद की शान को बनाये रखा। इस दौरान उनका सरकार एवं विपक्षी गुटों के साथ एक जैसा सम्पर्क एवं सहयोग बना रहा। प्रणब मुखर्जी अंत तक राजनीति की पुरानी एवं नई पीढ़ी में एक महत्त्वपूर्ण सम्पर्क बने रहे। नि:सन्देह भारत के अत्याधिक सूझवान राजनीतिज्ञों में उनका नाम शुमार हो गया है, जिसे आगामी समय में भी एक उदाहरण के तौर पर प्रयुक्त किया जाता रहेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द