नानक सायर एव कहित है गुरु नानक वाणी में वर्णित छंदों की व्याख्या

(गतांक से आगे)
6. ताटंक छंद :-  इस छंद की चार पंक्तियाँ होती हैं। ‘‘अंतरि सबदु निरंतरि मुद्रा हउमै ममता दूरि करी।। काम क्रोधु अहंकारु निवारै गुर कै सबदि सु समझ परी।। खिंथा झोली भरिपुरि रहिआ नानक तारै एकु  हरी।। साचा साहिबु साची नाई परखै गुर की बात खरी’’।। (पन्ना - ९३९)
7. दोहरा :-  दो पंक्तियों वाले छंद का नाम दोहरा या दोहा होता है। इस छंद के भी कई रूप गुरु वाणी में आए हैं। ‘‘खुदी मिटी तब सुख भए मन तन भए अरोग।। नानक द्रिसटी आइआ उसतति करनै जोगु’’।। (राग गउड़ी, पन्ना २६०)
(क) नर दोहरा :- ‘‘हउमै दीरघ रोगु है दारू भी इसु माहि।। किरपा करे जे आपणी ता गुर का सबदु कमाहि’’। (आसा दी वार, पन्ना- ४६६)
8. पउड़ी :- यह अपने आप में कोई छंद नहीं पर ‘पउड़ी’ शीर्षक के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न रूपों में कई प्रकार के छंद लिखे गए हैं। आमतौर पर योद्धाओं में वीर रस भरने के लिए ढाडियों द्वारा, वार गायन के समय, प्रसंग सुनाने के उपरान्त ‘पउड़ी’ गाई जाती थी। 
(क) ‘चटपटा’ तथा ‘निशानी’ छंद :-  सतगुरु नानक वाणी में ‘पउड़ी’ शीर्षक के अन्तर्गत छंद का यह रूप भी लिखा हुआ है। पउड़ी में इसकी चार पंक्तियाँ होती हैं।
‘‘संनी देनि विखंम थाइ मिठा मदु माणी॥ करमी आपो आपणी आपे पछुताणी’’। (वार गउड़ी, पन्ना-३१५)
(ख) सुगीता छंद :- ये पंक्तियाँ सुगीता छंद में पउड़ी शीर्षक के अन्तर्गत लिखी गई हैं। इस छंद की चार पंक्तियाँ होती हैं। ‘तू करता आप अभुलु है भुलण विचि नाही।। तू करहि सु सचे भला है गुर सबदि बुझाही’।। (वार गउड़ी पन्ना - ३०१)
(ग)     राधिका छंद :- ये पंक्तियाँ राधिका छंद में पउड़ी शीर्षक के अन्तर्गत लिखी गई हैं। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। ‘‘इकि भसम चड़ावहि अंगि मैलु न धोवही।। इकि जटा बिकट बिकराल कुलु घरु खोवही’’।। (राग मलारु पन्ना - १२८४ )
(घ) कलस छंद :- गुरु वाणी में कई छंदों के मेल से कलस छंद रचे गए हैं। यहाँ यह कलस छंद ‘निता’ एवं ‘सार’ के मेल से बना है। इस की चार पंक्तियाँ होती हैं। ‘‘सहजि मिलाए हरि मनि भाए पंच मिले सुखु पाइआ।। साई वसतु परापति होई जिसु सेती मनु लाइआ’’।। (राग सूही छंद, महला १, पन्ना -७६४)
(च) हंसगत छंद :- यह छंद गुरु वाणी में पउड़ी शीर्षक के अन्तर्गत आता है। इस की चार पंक्तियाँ होती हैं।
‘‘केते कहहि वखाण कहि कहि जावणा।। वेद कहहि वखिआण अंतु न पावणा।। पढ़़िऐ नाही भेदु बुझिए पावणा।। खटु दरसन के भेखि किसै सचि समावणा’’।। (राग माझ, पन्ना - १४८)
(छ) पउड़ी का एक रूप यह भी है : ‘‘दानु महिंडा तली खाकु जे मिलै ता मसतकि लाईऐ।। कूड़ा लालचु छडीऐ होइ इक मनि अलखु धिआईऐ।। फलु तेवेहो पाईऐ जेवेही कार कमाईऐ।। जे होवै पूरबि लिखिआ ता धूड़ि तिना दी पाईऐ’।। (आसा दी वार, पन्ना- ४६८ )
9. प्रमाणिका छंद :- इसकी चार पंक्तियाँ होती हैं। ‘‘न देव दानवा नरा।। न सिद्ध साधिका धरा।। असति एक दिगरि कुई।। एक तुई एक तुई’’।। (वार माझ, पन्ना- १४३ )
10. रूपमाला छंद :- इसकी चार पंक्तियाँ होती हैं। ‘‘कूड़ु राजा कूड़ु परजा कूड़ु सभु संसारु।। कूड़ु मंडप कूड़ु माड़ी कूड़ु बैसणहारु।। कूड़ु सुइना कूड़ु रूपा कूड़ु पेन्हणहारु।। कूड़ु काइआ कूड़ु कपड़ु कूड़ु रूपु अपारु’’।। (आसा दी वार, पन्ना- ४६८)
11. सोरठा :- यह छंद दो पंक्तियों का होता है। दोहरे के विपरीत है तथा इसमें तुकांत का मेल नहीं होता परन्तु मध्य में मेल होता है। ‘‘समुंद साह सुलतान गिरहा सेती मालु धनु।। कीड़ी तुलि न होवनी जे तिसु मनहु न वीसरहि’’।। (जपु जी साहिब, पन्ना - ५ )                

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