केन्द्र पहल करे

लगभग महीने भर से किसान सड़कों एवं रेल पटरियों पर आकर नये कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं तथा उनका संघर्ष निरन्तर जारी है। विगत 24 सितम्बर को संगठनों की ओर से कुछ स्थानों पर रेलगाड़ियां रोकी गई थीं, परन्तु अक्तूबर से लगभग 33 स्थानों पर किसान रेल पटरियों पर बैठ गये थे। इस कारण न यात्री गाड़ियां तथा न ही मालगाड़ियां चल सकीं। मालगाड़ियों के बंद होने से प्रदेश में आने वाली सभी आवश्यक वस्तुएं बंद हो गईं तथा यहां से बाहर जाने वाला सारा सामान ही पूरी तरह से रुक गया। अब तक केवल हौजरी एवं खेलों के सामान में ही 24,000 करोड़ रुपये का सामान अटका पड़ा है। आगामी दिनों में पंजाब में यूरिया एवं डी.ए.पी. खाद की बड़ी ज़रूरत है। फीड उद्योग बाहर से सामान न आने के कारण पूरी तरह से तहस-नहस हो रहा है तथा अब तक इसे भारी घाटा पड़ चुका है, क्योंकि अकेले इस क्षेत्र में ही दूसरे राज्यों के साथ लगभग 20,000 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। हैंडलूम उद्योग भी मुंह के बल गिरा है। लोहा उद्योग भी लुढ़क चुका है। आवश्यक वस्तुओं के भाव आसामान छूने लगे हैं। विशेषज्ञों की ओर से कोयला न आने के कारण बिजली का भी संकट खड़ा होने की आशंका व्यक्त की जा रही है।
इन बातों को भांपते हुये किसान यूनियनों ने मालगाड़ियों के आवागमन की छूट देने की घोषणा की है, परन्तु यात्री गाड़ियों पर अंकुश बरकरार रखने का फैसला किया है। इसके बावजूद रेल मंत्रालय की ओर से मालगाड़ियों की आवाजाही शुरू नहीं की गई। इस संबंध में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने रेलवे मंत्री को हस्तक्षेप करने की मांग करते हुये कहा है कि यदि ऐसी स्थिति बनी रही तो हालात बिगड़ सकते हैं। अन्य राजनीतिक दलों ने भी इसे केन्द्र सरकार का हठ करार देते हुये तुरंत माल गाड़ियां शुरू करने के लिए कहा है क्योंकि जहां इसका प्रदेश की समूची अर्थ-व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, वहीं समूचा कारोबार भी ठप्प हो जाएगा। रेल मंत्रालय ने पहले 24 तथा 25 अक्तूबर को ये गाड़ियां बंद रखने की घोषणा की थी। अब इसकी अवधि 29 अक्तूबर तक बढ़ा दी गई है। केन्द्रीय रेलवे मंत्री पीयूष गोयल ने पंजाब सरकार से यह भी मांग की है कि वह रेल गाड़ियों एवं रेलवे कर्मचारियों की पूर्ण सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ले। नि:सन्देह अब तक इस आन्दोलन के कारण जिस प्रकार का माहौल बन चुका है, वह बेचैन करने वाला है। इस दौरान प्रांतीय एवं केन्द्र सरकार से यह उम्मीद अवश्य रखी जाती थी कि वह जहां प्रदेश में हर तरह की गतिविधियों को शुरू करने के यत्न करतीं, वहीं किसी न किसी प्रकार से इस मामले का हल निकालने के लिए भी यत्नशील होतीं, परन्तु केन्द्र सरकार की ओर से अपनाई गई नीति उसके हठपूर्ण व्यवहार का प्रभाव देती है, जिसकी उससे उम्मीद नहीं रखी जा सकती। पहले भी इस मामले के संबंध में बातचीत करने के लिए किसानों को दिया गया निमंत्रण आधा-अधूरा था तथा इसके बाद केन्द्र सरकार की ओर से इस दिशा में आगे कोई कदम नहीं उठाया गया जिससे हालात जस से तस बने दिखाई देते हैं। 
पंजाब सरकार को उत्पन्न हुई इस स्थिति के लिए अधिक सक्रिय होने की आवश्यकता थी। इस दृष्टिकोण से वह ढीली दिखाई देती रही है। अब जहां तात्कालिक आवश्यकता केन्द्र सरकार की ओर से आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई जारी रखने के लिए माल गाड़ियों को हरी झंडी दिये जाने की होनी चाहिए, वहीं किसान वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहे संगठनों के साथ बातचीत शुरू करने की भी कोशिश की जानी चाहिए ताकि पहले ही समस्याओं के मुंह में आये प्रदेश को और जलती के मुंह में न झोंका जाये। ऐसा केन्द्र सरकार की ओर से अपने अब तक अपनाये गये व्यवहार में परिवर्तन करके ही सम्भव हो सकता है। इस जड़ता को तोड़ने के लिए उसे प्राथमिकता के आधार पर समस्या के हल की ओर बढ़ने की आवश्यकता होगी। आज यही उसकी बड़ी ज़िम्मेदारी है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द