सरदार पटेल : ऊंचा कद, ऊंचे विचार 

2014 व फिर 2019 में केंद्र में भाजपा सरकार के आने के बाद से लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की महत्ता बढ़ने लगी है। ‘स्टेच्यु ऑफ यूनिटी’ के रूप में भारत का यह बिस्मार्क गुजरात में अपने कद के अनुरूप खड़ा एक नया भारत बनते देख रहा है। सरदार पटेल ने आज़ादी के पूर्व देशी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य शुरू किया था। पटेल और मेनन ने स्थानीय  राजाओं को व्यवहारिक तरीके से समझाया कि उन्हें स्वायत्तता मिलना सम्भव न होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोड़कर शेष सभी राजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद के राजाओं ने पटेल का मशविरा नहीं स्वीकार किया। जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध भारी जनविरोध होने पर वह पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। किन्तु नेहरू ने कश्मीर का मुद्दा एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या कहकर अपने पास रख लिया। देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ होगा जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण किया हो। इसीलिए उन्हें भारत के बिस्मार्क की संज्ञा दी जाती है। ऐसा ही काम बिस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण में किया था पर वहां की समस्या भारत की समस्या की तुलना में आधी भी विकट नहीं थी। इस पैमाने पर उन्हें आधुनिक चाणक्य या कौटिल्य भी कहा जा सकता है जो राजनीति के हर दांव पेंच से वाकिफ थे और राष्ट्रीय व नैतिक मूल्यों की रक्षा भी करते थे। वह व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा से ऊपर की सोच के नेता रहे। पटेल देश के बारे में कैसे सोचते थे, इस बात से पता चलता है कि एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने के भंडार का बड़ा भारी क्षेत्र है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है। उसी दिन वह उड़ीसा पहुंचे और वहां के 23 राजाओं को भारत में अपने राज्य विलीन करने को राजी कर लिया। फिर नागपुर के 38 राजाओं से मिले। इन्हें  ‘सैल्यूट स्टेट’ कहा जाता था, यानी जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। इसी तरह से उन्होंने काठियावाड़ की 250 रियासतें चतुराई से  बिना किसी रक्तपात के भारत में मिलाईं। कश्मीर रियासत के प्रश्न को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाये जाने पर वह बेहद क्षुब्ध थे। सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य है। यह स्वतंत्र भारत की रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, ‘रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल आप ही हल कर सकते थे।’ 1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में स.पटेल ने चीन तथा उसकी तिब्बत नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बतलाया था।  इसका खमियाजा देश को 1962 के युद्ध व बाद के बरसों में भी भुगतना पड़ा। 1950 में गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में यदि तब स.पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती और न ही पुर्तगाल से हमारा व्यापार बाधित होता। महात्मा गांधी की भांति स. पटेल भी भविष्य में ब्रिटिश राष्ट्रकुल में स्वतंत्र भारत की भागीदारी में लाभ देखते थे बशर्ते भारत को बराबरी के सदस्य के रूप में शामिल किया जाए। वह भारत में आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास कायम करने पर जोर देते थे, लेकिन गांधी जी के विपरीत, वह हिन्दू-मुस्लिम एकता को स्वतंत्रता की पूर्व शर्त नहीं मानते थे। बलपूर्वक आर्थिक और सामाजिक बदलाव लाने की आवश्यकता के बारे में भी सरदार पटेल जवाहरलाल नेहरू से असहमत थे। पटेल ही वास्तव में आधुनिक भारत के शिल्पी थे। जिस अदम्य उत्साह, असीम शक्ति से उन्होंने नवजात गणराज्य की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान किया, उससे विश्व राजनीति में उनका बहुत ऊंचा स्थान है ।

(युवराज)