फूल खिले पड़े

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)
अचानक उसका संतुलन बिगड़ गया और उसने सड़क के किनारे पर जा रहे एक वृद्ध व्यक्ति में टक्कर मार दी। वह बुजुर्ग व्यक्ति धड़ाम से सड़क पर गिर पड़ा। साथ ही हनी भी गिर पड़ा लेकिन उसके कोई चोट न आई। उसने उस व्यक्ति को उठाने की बजाये तत्काल एक्टिवा उठाई और तुरंत स्टार्ट करके रफू-चक्कर हो गया। घर आकर हमें बड़ी शान से कह रहा था,’’आज मैंने एक बूढ़े में अपनी एक्टिवा से टक्कर मार दी। पता नहीं ये बूढ़े सड़कों पर क्यों घूमते रहते हैं ? घर में नहीं बैठ सकते?’’  मुझे हनी का यह व्यवहार अच्छा न लगा। मैं जानता था कि अगर मैं इतना भी कह देता कि उसे इतनी तेज गति से एक्टिवा नहीं चलानी चाहिए थी और न ही वाहन चलाते समय मोबाइल सुनना चाहिए था तो उसने मेरे पीछे पड़ जाना था। मेरा बचाव करने के लिए कोई आगे न आता। एक दिन मैं स्कूल के पुस्तकालय से एक पुस्तक लेकर पढ़ने लगा। यह पुस्तक पहेलियों की थी। हनी ऊंची आवाज में टी.वी. पर गीत सुनने लगा। वैसे भी असभ्य किस्म के गाने उसे पसंद आते। भयानक सीरियल देखना उसकी पहली पसंद बन चुका था। पहेलियों की पुस्तक पढ़ने में मुझे बड़ा आनंद आने लगा। मैं मन ही मन प्रत्येक पहेली का जवाब देने का प्रयत्न करता। अगर न बूझ सकता तो पुस्तक के आखिरी पन्ने पर उस पहेली का उत्तर देखता। एक पहेली तो मेरे लिए बिल्कुल ही नई थी। पहले कभी नहीं सुनी थी। पहेली इस तरह थी:
बंजर में गिरा पटाखा
सुनने वाले दो और हैं।
जिन्होंने सुना, उन्होंने देखा नहीं
देखने वाले दो और हैं
जिन्होंने देखा, वो उठाने न गये
उठाने वाले दो और हैं।
जिन्होंने उठाया, उन्होंने खाया नहीं
खाने वाले दो और हैं।
मैं इस पहेली का उत्तर काफी देर तक सोचता रहा, सोचता रहा परन्तु किसी परिणाम पर न पहुंच सका। कभी मैं कुछ सोचता, कभी कुछ। अंत में आखिरी पृष्ठ पर उत्तर देखा तो लिखा हुआ था, ’आम,कान,आंखें,पांव,हाथ और होंठ।’ यानि आम के पेड़ से फल गिरा और आगे आप खुद समझदार हैं।
मैं अगली पहेली पढ़ने ही लगा था कि मम्मी की कड़कती आवाज मेरे कानों से टकराई,’’घोने......।’’
मैं पुस्तक तुरंत वहीं पर छोड़कर मम्मी के पास आया। मम्मी कहने लगी,’’फटाफट जाओ। यह कपड़ों की गठरी को वेद धोबी के पास ले जाओ और वहीं बैठकर कपड़े प्रेस करवा कर लाना ध्यान से। समझ.े....?’’मैंने गठरी उठाई और धोबी के पास ले गया। इन कपड़ों में मेरा कोई कपड़ा नहीं होता था। मम्मी कहती थीं कि सरकारी स्कूलों की वर्दी प्रेस करवाने की कोई ज़रूरत नहीं होती। वहां कौन देखता है कि वर्दी प्रेस है या नहीं ? ऐसे ही चलता है वहां तो.....।’’एक दिन मैं एक गलती कर बैठा। मेरा अगले दिन पहला वार्षिक पेपर था। मैंने शाम को ही अपनी वर्दी धोकर सूखने के लिए डाली थी। उस शाम को बारिश आ गई। मुझे चिंता सताने लगी कि मेरी वर्दी सूख भी जाएगी कि नहीं ? मैं घर में पड़ी प्रेस उठाकर अपनी आधी सूखी आधी गीली वर्दी पर मारने लगा कि मम्मी ने आते ही स्विच बंद कर दिया। गुस्से में बोलीं, ’’ये क्या कर रहे हो? सूखी तो पड़ी है तुम्हारी वर्दी सुबह तक और सूख जाएगी। पता है कल बिजली का कितना बिल आया है ? पूरे चार हजार रुपये।’’मैं कहना तो चाहता था कि ’’मम्मी जी, क्या इतना बिल मेरे कारण ही आया है?’’ लेकिन मैं कुछ न बोल सका। मेरे बूट भी टूट चुके थे लेकिन मुझ में अभी इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं मम्मी को नए बूट दिलवाने के लिए कह सकूं। उन टूटे बूटों को मैं कई बार मरम्मत करवा चुका था। शुक्रवार को पापा अमृतसर से घर आये। अगले ही दिन वह मुझे नये बूट दिलवा लाए। रात को मैं चौबारे में अभी पहुंचा ही था कि नीचे से पापा जी की सख्त आवाज मेरे कानों में पड़ी, ’’तुमने कभी इसे अपना बेटा समझा ही नहीं। इसके साथ हमेशा सौतेले बेटे जैसा व्यवहार करती आ रही हो तुम। इसे नहीं रख सकती थी तो घर क्यों लेकर आई थीं? याद रखना, जितना तुम हनी के लाड-प्यार में डूबकर होकर उसे सिर पर चढ़ा रही हो, एक दिन वह तुम्हारे ही सिर में सुराख करेगा। तुम्हें इसका नतीजा भुगतना पड़ेगा। तुम्हारा अंधा लाड -प्यार ऐसे कांटे बीजेगा कि चुगती फिरोगी।’’ मम्मी जी भी बराबर बोल रहीं थीं,’’मैंने ठेका नहीं लिया हुआ इसकी परवरिश का। इसे पढ़ाने लिखाने का। इतना स्नेह है तो इसे अपने साथ अमृतसर क्यों नहीं ले जाते? औलाद किसी की, सम्भालूं मैं ? अपने साथ ही ले जाओ इस ’गंद’ को.....।’’
’’इस ’गंद’ को---।’’ यह मैंने पहली बार मम्मी के मुंह से सुना था। मैं सोचने लगा कि क्या मैं इस घर के लिए गंदी वस्तु बनकर ही रह गया हूं ? सच बताऊं तो मेरा पढ़ना-लिखना कहीं गुम हो गया। मुझे रात नींद न आई। हम दोनों का परिणाम निकला। हनी बड़ी मुश्किल से पास होने लायक अंक ही प्राप्त कर सका। मेरे काफी अच्छे अंक आये लेकिन मेरे अच्छे अंकों की खुशी पापा के सिवाय किसी को न हुई। मम्मी हनी का जन्म-दिन बड़े उत्साह से मनाते थे। मैं अपने जन्म-दिन के बारे पूछने लगता तो मम्मी और हनी हंसने लगते। पता नहीं क्यों? आखिर मेरा भी तो किसी न किसी दिन जन्म हुआ होगा। फिर पापा के कहने पर मेरा जन्म-दिन भी उसी दिन मनाया जाने लगा जिस दिन हनी का जन्म-दिन मनाया जाता था। लेकिन मेरे और हनी के जन्म-दिन में जमीन-आसमान का अंतर था। पिछले वर्ष मम्मी ने हनी को बड़ा महंगा मोबाइल खरीद कर उपहार में दिया था परन्तु मेरे भाग्य में तो कोई टूटा-फूटा मोबाइल भी नहीं था। हनी के महंगा फोन लेने की जिद्द मम्मी ने तत्काल पूरी कर दी थी और वह खुद उसके साथ बाजार जाकर उसका पसंदीदा मोबाइल खरीद कर लाए थे। उस में बिल्कुल आधुनिक किस्म के सॉफ्टवेयर और सहूलतें थीं। हनी अक्सर मोबाइल पर गेम्स, कार्टूनों, धूम-धड़ाके वाले गानों और टिक-टाक में ही व्यस्त दिखाई देता था। उसे पिस्तौल,चाकू,तीर-कमान,स्टेनगन जैसे महंगे और हथियारनुमा खिलौने तो बहुत पसंद थे। इन खिलौनों के साथ वह अपने दोस्तों को कई बार नुक्सान पहुंचा चुका था। यह सभी महंगे खिलौने भी उसने जिद्द करके ही खरीदे थे। जिस दिन वह एयरगन लेकर आया था उस दिन से घर के आंगन या छत पर आने वाले पक्षियों की तो जैसे शामत ही आ गई थी। (क्रमश:)