ज़िम्मेदारी से काम ले केन्द्र सरकार

पिछले दो महीने से चल रहे किसान आन्दोलन ने अब तक कई पड़ाव पार किये हैं। इसका अधिक प्रभाव पंजाब में देखा गया है। धरनों एवं प्रदर्शनों ने एक प्रकार से प्रदेश की गति बेहद धीमी की हुई है। रेल गाड़ियों के न चलने से बड़े दूरगामी प्रभाव पड़े हैं। आर्थिकता डगमगा गई है, उद्योग एवं व्यापार पर इसका बड़ा असर पड़ा है। पंजाब सरकार की ओर से रेल गाड़ियां न चलने के कारण हो रहे नुकसान के दृष्टिगत किसान संगठनों के साथ रेल गाड़ियों की पुन: बहाली हेतु सम्पर्क रखा गया था। लम्बी हिचकिचाहट के बाद रेल गाड़ियां चलने से प्रभावित हुए लोगों ने कुछ राहत अवश्य महसूस की है। इसी दौरान किसान संगठनों की केन्द्र सरकार के प्रतिनिधियों एवं मंत्रियों के साथ सम्पन्न हुई दो बैठकें अनिर्णीत ही रहीं। इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए दिल्ली सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए किसानों ने 26 एवं 27 नवम्बर को ‘दिल्ली कूच’ का नारा दिया था, ताकि वे देश की राजधानी में एक बड़ा एवं प्रभावशाली समूह करके केन्द्र सरकार को झिंझोड़ सकें, परन्तु केन्द्र की ओर से अब तक अपनाया गया कठोर रवैया हालात को और खराब करने में ही सहायक हो रहा है। 
किसान दिल्ली में शांतिपूर्वक रोष प्रदर्शन करना चाहते हैं, परन्तु उन्हें ऐेसा करने की इजाज़त नहीं दी गई तथा हरियाणा सरकार की ओर से पंजाब के साथ सटी सड़कों को सील कर दिया गया ताकि पंजाब के किसान दिल्ली न पहुंच सकें। उनके इस मार्च को रोकने के लिए जिस प्रकार सीमाओं पर दोहरे बैरीकेड लगाये गये, सीमेंट के पिल्लर तक सड़कों पर बिखेर दिये गये, स्थान-स्थान पर नाकाबंदी की गई, धारा 144 लगा दी गई, ये सब और भी भड़काहट पैदा करने वाली कार्रवाइयां हैं। जिस प्रकार दिल्ली की ओर जा रहे किसानों का पुलिस के साथ नाकों पर कड़ा टकराव उत्पन्न हुआ, उससे माहौल और भी तनावपूर्ण बन गया है। इसी दौरान केन्द्र कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने एक बार फिर किसानों को आन्दोलन न करने एवं मतभेदों वाले मुद्दों पर बातचीत करने की अपील की है। उन्होंने एक बार फिर किसान संगठनों के साथ 3 दिसम्बर की बातचीत की पेशकश को दोहराया है। इसे हम एक रचनात्मक बात कह सकते हैं, परन्तु इसके साथ ही यह बड़े खेद की बात है कि केन्द्र सरकार की ओर से अब तक स्थिति को सुधारने के लिए जितने बड़े प्रयास किये जाने चाहिए थे, वे नहीं किये गये, अपितु किसान आन्दोलन के प्रति उसने लापरवाही की नीति ही अपना रखी है।
पारित किये गये कृषि कानूनों के संबंध में उसका रवैया बड़ी सीमा तक हठपूर्ण रहा है। इसकी अपेक्षा उसे सम्बद्ध पक्षों के साथ मिल-बैठ कर इस मामले का कोई संतोषजनक हल निकालने की ओर बढ़ना चाहिए परन्तु उसके प्रतिनिधि अब तक भी यही कह रहे हैं कि ये कानून किसानों के हित के लिए हैं, जबकि अधिकतर संगठन इन्हें किसान विरोधी बता रहे हैं। ऐसे कानून बनाने से पूर्व इनका करोड़ों परिवारों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में व्यापक स्तर पर विचार-विमर्श किया जाना ज़रूरी था, परन्तु इस पर केन्द्र सरकार की ओर से लापरवाही एवं बेपरवाही की नीति ही धारण की गई है। किसी भी लोकतांत्रिक सरकार से ऐसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अधिक ज़िम्मेदारी की आशा की जाती है। सरकार की ओर से अपनाया गया ऐसा रवैया समूचे समाज के लिए बड़ा हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द