माराडोना—याद करेंगी सदियां तुमको...!

वर्ष 2020 ने नया कोरोना वायरस से संक्रमित होकर मरने वाले व्यक्तियों को तो मात्र संख्या बनाकर रख दिया है— कोविड-19 से पिछले 24 घंटों में इतनी मौतें हुईं जिससे अब कुल मृतकों की संख्या इतनी हो गई है। लेकिन इस साल, जिसके गुजरने में अभी एक माह शेष है, में शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो, जब सुबह अखबार हाथ में लेते ही पहले पृष्ठ पर राजनीति, खेल, फिल्म, कला, साहित्य आदि क्षेत्रों से संबंधित किसी न किसी नामवर हस्ती के निधन की खबर पढ़ने को न मिली हो। 25 नवम्बर, 2020 को दुनियाभर के खेल प्रेमियों के लिए यह बुरी खबर ब्यूनस आयर्स (अर्जेन्टीना) से यह आयी कि उनके दिलों पर राज करने वाले सर्वकालिक महानतम फुटबॉल खिलाड़ियों में से एक डीगो माराडोना, मात्र 60 बरस की आयु में, संसार को हमेशा के लिए अलविदा कह गये। 
कोलकाता जो अपने हरदिल अज़ीज़ अदाकार सौमित्र चटर्जी के जाने के शोक से अभी उभर भी नहीं पाया था, एक बार फिर मातम में डूब गया। साल 2008 की उन यादों को संजोते हुए जब आधी रात के बाद, वह माराडोना का एयरपोर्ट पर स्वागत करने के लिए उमड़ पड़ा था। 25 नवम्बर, 2020 की रात को जैसे ही माराडोना के बारे में दुखद खबर आयी, कोलकाता ही नहीं, कश्मीर, गोवा, केरल आदि, जो अपने देश में फुटबॉल के गढ़ माने जाते हैं, में खेल प्रेमी माराडोना की तस्वीरें लेकर सड़कों पर उतर आये, अपने दु:ख को व्यक्त करने के लिए। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि माराडोना की ख्याति किसी एक देश की सीमाओं के भीतर कैद नहीं थी। वह अर्जेन्टीना फुटबॉलर की बजाय वर्ल्ड फुटबॉलर बन गये थे। यह मुकाम उन्होंने अपनी कला, काबलियत, हुनर व प्रदर्शन से हासिल किया था। 
अपने देश को 1986 का विश्व कप खिताब दिलाने वाले माराडोना को बाद में कई समस्याओं से संघर्ष करना पड़ा, लेकिन दो दशक से अधिक के अपने फुटबॉल करियर में उन्होंने संसारभर के खेल प्रेमियों के दिलों पर राज किया। ‘हैंड ऑफ  गॉड’ गोल के लिए विख्यात माराडोना ब्रेन सर्जरी कराने के बाद दो सप्ताह पहले ही अस्पताल से बाहर आये थे। बुधवार (25 नवम्बर, 2020) को उनको जबरदस्त दिल का दौरा पड़ा, जिससे उनका निधन हो गया। अर्जेन्टीना के राष्ट्रपति ने उनकी मृत्यु पर तीन दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है। माराडोना फुटबॉल के मूलरूप से विकल जीनियस थे, एक विश्व विजेता खिलाड़ी जिन्होंने जीवन व कॅरियर में अकल्पनीय बुलंदियों को स्पर्श किया। वह ग्लोबल आइकॉन तो बने, लेकिन पेले की तरह कर्कश स्वर वाले साफ-सुथरे आइडल नहीं थे। माराडोना ने एक बार कहा था, ‘मैं ब्लैक या वाइट हूं, मैं अपने जीवन में कभी ग्रे नहीं होने का।’ कद के छोटे, लेकिन शक्तिशाली व तेजतर्रार माराडोना के बारे में यह मशहूर था कि हर गेंद को सबसे अच्छा अनुभव उस समय होता था, जब वह उनके लेफ्ट फुट पर होती थी। वह जबरदस्त व शानदार प्रतिद्वंदी थे, जो उस वक्त भी दबाव में आने से इन्कार कर देते जब मैदान में अनेक खिलाड़ी उन्हें घेरने का प्रयास करते थे। इस सबसे बढ़कर यह कि उनका कौशल भव्य और कल्पनाशील था।
डीगो अरमांडो माराडोना का जन्म 30 अक्तूबर, 1960 को अर्जेन्टीना की राजधानी के पास लानूस में हुआ था और उनकी परवरिश ब्यूनस आयर्स के सबसे गरीब इलाके में हुई थी। उन्होंने अपने 16वें जन्मदिन से पहले ही अर्जेन्टीनोस जूनियर्स के लिए खेलना शुरू कर दिया था और जब वह 16 साल के हुए तो फरवरी 1977 में अर्जेन्टीना के लिए पहला मैच खेले। विश्व कप उनके कॅरियर को प्रभावित करता है। चार में वह खेले और एक में खेल नहीं सके। 17 साल की उम्र में उन्होंने अर्जेन्टीना टेलीविज़न पर कहा था, ‘मेरे दो सपने हैं। पहला सपना है विश्व कप में खेलना और दूसरा सपना है, उसे जीतना।’ उनका पहले विश्व कप (स्पेन 1982) बहुत खराब गुजरा। डिफेंडर्स ने उनकी एक न चलने दी और उन्होंने इस प्रतियोगिता का अंत रेड कार्ड से किया, जब पहले ही बाहर हो चुकी अर्जेन्टीना टीम ब्राज़ील से पराजित हुई। इसकी भरपाई माराडोना ने चार वर्ष बाद मेक्सिको में कर ली अपने देश को विजेता बनाकर। 
उन्होंने इस प्रतियोगिता में अपनी छाप कुछ ऐसी छोड़ी कि मेक्सिको विश्व कप उनके नाम से ही याद किया जाता है। वेस्ट जर्मनी के विरुद्ध फाइनल में माराडोना ने 86वें मिनट में विनर सेटअप किया। बेल्जियम के विरुद्ध सेमीफाइनल में उन्होंने दो गोल किये थे, जिसमें से दूसरे गोल के लिए उन्होंने चार डिफेंडर्स को छकाया था। माराडोना ने अपने चार विश्व कप में 21 मैच खेले और आठ गोल किये, जिनमें से 5 गोल 1986 में किये थे, 2 गोल 1982 में, एक 1994 में और 1990 में एक भी नहीं। माराडोना ने अर्जेन्टीना, इटली व स्पेन में जिन क्लबों के लिए खेला, उन्हें भी चैंपियन बनवाने में सहयोग किया, न सिर्फ  खुद गोल करके बल्कि दूसरों के लिए गोल करने का अवसर उत्पन्न करके भी।  बाल उनसे चुंबक की तरह (या शायद दैविक शक्ति से) चिपक जाती थी। मैदान से बाहर जाती गेंद को हाथ से रोकना और गोल में इस तरह से डाल देना कि रेफरी को नजर ही न आये, अगर ‘दैविक’ नहीं है तो और क्या है? इसलिए ही तो उन्हें ‘हैंड ऑफ  गॉड’ गोल कहते हैं।  -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर